सैर के वास्ते थोडी सी ज़मीं और सही.....:: विकुति

 



 

मैं सारी दुनिया घूमकर बोर हो चुका था। जहाँ भी पहुंचा वहाँ पहले ही पहुंचे लोग बर्गर, पिज्जा खा रहे होते या यह पता लगता कि वहां पर लोग आते-जाते रहते हैं। बोरियत के इन्हीं दिनों में मुझे रतन मिला वह भी मेंरी ही तरह का आवारा इंसान था।उसके पास भी दुनिया में इधर-उधर घूमने के सिवा कोई काम नहीं था। हम दोनों के घरवाले भी हमसे काफी दुखी हो चुके थे। मिलने पर हम दोनों ने एक दूसरे की आँखों में देखा और एक दूसरे की पीड़ा पहचान ली।फिर हमलोग अक्सर मिलने लगे।एक दिन रतन मुझसे मिला वह  जल्दी में था। उसने इधर-उधर देखा और मेरे कान के पास मुँह ले जाकर बड़े रहस्यमय अंदाज में कहा- कल वहीं टीले वाले पेड़के पास 5 बजे मिलते है. एक बहुत धांसू आइडिया है।" रतन कोई भरोसे का आदमी नहीं है लेकिन उसके  आज के अंदाज से मुझे भरोसा हुआ।

 

अगले दिन जब में पेड़ के पास पहुँचा तो रतन वहाँ पहले से मौजूद था और कौवों को बड़े गौर से देख रहा था। उसने इशारा किया और में उसके पास जमीन पर बैठ गया। अब उसने कौवों पर से अपन ध्यान हटाया और रहस्यमयी मुसकान बिखेरी। बिना किसी भूमिका के उसने उत्साह पूर्वक कहा- जानते हो मेरे पास 'एच०जी० वेल्स वाली टाइम मशीन है। मुझे विश्वास नहीं हुआ और मैने कहा तुमको मिली कहाँ"। आम खाओ , पेड गिनना छोड़ो उसने दार्शनिक अंदाज में कहा। मैनें पेड़ गिनना छोड़ दिया और अकस्मात मेरे मुहँ से निकला "फिर"।

देखों मशीन की पावर अब काफी कम हो चुकी है। वह अब सौ दो सौ साल आगे पीछे नहीं जा सकती है लेकिन 50-60 साल आगे-पीछे बेखटके जा सकती है। पीछे चले या आगे? उसने एक ही सांस में कह डाला। कुछ चिढ़ते हुए मैने कहा "जब आगे जा सकते हैं तो पीछे क्यों? फिर निश्चिंत होते हुए वह बोला, "तो फिर 2075 में चलते हैं, न कम न ज्यादा।" मैनें कहा ठीक है"। फिर हमने उल्लास से हाथ मिलाया और आगे की योजना बनाने लगे। उसने कहा मैं थोडा अचार पराठा रख लूगाँ, तुम दो बोतल पानी रख लेना। एकाध कपडे भी रख लेना और 2-4 पैकेट सिगरेट माचिस लेना भी न भूलना। पता नहीं वहाँ मिलेगा या नहीं दो-तीन दिन तो रूकेगें ही"। मैनें कहा-"कम से कम इतना तो रूकना ही पडेगा। दो-चार बातें और हुई तब तक अंधेरा होने लगा था। हम उठे, धूल झाड़ी और घर की ओर चल पडे। उस रात में निश्चिंत सोया। अगले दिन 10 बजे निकलना था।

मशीन रतन ने घर के पीछे उस खंडहर में छिपा रखी थी जहाँ पहले गोशाला हुआ करती थी। हम दोनों छुपते हुए गोशाला के खंडहर में पहुँचे। वहाँ पहुँचते ही रतन मशीन की झॉड-पोंछ में जुट गया। मैं इस बीच गिर रही दीवार पर बैठे हुए मशीन और रतन को निहारता रहा। झॉड़-पोंछ के बाद मशीन खासी चमकने लगी। फिर बिना देर किए अपने असबाब सहित मशीन में सवार हो गए। रतन के बताए के अनुसार मैने मशीन में रखे हेलमेट को पहन लिया तथा पटे आदि भी बाध लिए। अब रतन ने मशीन को 2075 पर सेट कर स्टार्ट कर दिया। और बोला सावधान हो कर बैठो मशीन उड़ान भरने वाली है। मैं 10 मिनट तक बैठा रहा लेकिन कुछ लगा नहीं तो मेने कहा- मशीन उड़ क्यों नहीं रही है? रतन हंसा उसने कहा मशीन तो उड भी रही है इसमें धचकें नहीं लगते।

