व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के महामंडलेश्वर : विकुति

आज ज्ञान का ऐसा आतंक मचा है कि ग्रहण करने से बचने की कोई गुंजाइश नहीं बची। यह स्वेच्छा से नहीं, बल्कि जबरदस्ती ठूँसा जाता है, जैसे गले तक भरे आदमी को पकौड़े खिलाए जा रहे हों। रहीम कह गए—"बातन के बलि होत नहीं, हाथी होत न गदहा," पर यहाँ तो बातों के बल पर हाथी को भी गदहा बना दिया जाता है। अगर किसी ज्ञानी को भनक लग जाए कि आप किसी विषय पर तटस्थ हैं, तो वह ज्ञान के गोले दागने में एक पल की भी देरी नहीं करेगा। तुरंत आपको समझाया जाएगा—"अरे, तुम्हें नहीं पता? यही तो परम सत्य है!" और जब आप डरे-सहमे पूछेंगे—"भाई, मैं थोड़ा खुद भी सोच-समझ लूँ?" तो उत्तर मिलेगा—"सोचना-वोचना छोड़ो, जो कहा जा रहा है, उसे ही अंतिम सत्य मानो!"

इसी से एक बौद्धिक गुंडागर्दी का जन्म होता है—जिसमें तर्क को रस्सी से बाँधकर खूँटे से कस दिया जाता है, ताकि वह इधर-उधर भाग न सके। अब ज्ञान गली-गली भीख माँगता नहीं फिरता, बल्कि जबरन सिर पर थोप दिया जाता है। वह सीधा आपको परोस दिया जाता है , बिना नमक-मिर्च डाले, बस कच्चा और अधपका।

पहले ज्ञानी व्यक्ति शास्त्रों और गूढ़ ग्रंथों में गहरे उतरकर ज्ञान प्राप्त करता था, अब ज्ञानी व्यक्ति व्हाट्सएप फ़ॉरवर्ड्स और गूगल के पहले पेज से सीधा ज्ञान प्राप्त करता है। पहले लोग कहते थे—"गुरु बिन ज्ञान न होई," अब कहते हैं—"फॉरवर्ड बिन ज्ञान अधूरा !"

संत कबीर कह गए थे—"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय," आज चरितार्थ हो गया है आज वास्तव में राम राज्य आया है या नहीं यह तो नहीं पता किन्तु कबीर युग ज़रूर आ गया है। इसी कारण से आज कोई भी पोथी पढ़ कर विद्वान नहीं बनता है। ज्ञान का नया सिद्धांत है—"जो ऊँची आवाज़ में बोले, वही है बड़का ज्ञानी!" अब बहस में तथ्य कम, फेंकने की कला ज्यादा काम आती है।

किसी भी मुद्दे पर दो मिनट में निष्कर्ष निकाल लेते हैं। बेरोजगारी की रिपोर्ट आती है—एक रिपोर्ट कहती है कि बेरोजगारी दर 45% हो गई, दूसरी रिपोर्ट कहती है कि ऐतिहासिक रूप से सबसे कम बेरोजगारी है! जनता तय नहीं कर पाती कि जश्न मनाए या रोए। ज्ञानीजन ऐसी तकनीक विकसित कर चुके हैं कि किसी भी मुद्दे पर दो विपरीत तथ्य इस तरह पेश किए जाएँ कि संशय बना रहे और जो ज़ोर से बोले, वही सही मान लिया जाए।जहाँ प्रमाण की ज़रूरत नहीं,चाहिए तो बस आत्मविश्वास ।  अब तर्क और तथ्य इतिहास की किताबों में मिलेंगे और सोशल मीडिया पर केवल जयकारे गूँजेंगे।

इस अद्भुत ज्ञान-विस्तार का नतीजा यह है कि अब कोई भी डॉक्टर से ज्यादा बीमारी समझता है, वकील से ज्यादा कानून जानता है, अर्थशास्त्रियों से बेहतर बजट समझाता है और वैज्ञानिकों से पहले ही जलवायु परिवर्तन के हल निकाल देता है। अब यह हाल है कि मरीज डॉक्टर से पहले गूगल सर्च कर आता है और वकील को उसकी अपनी किताबें पढ़ाकर ज्ञान देता है।

