मस्तिष्क में क्वांटम! चीन के वैज्ञानिकों ये क्या कर रहे हो ? ViKuTi

 

 

आख़िरकार, विज्ञान ने वह बात भी कह दी, जिसे अब तक बस आध्यात्मिक गुरुओं और नुक्कड़ पर गप्प मारने वाले चायवालों का ही विशेषाधिकार समझा जाता था—कि हमारे दिमाग़ में कुछ तो बहुत ऊँचे दर्जे की गुप्त क्रियाएँ चल रही हैं। अब तक विज्ञान की किताबों में पढ़ते आए थे कि न्यूटन ने सेब गिरते देखा और गुरुत्वाकर्षण खोज लिया। लेकिन चीन के वैज्ञानिकों ने दुनिया को बता दिया कि असली विज्ञान सेब गिरने में नहीं, दिमाग़ के भीतर 'स्पूकी एक्शन' में छुपा था!

अब तक हम अचंभित होते थे कि कुछ लोग बिना वजह किसी भी विषय पर अचानक विशेषज्ञ कैसे बन जाते हैं—जैसे भयंकर मंदी में बैठे-बीते ही मुन्नू पनवाड़ी अर्थशास्त्री बनजाते थे , टपरी पर बैठे चुहड़ युद्ध और राजनीती की भविष्यवाणी करने लगते हैं, कोई टीम इंडिया को खेलने पर ज्ञान पेलने लगता है, तो कोई पर्यावरण विशेषज्ञ . अभी तक लेखक यह आकस्मिक उपजी विद्वता का कारण समझ नहीं पाया था , अब समझ में आया कि यह कोई साधारण ज्ञान नहीं, बल्कि क्वांटम एंटैंगलमेंट का खेल था । यानी दिमाग़ के न्यूरॉन्स बिना तार के जुड़ सकते हैं, विचार बिना पूछे कहीं भी टपक सकते हैं, और एक आदमी का ज्ञान दूसरे के दिमाग़ में बिना मेहनत ट्रांसफर हो सकता है! तो न जाने इन का दिमाग किन महापुरुषों के दिमाग से “सुपर पोजीशनअवस्था में आ गया हो !

चीन के वैज्ञानिकों का ताज़ा शोध बताता है कि हमारा मस्तिष्क क्वांटम एंटैंगलमेंट की जादूगरी में उलझा हुआ है। शोधकर्ताओं ने बताया कि हमारे न्यूरॉन्स के चारों ओर लिपटी मायलिन शीथ्स दरअसल इन्फ्रारेड फोटॉनोंसे कुछ ऐसी बातें कर रही होती हैं, जिन्हें आम आदमी तो छोड़िए, ख़ुद वैज्ञानिक भी पकड़ नहीं पा रहे। मतलब यह कि जब आप ऑफिस में बैठकर ईमानदारी से काम करने का विचार भी कर रहे होते हैं, तो हो सकता है कि ब्रह्मांड के किसी कोने में कोई अफसर घबराकर रिश्वत लेने पर मजबूर हो जाए—क्योंकि आपके विचारों की तरंगें उसे स्पर्श कर चुकी होती हैं!

अब तक का वैज्ञानिक मत यह था कि मस्तिष्क एक अत्यंत "गीला, गर्म और शोरगुल भरा"स्थान है, जहाँ क्वांटम यांत्रिकी जैसी नाज़ुक और संवेदनशील चीज़ें टिक ही नहीं सकतीं। लेकिन चीन के वैज्ञानिकों ने इस धारणा को ध्वस्त कर दिया है और बताया है कि अगर सरकार चाहे, तो आपके दिमाग में क्वांटम कंप्यूटिंग चालू कर सकती है!यह बयान इतना महत्वपूर्ण है कि सरकारी योजनाकार अब इस पर मंथन करने बैठ गए होंगे कि कैसे ‘क्वांटम मन’ तैयार करके बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और महंगाई को मात्र मायलिन शीथ्स की मोटाई कम करके हल किया जा सकता है।

यानी जब आप अपनी ही पत्नी से बात कर रहे होते हैं, हो सकता है कि उसका जवाब क्वांटम फिजिक्स के नियमों के कारण आपकी सास पहले से ही जान चुकी हो! यह सिद्धांत अब तक सिर्फ़ शादीशुदा पुरुषों की पीड़ा में ही देखने को मिलता था, लेकिन विज्ञान अब इसे भी प्रमाणित करने के कगार पर है।राजनीति में भी यह सिद्धांत बड़े जोर-शोर से लागू होता है। जैसे, जब एक नेता मंच पर खड़े होकर जनता को विकास के स्वप्न दिखा रहा होता है, ठीक उसी समय किसी स्विस बैंक का सर्वर अचानक व्यस्त होने लगता है ! नेता की बातें इतनी असरदार होती हैं कि बैंक तक उनकी तरंगें पहुँच जाती हैं, या फिर यह मात्र क्वांटम यांत्रिकी का ही चमत्कार है?