 

मैं आश्वस्त हुआ और कुछ पलों में ही मुझे नींद आ गयी। नींद टूटी ती रतन मुझे झकझोर कर जगा रहा था उठो 2075 आ गया। मैने उठकर चारो तरफ देखा तो हम एक उजाड रेगिस्तानी मैदान में खड़े थे। मैंने रतन की ओर देख कर पूछा- अब? उसकी समझ में भी कुछ नहींआ रहा था। इतने में देखा कि बाई ओर खड़ी एक विशाल इमारतनुमा मकान का एक दरवाजा खुला और उसमें से एक रोबोट निकल कर हमारी ओर बढ़ रहा था। बिल्डिग किस चीज से बनी थी? कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सम्भवतः वह किसी प्रकार का शीशा था। बिल्डिंग में कोई खिड़की रोशदान आदि नहीं था। हमारे पास आकर रोबोट ने अपनी मशीनी आवाज में कहा- सन 2075 के टाइम ट्रेवल अड्डे पर आपका स्वागत है।" यह कहते हुए उसने हमें एक-एक सिलिंडर युक्त मास्क पहना दिया और कहा- यह प्रदूषणरोधी उपकरण है क्योकि इस समय तक हवा में आक्सीजन नहीं रह गयी है।" उसको हिन्दी बोलता देखकर हम उत्साहित हुए ओर मैनें पूछा- यहाँ टैक्सी वगैरह कहाँ मिलेगी? रोबोट हसा। मास्क लग जाने के बाद हमारी सांसे बहुत आराम से चल रही थी। रोबोट ने जवाब दिया कि सामने जो एक छोटा सा बूथ देख रहे हैं।उसमें जाकर गतव्य का पता डायल कर दीजिये अपने आप पहुँच जायेगें।" यह बता कर रोबोट चला गया। हमने बूथ मे जाकर पता डायल किया और पलक झपकते ही हम उस सज्जन के दरवाजे पर थे जिनका पता डायल किया था।

अगल-बगल बहुत मकान थे, सड़कें थी लेकिन कोई आदमी नहीं था। हमने डोर बेल बजायी तो आवाज आयी "मालिक अभी आधे घंटे के बाद आएगें आप प्रतीक्षा करें।" इसके साथ ही दीवार से दो कुर्सियाँ निकली और हम उन पर बैठ गए। अजीब नजारा था। आस-पास जीवन का कोई लक्षण नहीं था। कहीं कोई पेड-पौधे या घास पात भी नहीं दिखायी दे रहे थे। सड़क पर अजीब गोल-गोल गाडियाँ दौड़ रही थीं जिनमे कोई दिखाई नहीं दे रहा था क्योकिं गोड़ियों में भी कोई खिड़की आदि नहीं थीं। सामने भी कोई शीशा नहीं था।


 