अब स्थिति यह है कि ज्ञान का अंबार इतना बड़ा हो चुका है कि हर गली-चौराहे पर ज्ञानी खड़े हैं। फेसबुक पर चाचा ज्ञान दे रहे हैं, व्हाट्सएप पर बुआ के प्रवचनों से ज्ञान की रोशनी फैल रही है, और ट्विटर (अब X) पर तो नौसिखिए भी अंतरराष्ट्रीय राजनीति के ऐसे गूढ़ रहस्य समझा रहे हैं कि खुद संयुक्त राष्ट्र भी शरमा जाए। रहीम के ज़माने में 'अधजल गगरी छलकत जाए' एक मुहावरा था, अब यह फेसबुक की टैगलाइन हो सकती है। अब तो स्थिति यह है कि "ज्ञान बाँटें, मुफ्त डेटा पाएँ" वाली योजनाएँ भी जल्द ही शुरू हो सकती हैं।अब ज्ञानी केवल गूगल से ही नहीं, बल्कि व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से भी महामंडलेश्वर की पदवी ग्रहण कर रहे हैं। इन महामंडलेश्वरों की विशेषता यह है कि ये हर विषय के ज्ञाता होते हैं—एक सुबह आयुर्वेदाचार्य, दोपहर को अर्थशास्त्री, शाम को राष्ट्रवादी चिंतक और रात में खगोलशास्त्री बन जाते हैं। इनके पास हर समस्या का एक आसान समाधान है—"ये लो फॉरवर्ड और सब ठीक!"

इन महामंडलेश्वरों का ज्ञान ना किसी प्रयोगशाला से निकला है, ना किसी शोध-पत्र में छपा है, बल्कि सीधे 'सुपर एक्सक्लूसिव व्हाट्सएप ग्रुप' से प्राप्त हुआ है। ये वो जगह हैं जहाँ इतिहास फिर से लिखा जाता है, विज्ञान को नयी परिभाषाएँ मिलती हैं और तार्किकता को हर रोज़ फाँसी दे दी जाती है। जो तर्क माँगता है, उसे "अरे! तुम्हें नहीं पता?" कहकर चुप करा दिया जाता है, और जो सवाल उठाता है, उसे सीधा ‘देशद्रोही’ या ‘बिग टेक की साजिश’ का एजेंट घोषित कर दिया जाता है।

महामंडलेश्वर की कृपा से अब विज्ञान के सिद्धांत भी लचीले हो चुके हैं। न्यूटन से बड़ा संशोधक अगर कोई है, तो वह व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का स्कॉलर ही है, जिसने 'बिना मेहनत सफलता पाने का गुरुमंत्र'  खोज निकाला है। गुरुत्वाकर्षण अब फल पर ही लागू नहीं होता, बल्कि तथ्यों पर भी लागू किया जाता है—जो तथ्य भारी हो, उसे गिरा दो!

चाहे अर्थशास्त्र की उलझन हो, जलवायु परिवर्तन की बहस हो, अंतरिक्ष की खोज हो या अंतरराष्ट्रीय राजनीति, हर जटिल समस्या का हल बस एक जोशीले फॉरवर्ड में मौजूद है। इनके अनुसार "ज्ञान वह है जो बिना पढ़े भी समझ आ जाए और तर्क वह है जिसे ज़ोर से चिल्लाने पर सही मान लिया जाए!"

अब स्थिति यह हो गई है कि यदि आपको किसी भी विषय पर एक्सपर्ट बनना हो, तो बस किसी व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के महामंडलेश्वर बन जाइये और अपने अखाड़े के ग्रुप में शामिल हो जाइए और रोज़ सुबह ‘गुड मॉर्निंग’ के साथ ‘ज्ञान प्रसाद’ प्राप्त कीजिए। फिर आप भी किसी मुद्दे पर 'ज्ञानचंद आचार्य'बन सकते हैं, जहाँ तर्क की ज़रूरत नहीं, बस आत्मविश्वास चाहिए।

अब दुनिया में कुछ भी जानना असंभव नहीं, बस सही व्हाट्सएप ग्रुप में जुड़ना ज़रूरी है।

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