Posts

Showing posts from March, 2025

AI की गाथा फाइल में ( भाग -1) :: विकुति

  भाग -1       भारत की माली हालत अच्छे से अच्छी  थी। तेजड़िये तेज़ थे ,मंदड़िये मंद थे , लिवाली और बिकवाली के बीच जनता दीवाली मना रही थी। इसी बीच कहीं से ए0 आई0 कि बात उठ गयी।प्रधानमंत्री जी को एहसास हो गया कि पवित्र महाकुम्भ के कारण ए 0 आई0 में किन्चित बिलम्ब हो चुका है  लेकिन एक आध्यात्मिक अवसर को कैसे छोड़ा जा सकता था। अतः उन्होंने उद्घोष किया कि हम डबल ए0 आई0 बनायेंगे। चीन के ‘डीप सीक ‘ के कारण जानता थोड़ी उदास थी लेकिन उसे विश्वास था कि महामानव हैं तो सब सम्भव है। इसलिए आश्वस्थ भी थी। अलबत्ता वैज्ञानिक सकते में आ गये थे। उन्होंने ‘डबल ए0 आई0’ का नाम पहले कभी सुना नहीं था। इस असमंजस में सभी उच्च वैज्ञानिक , संस्थानों के वरिष्ठ वैज्ञानिक एकत्र हुए और आपस में मंत्रणा करने लगे लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया। अन्त में उनमें से वरिष्ठतम वैज्ञानिक ने कहा -’ चिन्ता मत करिए , इस दुविधा से हमको प्रधानमंत्री जी के अलावा कोई दूसरा उबारने में समर्थ नहीं है। कहा भी गया है कि -” वन्दौ प्रथम ******** मोह जनित संशय सब हरना।”. इस मोह और अज्ञान से उत्पन्न भ्रम से उबरने का यही ए...

ढपोर शंख की ललित कथा :: विकुति

    एक दुखी प्राणी ने बहुत काल तक तपस्या की। पहले वह पत्ते खा कर रहा,  फिर जल पी कर रहा और अंत में वायु पीकर ही तपस्या करने लगा। भगवान इस तपस्या से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उस महात्मा रूपी प्राणी को दर्शन दिया। भगवान को साक्षात पाकर वह महात्मा अत्यंत प्रश्न हुआ और नाना विधि भगवान का पूजन अर्चन एवं सत्कार किया। फिर भगवान ने कहा “अब तो सब हो गया मैं चलूं”। महात्मा को धक्का लगा, सोचा असली बात तो रह ही गई, उसने सकुचाते हुए विनय पूर्वक कहा “भगवान सब तो हो गया, कुछ प्रसाद भी हो जाए”। भगवान बोले मुझे पता था तू लालची है इस लिए में यह दो शंख लेकर आया हूँ पहला शंख ऐसा है कि इससे तू जो भी मांगेगा देगा, दूसरा शंख प्रसिद्ध ढपोर शंख है इससे तू जो भी मांगेगा उसका दुगना देगा, बोल कौनसा शंख चाहिए? महात्मा ने कहा “ दूसरा भगवान्”। भगवान ने कहा मुझे मालूम था तू यही शंख लेगा चल ले। महात्मा शंख लेकर घर पहुंचा। शंख को पवित्र वेदी पर रख कर फूल अक्षत जल चढ़ा कर महात्मा ने कहा “मुझे 1 लाख रुपए दो”। शंख बोला “दो लाख लो”। महात्मा बोला “ एक ही लाख दो”। शंख बोला “दो लाख लो”। अच्छा महात्मा बोला “ ...

सिर्फ पोस्ट कार्ड ::विकुति

    मेरे एक पिछड़े हुए मित्र है। कितने पिछड़े है इसी से समझ लीजिए कि आज भी वे मोबाइल नहीं रखते। एक बार मैने कहा स्मार्ट तो तुम क्या समझोगे एक बटन वाला ही रख लो ठीक रहेगा कहने लगे भाई मोबाइल से कोई विरोध नहीं है , लेकिन दिन भर ऑफर आते रहते है, किसको किसको ना कहे अगर एक भिखारी को भी फेरा मंगवा दो तो दुख होता है, आखिर दया धर्म भी कोई चीज है। इन्हीं मित्रवर को मुझे पोस्ट कार्ड लिखना होता है, वे भी मुझे लिखते है। मैं पोस्टकार्ड लेने डाकखाने पहुंचा। एक खाली काउंटर पर गया। हाथ में नोट लहराते हुए मैने कहा “सर एक पोस्ट कार्ड”। बाबूजी नीचे झुके हुए मोबाइल देख रहे थे सिर उठाकर उन्होंने हल्की हंसी बिखेरते हुए मेरी ओर ऐसे देखा जैसे संत अग्यानी सांसारिको को देखता है। बोले “आधार”। मैंने अचकचा कर कहा “एक पोस्ट कार्ड के लिए आधार”। वे बोले अंकल यही तो दिक्कत है में दिन भर बैठा बैठा क्या यही समझाता रहूं आप ने तो कह दिया एक पोस्ट कार्ड आप जानते है पोस्ट कार्ड क्या है? आज कल आतंकी इसका इस्तेमाल कर रहे है जब मोबाइल पकड़े जाने लगे तो उन्होंने पोस्ट कार्ड अपना लिया अभी कुछ दिन पहले एक आतंकी सरगना ने...