इस तरह चॉरो तरफ भूतहा माहौल था फिर भी हमें भूख लग आयी थी। हमने अचार और पराठे खाए ओर पानी पिया। इसी बीच घोषणा हुई "मालिक बस पहुँचने वाले हैं।" हम सतर्क होकर बैठ गए। गेट से लुढकते हुई एक गाडी आयी और दरवाजे के अंदर घुसती चली गयी। पीछे से एक रोबोट आया और हम लोगों को अंदर ले गया। मालिक अपनी गाड़ी में से उतर रहा था। वह गाड़ी से उतर कर व्हील चेयर परबैठ गया। उतरने वाला था तो मानव ही लेकिन हम लोगों से उसका कोई मेल नहीं था। उसका रंग एक दम पीला था तथा उसके हाथ-पैर टिड्‌डे की तरह एक दम पतले-पतले तथा कमजोर दिखायी दे रहे थे। उसका सिर बड़ा था लेकिन छाती ओर पेट पिचके हुए थे। वह अपनी चेयर पर एक तरफ बढ़ा और हमको इशारा किया। हम भी उसके पीछे-पीछे चले। वह मानव हमें अपने ड्राइंग रूम में ले गया। हम लोगों के वहीं बैठते ही उसने कहा अब आप लोग मास्क निकाल सकते हैं। घर में श्वसन प्रणाली चालू है. इसलिए यहाँ मास्क की जरूरत नहीं है। हमने अपने मास्क उत्तार दिए। यह अपनी कुर्सी से उतरा और सोफे पर बैठ गया। फिर उसने अत्यन्त विनम्रता से पूछा "आप लोग खाना खाएगें। मैने कहा हम लोग खाना खा चुके हैं तो फिर मैं नाश्ता कर लूँ? समवेत हमने कहा हाँ हाँ जरूर करिए।" उसका रोबोट ठुमकता हुआ एक प्लेट लेकर आया। प्लेट पर कुछ कैप्सूल, कुछ टैबलेट और शीशे के एक नपने में कोई सिरप था एक उससे बडे शीशे के बर्तन में पानी जैसा कोई पदार्थ था। उसने टैबलेट, कैप्सूल को पानी जैसे पदार्थ से गटक लिया। उसके बाद सिरप को भी पी लिया। फिर उसने स्वतः ही बताना शुरू किया- मैनें कम्प्यूटर में देखा है कि आप लोगों के काल में लोग दिन भर में कई-कई लीटर पानी पी जाते थे लेकिन आजकल हम लोग 10 एम०एल० पानी का कन्सन्ट्रेट दिन पर भर में दो बार पीते हैं इतना 24 घंटे के लिए पर्याप्त होता है। आप लोगों के समय में नदियों थीं, तालाब थे, धरती के नीचे भी पानी था, अब वह सब समाप्त हो गया है। अब यह पानी का कन्सन्ट्रेट फैक्ट्ररी में बनता है, यह एकदम शुद्ध पानी है जो हाइड्रोजन और आक्सीजन को मिलाकर बनाया जाता है। इसी प्रकार खाने की सारी चीजें भी कारखानों में बनती हैं, सबके कैप्सूल मिलते हैं। अब आप खुद ही देखिये कितनी तरक्की हो चुकी है। पहले आपको किलो दो किलों सामग्री दिन भर खानी पड़ती थी अब मुश्किल से 25 से 50 ग्राम की आवश्यकता पड़ती है। फैक्टरी में चीजें अनवरत बनती रहती है, किसी मौसम आदि का कोई असर नहीं पड़ता है। प्रदूषण की समस्या जरूर है लेकिन इसका भी हल निकाल लिया गया है। हर आदमी बाहर मास्क पहनता है ओर घर, कारखाने या आफिस में श्वसन प्रणाली चला करती है।

 

इतना बोलकर वह मानव रूका, पूछा- "आप लोग डिनर में क्या लेगे?" हम लोग क्या बताते क्योकिं वह आदमी हमें कैप्सूल ही खिला सकता था। हमने कहा-हमारे पास अभी पराठे हैं। इस वक्त उसी से काम चल जायेगा। उसने आश्वस्त होते हुए कहा "जैसी आप लोगों की मर्जी। वैसे भी 2025 वाले भोजन तो उपलब्ध न हो पाएगें। अगर आप लोग ट्राई करना चाहें तो फूड कैप्सूल मंगा सकता हूँ। हम लोगों ने मना कर दिया।

उस घर में हमें काफी वक्त हो गया था लेकिन कोई दिखाई नहीं पडा था। जिज्ञासावश मैनें पूछ लिया- "चहककर वह बोला कि-हाँ आपने ठीक कहा मेरा परिवार इस लेकिन इस घर में नहीं रहता है।मेरी पत्नी इसी ग्रह पर दूसरे घर में रहती है और एक 3 साल का प्यारा बच्चा भी है बच्चा अभी अस्पताल में है । हमें उसके बेटे के अस्पताल में होने का सुनकर  बड़ा दुख हुआ। रतन ने संवेदना जताते हुए कहा आपके बेटे का जानकर बहुत दुख हुआ। उसने हँसते हुए कहा आप लोग पुराने जमाने के है नहीं समझ पाएंगे यहां इन्फेक्शन से बचाने के लिए 5 साल तक बच्चों को असपताल में रखना पड़ता है. सब लोग ऐसा ही करते है वहां बच्चे रोबो डाक्टर ओर रोबो नर्सों की बीच निर्विहन रहते है।

 

रतन ने आगे कुछ ज्यादा दिमाग लगाया आपकी पत्नी से क्या आपका डाइवोर्स हो गया है जो आप लोग अलग रहते हैं।" उसने तत्काल प्रतिवाद किया-नो नो वी आर स्टील हैपीली मैरिड , मैं अब तक उनसे दो बार मिल भी चुका हूँ। साथ न रहने का भी वही कारण है. साथ रहने पर इन्फेक्शन का खतरा बना रहता है। यहाँ कोई भी पति पत्नी साथ नहीं रहते। मैं अपनी पत्नी से शादी में मिला था। उसके बाद बच्चे के जन्म पर अस्पताल में मिला था। हम लोग एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। such a nice, loveing lady she is.