और समाज का क्या कहना! जब कोई फ़ेसबुक पर बैठकर यह सोचता है कि उसे एक गंभीर सामाजिक मुद्दे पर लिखना चाहिए, तो ठीक उसी समय उसका मोबाइल अपने आप ही किसी वेब सीरीज़ के ट्रेलर पर स्क्रॉल करने लगता है।अब यह आत्म-नियंत्रण की कमी है या क्वांटम एंटैंगलमेंट की महिमा—यह शोध का विषय है।

इतना ही नहीं, जब किसी सरकारी प्रवक्ता से सवाल पूछा जाता है कि "बेरोज़गारी क्यों बढ़ रही है?", तो जवाब में वह अचानक "अतीत में हुई ऐतिहासिक भूलों" पर भाषण देने लगता है। हो सकता है कि यह सिर्फ़ ध्यान भटकाने की कला न हो, बल्कि वह प्रश्न और उत्तर क्वांटम स्तर पर कहीं उलझ चुके हों और उत्तर अपने मूल स्थान पर न पहुँच पा रहा हो!

अब देखिए, शोध कहता है कि आपके न्यूरॉन्स जब आपस में बातें करते हैं, तो ये बातें फोटॉनों की सहायता से होती हैं, और वे फोटॉन जोड़े में उत्पन्न होते हैं—यानी दो फोटॉन आपस में एंटैंगल हो जाते हैं। अब समस्या यह है कि अगर कोई विचार एक न्यूरॉन से दूसरे तक पहुँचेगा, तो ज़रूरी नहीं कि वह सही स्थिति में पहुँचे। उदाहरण के लिए:  अगर आप घर से सोचकर निकले कि ऑफिस में बॉस की चापलूसी करेंगे, तो संभव है कि दिमाग में क्वांटम गड़बड़ी के कारण बॉस के सामने जाकर बोल बैठें—"सर, कब तक चलेगा यह ढोंग?"या फिर आप शादी में पनीर टिक्का खाने का विचार करें और प्लेट में अचानक लौकी की सब्ज़ी आ जाए, क्योंकि आपके फोटॉन और आपकी पत्नी के फोटॉन कहीं दूर किसी साज़िश में उलझ चुके हों!

 इसका असर प्यार पर भी दिखेगा। अब प्रेमी-प्रेमिका को मैसेज भेजने की जरूरत नहीं होगी। बस लड़का सोचेगा—"काश, वह मुझे मिस कर रही होती!" और लड़की के दिमाग़ में तुरंत सिग्नल पहुंचेगा—"ओह, मुझे इसकी बहुत याद आ रही है!"

लेकिन ठहरिए! अगर गलती से दिमाग़ का कनेक्शन किसी और से जुड़ गया, तो? पति ने बीवी के बारे में सोचा और विचार गलती से पड़ोसन के दिमाग़ में चला गया तो ? 

अब तक तो सामान्य लोग यही समझते थे कि उनकी स्मृति भूलने की समस्या से ग्रस्त है, लेकिन लगता है कि यह सब क्वांटम लेवल पर हो रहा खेल है।कोई ग़लती नहीं हो रही, बस आपके विचारों की एंटैंगलमेंट गड़बड़ हो गई है।

अब यह सवाल उठता है कि अगर हमारे विचार एंटैंगल हो सकते हैं, तो चुनाव के समय नेता जो भाषण देते हैं, उनका असर कहाँ-कहाँ होता होगा?  क्या यही कारण है कि चुनाव आते ही कुछ देशों में पेट्रोल की कीमतें अचानक घटने लगती हैं और कुछ देशों में दूध की?

अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि अगर हमारे विचार एंटैंगल हो सकते हैं, तो क्या चुनावी घोषणापत्र भी क्वांटम सुपरपोज़िशन में होते हैं?  मतलब, जब तक वोट डाले नहीं जाते, घोषणाएँ एक साथ सच भी होती हैं और झूठ भी! और जिस क्षण चुनाव नतीजे आते हैं, घोषणाएँ ध्वस्त हो जाती हैं, ठीक वैसे ही जैसे श्रॉडिंगर की बिल्ली का भाग्य बक्सा खुलने पर तय होता है!