मस्क भाई को एक चिट्ठी:: विकुति

              प्रिय भाई मस्क,                              आशीर्वाद   बहुत दिनों से खत लिखने को सोच रहा था लेकिन समयभाव के कारण लिख नहीं पाया। आप तो मुझे नहीं जानते होंगे लेकिन में आप को बहुत दिनों से ठीक से जानता हूँ । इसमें आप की कोई गलती नहीं है। ऐसा है कि मेरे गांव में एक बड़े सेठ थे ( बड़े का बुरा न मानिएगा आप से तो वे बहुत छोटे थे) उनको गांव का बच्चा बच्चा जा नता था लेकिन वे बहुत कम लोगों को जानते थे, कारोबारी आदमी थे, कारोबारी लोगों से ही मुलाकात हो पाती थी। वे बहुत व्यस्त रहते थे। उनकी दिनचर्या की एक संक्षिप्त बानगी प्रस्तुत है। सुबह सुबह आस पास के छोटे छोटे गांवों से माल लादकर खच्चर आ   जाते थे, दोपहर तक माल उतार कर पल्लेदार गोदाम में रखते थे, और दोपहर के बाद यही खच्चर माल लादकर बाजार ले जाते थे। मुनीम जी दिन भर बीड़ी  पीते हुए एक बोरे पर बैठ कर माल की आमद और निकासी दर्ज करते रहते थे और सेठ जी खांसते थूकते हुए पल्लेदारों पर चिल्लाते रहते थे। लक्ष्मी जी कृ...

सैर के वास्ते थोडी सी ज़मीं और सही.....:: विकुति

Image
    मैं सारी दुनिया घूमकर बोर हो चुका था। जहाँ भी पहुंचा वहाँ पहले ही पहुंचे लोग बर्गर ,   पिज्जा खा रहे होते या यह पता लगता कि वहां पर लोग आते-जाते रहते हैं। बोरियत के इन्हीं दिनों में मुझे रतन मिला वह भी मेंरी ही तरह का आवारा इंसान था।उसके पास भी दुनिया में इधर-उधर घूमने के सिवा कोई काम नहीं था। हम दोनों के घरवाले भी हमसे काफी दुखी हो चुके थे। मिलने पर हम दोनों ने एक दूसरे की आँखों में देखा और एक दूसरे की पीड़ा पहचान ली।फिर हमलोग अक्सर मिलने लगे।एक दिन रतन मुझसे मिला वह  जल्दी में था। उसने इधर-उधर देखा और मेरे कान के पास मुँह ले जाकर बड़े रहस्यमय अंदाज में कहा- कल वहीं टीले वाले पेड़के पास 5 बजे मिलते है. एक बहुत धांसू आइडिया है।" रतन कोई भरोसे का आदमी नहीं है लेकिन उसके  आज के अंदाज से मुझे भरोसा हुआ।   अगले दिन जब में पेड़ के पास पहुँचा तो रतन वहाँ पहले से मौजूद था और कौवों को बड़े गौर से देख रहा था। उसने इशारा किया और में उसके पास जमीन पर बैठ गया। अब उसने कौवों पर से अपन ध्यान हटाया और रहस्यमयी मुसकान बिखेरी। बिना किसी भूमिका के उसने उत्साह पूर्वक कहा...