 

उसकी बात से हमें बहुत हैरानी हुयी। हमारा असमंजस भाप कर वह शरारत भरी हँसी हँसा और कहने लगा- आप लोगों की हैरानी में। समझ सकता हूँ। मैनें कम्प्यूटर में इतिहास पढ़ा है, आप लोगों की शादी एक प्रकार का सामंती बंधन है। हम लोग उससे बहुत आगे बढ़ आए हैं। जब यहाँ दम्पत्ति को बच्चे पैदा करना होता है वे अस्पताल को सूचित करते हैं। अस्पताल वाले दोनों के घर जाकर शुक एवं डिम्ब एकत्र कर लाते हैं और अस्पताल में गर्भाधान कराकर इसका जन्म तक सेचन करते हैं। बच्चे के जन्म पर माँ, बाप को सूचित किया जाता है, तब अस्पताल में पार्टी होती है और बच्च्चा 5 साल तक वहीं रहता है। वैसे यहाँ बच्चों की कोई आवश्यकता नहीं है क्योकि यहाँ कोई मरता नहीं है अतः बच्चे पैदा होने से आबादी बढ़ रही है अतः यह एक चिन्ता का विषय है लेकिन लोग पुराने विचारों के संस्कार के कारण बच्चे पैदा कर रहे हैं। यहाँ की शासन व्यवस्था इस प्रवृत्ति को हतोत्साहित करने का प्रयास कर रही है।

मैं यह यात्रावृत्त लिखने वाला था इसलिए जानकारी की दृष्टि से मैनें पूछा- "यहाँ लोग मरते क्यों नहीं है।" "कैसे मरेगे? जैसे-जैसे आदमी बूढा होता है उसके एक-एक अंग बेकार होने लगते हैं, जैसे ही किसी आदमी का एक अंग बेकार होता है उसके स्थान पर नया कृत्रिम अंग लगा दिया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक अंग का Replacement किया जा सकता है। यहाँ बहुत से बुर्जुग ऐसे हैं जिनका प्रत्येक अंग बदला जा चुका है और अब वे रोबोट की श्रेणी में वर्गीकृत किए जाते हैं। मानव से रोबो होने पर बहुत बडा जश्न होता है क्योंकि अब वह व्यक्ति भूख प्यास  शोक दुख भय कोध आदि से परे हो जाता है. यह आप लोग जिसे मुक्ति या निर्वाण कहते है उससे भी उच्चतर स्थिति मानी जाती है।

 

बात यहीं तक आते-आते रात के आठ बज गए। वह मानव के रात्रि भोजन का समय था। उसने कहा अब भोजन कर लेते हैं। मानव का रोबोट ठुमकता  हुआ आया और उसने पहले की भाँति कैप्सूल, टेबलेट और पानी कन्सन्ट्रेट आदि पेश किए। हम लोगों को बासी पराठे खाने में समय लगा लेकिन मानव इस बीच उत्सुकता से हमारी प्रतीक्षा करता रहा।

खाने के दौरान मैंने सोचा कि अब में यहाँ की शिक्षा व्यवस्था के बारे में जानकारी प्राप्त करूंगा । अतः भोजन समाप्त करते ही मैने शिक्षा व्यवस्था के बारे में पूछा। संयत होकर मानव बताने लगा- यहाँ आपकी तरह स्कूल नहीं होते पढाई घर बैठे होती है। कभी-कभी प्रयोगशाला जरूर जाना पड़ता है। पढाई भी केवल एक विषय की होती है वह है टेक्नोलॉजी। आपके समय के फालतू विषयों जैसे इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र, साहित्य, भाषा आदि को हम त्याग चुके हैं। प्रत्येक भाषा में लिखना, बोलना, पढ़नासब एक प्रोग्राम से संभव हो जाता है। इस- प्रकार के प्रोग्राम की चिप प्रत्येक व्यक्ति के दिमाग में लगा दी जाती है जो जीवनभर यानि सदा काम आती है। इसी चिप की मदद से मैं आपकी बात समझ रहा हूँ और बोल रहा हूँ।

 