अगर इस शोध को और आगे बढ़ाया जाए, तो यह भी संभव है कि यह पता चले की जनता की समस्याएँ और सरकार के समाधान कभी भी एक ही स्थान पर नहीं हो सकते हैं क्योंकि वे हमेशा दो अलग-अलग क्वांटम अवस्थाओं में मौजूद रहते हैं!

जैसे ही जनता बेरोज़गारी, महंगाई या स्वास्थ्य सुविधाओं की दुर्दशा पर ध्यान देती है, समाधान तुरंत दूसरी क्वांटम अवस्था में एंटैंगल हो जाता है—"अगली पंचवर्षीय योजना", "पिछली सरकार की गलती" या फिर "सब चंगा सी!"

मान ले ,आप सड़क पर धूल और गड्ढों से बचते-बचाते ऑफिस पहुँचे और सरकारी रिपोर्ट में पढ़ा—"भारत की सड़कें अब यूरोप से बेहतर हो चुकी हैं!"तो इस घटना को आप सिर्फ़ पत्रकारों की कलाकारी न समझे बल्कि इसे क्वांटम सुपरपोज़िशन का कमाल मानें ।सड़कें एक ही समय पर टूटी भी होती हैं और दुनिया की सबसे अच्छी भी—जैसे श्रॉडिंगर की बिल्ली एक ही समय पर मरी भी होती है और जीवित भी ।

इसी तरह, जब आप अस्पताल में डॉक्टर की तलाश में भटक रहे होते हैं, ठीक उसी समय सरकारी विज्ञापन में दावा किया जाता है कि "हेल्थकेयर सिस्टम अभूतपूर्व ऊँचाइयों पर पहुँच चुका है!" यहाँ विज्ञान की सबसे रहस्यमयी अवधारणा लागू होती है—श्रॉडिंगर का डॉक्टर! डॉक्टर होता भी है और नहीं भी! यदि आप सरकारी आँकड़ों में देखें, तो डॉक्टर मौजूद है, लेकिन अगर आप अस्पताल जाकर देखें, तो वह या तो छुट्टी पर होता है, या वीआईपी मरीजों की सेवा में व्यस्त!

अब तक हम सोचते थे कि नेताओं के बयान एक बार दिए जाने के बाद पत्थर की लकीर होते हैं। लेकिन नहीं! नवीनतम शोध बताता है कि राजनीतिक वादे भी क्वांटम सुपरपोज़िशन में होते हैं।चुनाव से पहले वे सच भी होते हैं और झूठ भी—लेकिन जैसे ही वोटिंग मशीन का बटन दबता है, वे ध्वस्त हो जाते हैं। इसे वैज्ञानिक भाषा में "वोट-क्वांटम कोलैप्स"कहा जाता है।

और अब सबसे बड़ा सवाल:
अगर सरकार के सभी समाधान क्वांटम अवस्थाओं में हैं, तो क्या कभी ऐसा होगा कि वे जनता की समस्याओं से "एंटैंगल" हो जाएँ?

इसका उत्तर वैज्ञानिकों के पास नहीं, लेकिन सरकारी प्रवक्ताओं के पास अवश्य है।वे कहते हैं, "देखिए, समस्या और समाधान दोनों मौजूद हैं, बस जनता को थोड़ा धैर्य रखना होगा। यह सब क्वांटम लेवल पर हो रहा है, जिसे आम आदमी को समझाया नहीं जा सकता है, उसे हम पर भरोसा करना होगा !" यानि कि कुल मिलकर समस्या और समाधान का मिलना उसी दिन संभव होगा, जिस दिन चंद्रयान को भेजने वाला देश, चंद्रमा पर पकोड़े तलने वाला स्टॉल भी खोल देगा!

सरकार कुछ विचार बनाएगी, और जनता खुद ही उसी दिशा में सोचने लगेगी !  सरकारें विचारों की निगरानी शुरू कर सकती हैं। अब सरकार को जनता के मन की बात सीधे पता चलेगी, यानी "मन की बात"रेडियो पर चलाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी! हो सकता है कि भविष्य में जब आप सोचें कि "सरकार की नीतियाँ सही नहीं हैं,"तो आपके मस्तिष्क में ‘विचार सुधार योजना’ के तहत थोड़े से मायलिन शीथ्स हटा दिए जाएँऔर आपका अगला विचार अचानक बदलकर "सरकार बहुत अच्छा कर रही है!"हो जाए।  

तो क्या आपके मायलिन शीथ्स सुरक्षित हैं ?

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