तापत :: विकुति

Image
           यह कोई कहानी है या नहीं है। इसका फैसला तो आप ही करेगे। मैं स्वयं भी दुविधा में हूँ, अपने फैसले से अवगत कराएगें तो आभारी हूँगा। मेरी जानकारी में शब्दकोश में तापत जैसा कोई शब्द नहीं है लेकिन शब्दों से अगर भाव, विचार या वस्तुओं का संप्रेषण होता है तो इसे शब्द मानना ही होगा। इस शब्द का प्रयोग चंटू करते हैं और यह उनका निजी शब्द है। चंटू के नाम का भी सामान्यतः कोई अर्थ नहीं है किन्तु मुझे बताया गया है कि यह शब्द “चंट”से बना है। चंटू को चंट देखकर उनके पूज्य पिताजी ने उनको इस विश्लेषण या संज्ञा से नवाजा है जो अब प्रचलित है। यद्यपि स्कूल में चंटू को और किसी शास्त्रीय नाम से ही विभूषित किया जाएगा यह प्रायः निश्चित ही है। चंटू के हठ और अवज्ञा को देखकर ही उनको घर में इस विश्लेषण से नवाजा गया प्रतीत होता है। अब मैं तापत के विमर्श पर आता हूँ-चंटू इस शब्द का इस्तेमाल पानी के लिए करते हैं यद्यपि पानी और तापत में उच्चारण या ध्वनि के हिसाब से कोई साम्य नहीं है किन्तु चंटू इसे पानी के लिए क्यों इस्तेमाल करते हैं? यह बाल मनोविज्ञानियों के विचारण का प्रश्न है, यह मै...

एक ऐतिहासिक क्षण की गवाही :: विकुति

Image
    प्रश्न यह है कि क्या अपने उद्देश्य, जनता को बता दे हम, या उन्हें अटकल लगाते रहने दे, हमारे उद्देश्य जान कर लोग सन्न रह जाएंगे, पर यह मौन भी तो उन्हें सन्न ही किए हुए है, मौन ही लोगों को, संतुलन हीन बना देने को काफी है, यह उनको हर दिशा में आशा करने देता है, हम स्पष्ट करदे तो सकता छा जाएगा, और वे जड़ पड़े रहेंगे, हम अपने मन की जब करेंगे, जो उद्देश्य  हमारे है इतने अविश्वस्नीय, की जब हम बताते है कोई नहीं मानता, क्षमा करे व्यर्थ की बात मै ले बैठा................ बदले में मैने वादा किया है कि बच्चे लौटा दूंगा। (जान बूझकर मैने यह नहीं कहा कि जिंदा लौटा दूंगा) (अमेरिकी कवि जॉन पाकर ने भारत प्रवास के दिनों में नई दिल्ली में "महामहिम" शीर्षक से एक कविता पढ़ी थी उसी का अंश)     एक बड़े चैनल की मशहूर एंकरा 9 बजे प्रातः ही संभावित ऐतिहासिक स्थल पर पहुंच गई थी। अवसर के अनुकूल श्वेत वस्त्र धारण कर रखे थे। उसने आरंभ में ही कहा यह एक ऐतिहासिक क्षण है मैने मन ही मन कहा हम साथ साथ है। उसने आगे जारी रखा जो अभी होने वाला है वह कानून के राज का एक नया इतिहास लिखने वाला है, आप दू...

घिघियानोज़ फॉल विंटर कलेक्शन उर्फ ‘का सिंगार ओहि बरनौं, राजा’ :: विकुति

Image
  घिघियानोज़ फॉल विंटर कलेक्शन उर्फ ‘ का सिंगार ओहि बरनौं, राजा ’         आईआईएम अहमदाबाद में वह क्लास चल रही थी, जिसमें सफल व्यक्तियों का जीवन चरित्र सुन कर छात्रों को प्रेरित किया जाता था । आज मशहूर फैशन डिजाइनर घिघियानो का जीवन चरित इस उद्देश्य से लिया गया था । इस अवसर पर प्रोफेसर ने जो कहा वह अंग्रेजी में था किंतु अनपढ़ पाठकों के लिए मैं उसे हिंदी में अक्षरशः से दे रहा हूँ।  प्रोफेसर ने कहा “प्रिय छात्रों प्रत्येक मनुष्य का एक सपना होना चाहिए और यदि नहीं है तो उसे देखना चाहिए फिर, इस सपने का पीछा करना चाहिए यदि आप ऐसा करेंगे तो आपके सपने को सत्य बनाने के लिए यह पूरी कायनात आपके पक्ष में साजिश करेगी (यहां प्रोफेसर ने पाउलो कोएलो का नाम नहीं लिया ) ऐसा ही घिघियानो के साथ हुआ, मैं बताता हूं ,कैसे ? यहां सबसे पहले यह जानना जरुरी है कि ‘घिघियानो ‘  का नाम पहले ‘घिघियानी’ था । बाद में सफल होने पर उसने ‘नी’ की जगह ‘नो’ कर दिया था। घिघियानो नाम घिघियानी की अपेक्षा अधिक इंप्रेसिव और विदेशी लगता था । अपने प्रारंभिक दिनों में घिघियानो एक निहायत चंपू और लंपट क...