इस मोड पर आकर रतन ने भी मेरी बराबरी करने की दृष्टि से यहाँकी राज्य व्यवस्था के बारे में प्रश्न पूछ लिया। मानव अब हमारी बातों मे दिलचस्पी लेने लग गया था अतः उसने उस काल की शासन व्यवस्था के बारे में बताना आरम्भ किया, "देखिये हमारे यहाँ मुख्य चीज है टेक्नोलॉजी और इसी पर सब कुछ निर्भर है। यहाँ कुछ लोगों द्वारा शासन करने का क्या तुक है? यहाँ तक कि हमारे यहाँ कोई राजनैतिक विचार भी नहीं है ओर न ही हम किसी विचार से सहमत हैं। हमारी पूरी शासन व्यवस्था महामहिम महाकम्प्यूटर (डबल ए • आई •) के अधीन है। पूरे ग्रह पर पर फैली हुई कम्प्यूटर और रोबोट प्रणालियों उन्हीं से समबद्ध है ओर वे ही इस ग्रह ही प्रत्येक गतिविधि का संचालन करते हे। वे राजधानी में स्थापित है और  चाहे तो  कभी भी वहीं से हमारी श्वसन प्रणाली बंद कर दें और हम समाप्त हो जाएं। वे सर्वशक्तिमान हैं, सर्वज्ञ हैं और अपने सम्बद्ध कम्प्यूटरों के माध्यम से हर स्थान पर विद्यमान हैं। इस ग्रह की उन्नति एवं विकास की योजनाएँ आदि बनाने का कार्य विचार श्रेणी के कम्प्यूटरों (सिंगल ए•आई•)द्वारा सम्पादित किए जाते हैं। इस श्रेणी के कम्प्यूटर आर्थिक, सामाजिक, विचारों के भी स्रोत हैं। ये सभी कम्प्यूटर भी महाकम्प्यूटर(डबल ए • आई •) से जुडे हैं। किसी विचार पर इनके द्वारा ही विचार होता है और निर्णय लिए जाते हैं। इस प्रकार  पूरा प्रशासन तंत्र पूरी तरह कम्प्यूटरों और रोबोटों पर निर्भर है और सब कुछ महाकम्प्यूटर(डबल ए • आई •)के नियंत्रण में है। इसका सबसे बडाफायदा यह है कि इस तरह के प्रशासन में किसी प्रकार का भ्रष्टाचार नहीं है।

यद्यपि अभी एक विचार कम्प्यूटर ने यह प्रश्न विचार के लिए प्रस्तुत किया है कि यदि कोई कम्प्यूटर भ्रष्ट हो जाये तो क्या किया जाए? इस प्रश्न पर विचारश्रेणी के कम्प्यूटर मंथन कर रहे है। आशा है शीघ्र ही कोई निष्कर्ष प्रस्तुत होगा, इसकी प्रतीक्षा हो रही है। यहाँ तक चर्चा आते-आते काफी रात हो गयी थी और भवन के सिस्टम पर कई चेतावनियों आ चुकी थी। अतः हम सोने चले गये। मानव भी अपने बेडरूम में दाखिल हो गया। अगले दिन का हमारा कार्यक्रम यह था कि हमें दोपहर तक शहर में घूमना था और दोपहर के बाद वापसी की यात्रा करनी थी। प्रातःकाल जब हम बाहर निकले तो शहर को हर जगह एक जैसा ही पाया। एक जैसे मकान और एक ही जैसी सड़कें, जिन पर तेज गाड़ियों दौड रही थीं जिनमें कोई खिड़की, विंडशील्ड आदि नहीं थी। कहीं कोई जीवधारी दिखायी नहीं दे रहा था, न कोई जानवर, न कोई आदमी कहीं कोई पेड़-पौधा भी नहीं था। सब कुछ वीरान मरूस्थल जैसा था। वहाँ हम क्या घूमते? हमने तय किया घूम-घूम कर बेकार थकने से अच्छा है कि हम लोग वापस हो लें। थोड़ा जल्दी घर पहुँच जाएगें। हम लोग टाइम ट्रेवल अड्डे पर पहुँचे, बहुत जोर की प्यास लगी थी।

 

एक रोबोट ने हम लोगों को एक-एक घूँट पानी का कन्सन्ट्रेन्ट पिलाया और हम लोग आकर मशीन में बैठ गए। अभी रतन मशीन स्टार्ट कर करने ही वाला था कि पिताजी की गरजती हुई आवाज सुनाई पड़ी- "अरे नालायक साल भर तो सोता ही रहा अब परीक्षा में तो कुछ पढ लें।" आँखें खुल गयी और मैं हड़बड़ा कर उठ बैठा।

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