हथकड़ी, हवाई जहाज और हमारा आत्मनिर्भर भारत:: विकुति
हथकड़ी, हवाई जहाज और हमारा आत्मनिर्भर भारत
जेट इंजन वाला भारत, साइकिल चेन वाला भविष्य
कहते हैं, "जहाज में उड़ान भरने से पहले सोच लो कि उतरना कहाँ है।"लेकिन उड़ान बलात है और ठिकाना कप्तान को पता है। गनीमत है की दोस्ती निभाई गई और हवाई जहाज से भेजा वर्ना मेक्सिको के रस्ते पैदल ही टहला देते । 24 घंटे का सफ़र और एक संडास -“दो पांखन के बीच में बैठ भारतीय रोय।”
भारत के मित्र राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 205 भारतीयों को हथकड़ी लगाकर मिलिट्री प्लेन से भेज दिया, मानो कोई हवाई जहाज न हो कोई उड़ती हुई काल-कोठरी हो , कोई औपनिवेशिक काल की जेल की गाड़ी हो। अभी हजारों लाइन में इंतज़ार कर रहें हैं।
लेकिन साहब, सवाल यह नहीं कि इन भारतीयों के साथ ऐसा क्यों हुआ, असली सवाल यह है कि वे वहाँ गए ही क्यों? आखिर क्यों हमारे देश के नागरिकों को अमेरिका में अवैध रूप से घुसने की नौबत आ रही है? क्यों उन्हें ऐसे देशों का रुख करना पड़ रहा है जो हमारे ‘विश्वगुरु भारत’ को ‘डिपोर्टेबल इंडिया’ की श्रेणी में रखते हैं?
अब इन मूर्खों को क्या कहा जाय जो विश्व गुरु का स्वर्ग छोड़ कर उन विधर्मियों के बीच बसने गए थे। यह भी पता करना चाहिए इने पैर में हवाई चप्पल है या नहीं ? अगर हो, तो संतोष करिए की कमसे कम महामानव का सपना तो पूरा हो रहा है। अरे ! इस अमृत काल में यहाँ रहते तो कमसे कम अब तक दो तीन अमृत स्नान ही कर लिया होता। आखिर वहां क्या है ? अगर ट्रम्प की हैसियत है तो एक ही भव्य दिव्य डिजिटल महाकुम्भ करा के दिखा दें। अरे! यहाँ दिव्य महा कुम्भ में अमेरिका की कुल आबादी से अधिक लोग हर समय बालू पर टहलते दिखाई पड़ते है। मानव का परम पुरुषार्थ मोक्ष है जो यहाँ हर पल सहज ही उपलब्ध है।
कितनी लज्जा की बात है वहां मात्र एक तुक्छ चाकरी के लिए चले गए थे हमारे यहाँ तो कहा गया है “निसिद्ध चाकरी, भीख निदान “
हाय हतभागियो ! तुम्हे विश्व गुरु की प्रतिष्ठा का भी ध्यान नहीं रहा
जिस देश में हर चाय की टपरी को ‘स्टार्टअप कहा जाता हो, और इंजीनियर जोमैटो पर खाना डिलीवर कर रहा हो वहां रोजगार नौकरी क्या खोजना ? वह गंगा में कंघी करने के बराबर समझो।
रहीम ने कहा था—"रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय।" ठीक कहा था अब क्या किया जा सकता है ? व्यथा न मन में रह पा रही है, न शरीर में। लोग ‘हर घर तिरंगा’ से ज्यादा ‘घर-घर वीज़ा’का सपना देख रहे हैं।
NRIओं की देशभक्ति का कोई जवाब नहीं। भारत-भारत चिल्लाते हैं अमेरिका में बस जाते हैं।
सोशल मीडिया पर देशभक्ति दिखाने वालों का खुद का बच्चा विदेश में नौकरी पा जाए तो पटाखे फोड़ते हैं। इन महामंडलेश्वरों के हिसाब से तो —"देशभक्ति वीज़ा लगने तक सीमित होती है।" मज़े की बात ये है कि जो सबसे ज्यादा ‘देशभक्ति’ का ज्ञान देता है, वह खुद NRI बनकर विदेश में ऐश कर रहा होता है। यहाँ देशभक्ति भी फुल टाइम नहीं, पार्ट-टाइम जॉब हो गई है। चुनाव के समय ओवरटाइम होती है।
विश्वगुरु , जब कहते हैं कि भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, तब एक किसान की आत्महत्या की खबर भी साथ में आती है। जब कहते हैं कि "मेक इन इंडिया"सफल हो रहा है, तब एक इंजीनियर जोमैटो पर खाना डिलीवर करता दिखता है। जब दावा होता है कि भारत चाँद पर पहुँच गया है, तब एक गरीब अपने घर का किराया भरने के लिए संघर्ष करता नज़र आता है।
सच्चाई यही है कि देश में दो भारत बन चुके हैं—एक जो चमकता है, दूसरा जो चमकाने के लिए मजदूरी करता है। एक जो दुनिया के बड़े-बड़े मंचों पर देश की खुशहाली के कशीदे पढता है, और दूसरा जो उन्हीं देशों के गैर-कानूनी रास्तों से घुसने के लिए जान तक दाँव पर लगा देता है।
गरज-गरज कर टपके पानी, नेता बोले झूठ सयानी! सरकार कहती है—"देश तेज़ी से बढ़ रहा है!" नौकरियाँ उससे भी तेज़ी से भाग रही हैं। इतनी तेज भाग रही हैं की पता ही नहीं चलता वो कब अमेरिका , यूरोप और ऑस्ट्रेलिया पहुच जा रहीं हैं। मजबूरन लोगो को भी भागना पड़ रहा है।
कहने का तात्पर्य यह है कि काम इतना ‘अंतरराष्ट्रीय’ हो गया है कि अब लोग सीधे अमेरिका में नौकरी माँगने चले जा रहे हैं।अब ‘मेक इन इंडिया’ इतना सफल हो गया है कि नौकरिओं का दनादन एक्सपोर्ट जारी है और तस्करी भी हो रही है !
"सत्ता के दरबार में कौन करे सुनवाई ,
हथकड़ी लगी (वि)देश में , कैसे मुक्ती पायें ?"
डिस्क्लेमर:
कुछ लोग कह रहे हैं कि विश्वगुरु ने ट्रम्प को अभी कुछ दिन पहले फ़ोन कर के कहा था कि भाई ! आदमियो की कमी से “मेक इन इंडिया” का काम ठीक से नहीं चल प् रहा है। बहुत हर्जा हो रहा है, अगर आप हमारे कुछ लोगों को वापस भेज दें तो काम चल निकले । यह सुनकर ट्रम्प भाई चुप हो गए , फिर कहा “भाई हर्जा तो मेरा भी होगा , लेकिन आपने जब मुंह खोलकर कह ही दिया है तो तो भेज दूंगा ।”
इस बातचीत के बाद अमेरिका के अधिकारी इन लोगों के घर गए और कहा “ आप लोगों को तत्काल भारत जाना है। खर्चे, तेल-पानी की कोई चिंता नहीं है। तैयार हो जाईए।” इन लोगों ने कहा यह तो नहीं हो पायेगा। अभी मोदी जी आने वाले हैं ! यहाँ उनका स्वागत कौन करेगा ? यह कह कर उन्होंने अधिकारिओं को वापस कर दिया।
ट्रम्प ने फ़ोन करके विश्वगुरु को यह सब बता दिया । यह सुन विश्वगुरु झुंझला गए और कहा “ उन लोगों को तत्काल उनके हाथ-पैर बांध कर भेज दीजिये ।“
ट्रम्प यह सुनकर अवाक् रह गए और कहा “मित्र इस से बेइज्जती नहीं होगी?” विश्वगुरु ने कहा “आपकी बेइज्जती का क्या ? और मुझे तो इसकी आदत है । मैंने आपको बताया तो था, कि मै डेली ढाई-तीन किलो गाली खाता हूँ ।मेरा क्या ?”
फिर ट्रम्प मान गए और वे सब आ रहे हैं ।
प्रिय पाठको, इस दुविधा में मै आपसे पूछता हूँ , आप ही बताएं दोनों में क्या सही है ?
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