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Showing posts from August, 2025

एक प्रतिक्रिया वादी कहानी :: विकुति

  ___________________ ( अग्रिम क्षमा प्रार्थना सहित)   वह महिला बहुत हड़बड़ी में श्रृंगार कर रही थी। श्रृंगार करते हुए वह कुछ खीझती हुई बड़- बड़ा भी रही थी, इसका कारण यह था कि इस समय दोपहर में ,उसके आराम का समय था किंतु संस्था वालों ने सेमिनार का समय, इस दोपहर में तय कर दिया था। उनकी मजबूरी यह थी कि अंतरराष्ट्रीय स्तर की महिला वादी विद्वान, अपने भारत दौरे के दौरान इस शहर में अपने व्यस्त कार्यक्रम में इस समय ही उपलब्ध हो पा रही थी।  इसीलिये सेमिनार   इसी समय  आयोजित हो सकता था । क्यूंकि यह महिला इस शहर की मानी हुई महिलावादी थी   ,इसलिए सेमिनार में उनकी उपस्थिति प्रायः अनिवार्य ही थी। अपने बाल सवारते हुए उन्होंने वहीं से चिल्ला कर नौकर को आवाज दी “सीताराम गाड़ी लगवाओ, जल्दी'’। सेमिनार शहर के ही एक पांच सितारा होटल में आयोजित था ,साथ में लंच की भी व्यवस्था थी। अंतिम रूप से अपना रूप निहार कर वह महिला अपना पर्स और एक फाइल संभालते हुए जल्दी से निकली। पोर्च में गाड़ी खड़ी थी और बावर्दी ड्राइवर गेट खोले हुए खड़ा था । पर्स और फाइल अंदर सीट पर फेंकते हुए वह बैठ गई ,...

सौ वक्ता एक चुप हरावे :: विकुति

____________________   यह एक कहावत तो है, ही एक सूक्ति भी है। यह सूक्ति सनातन काल से चली आ रही है। द्वापर युग में भगवान कृष्ण के सामने भी एक ऐसी ही चुनौती आ गई थी। शिशुपाल नामक उनका एक संबंधी भरी सभा में उनको गालियां देने लगा और लगातार देता ही जा रहा था। भगवान ने सूक्ति के पालन का प्रयास किया, किंतु वे इसे पूरी तरह पालन करने में असफल होने लगे ,तो इसमें उन्होंने कुछ सीमाएं लगा दी। उन्होंने कहा वह100 गालियों तक बर्दाश्त करेंगे, इससे अधिक नहीं । लेकिन शिशुपाल भी अपनी धुन का धनी था ,गाली देता गया। 100 गाली पूरी होते ही भगवान ने सुदर्शन चक्र से उसका सर धड़ से अलग कर दिया।     इस   प्रसंग में एक और कमी भी रह गई ,भगवान को गाली देने वाला  एक ही था सौ   नहीं थे ,फिर भी भगवान उसको झेल नहीं पाए। खैर वह तो भगवान थे उनकी लीला वही जाने। इस घोर कलि काल में, मेरे जैसा तुच्छ प्राणी उनकी लीला को क्या समझेगा। लेकिन जानने वाले जानते हैं की इस समय भी इस पृथ्वी पर एक  ऐसे महापुरुष ,महा -मानव विद्यमान है जिनको अवतारी से कम नहीं माना जा सकता है।   वे    अवतारी ...

मरी हुई बिल्ली की कहानी :: विकुति

  बिल्ली कमरे के बीचों बीच एक मेज पर सुलायी गई थी। मरने के बाद चूँकि खड़े होने या बैठने की कोई सुविधा नहीं थी इसलिए उसे लिटा दिया गया था। यह उसकी ऐच्छिक किया नहीं थी। यह सब दूसरे लोगों ने किया था। कमरे में सभी विद्वान बैठे हुए थे। कोने की तरफ बैठी विदुषी ने अपने चश्मे को उतारते हुए कहा- "बड़ी प्यारी बिल्ली थी।" यह कहकर उसने फिर से चश्में को चढ़ा लिया। उसके लगभग सामने बैठे हुए विद्वान ने उसे तरेरते हुए देखा और बोला- "कितनी भी प्यारी रही हो मरना तो था ही।" यह कहकर वह चुप हो गया। उसके बगल वाले विद्वान को यह बात कुछ जॅची नहीं, उसने धीरे से संयत लहजे में कहा- "मरना तो सबको ही पड़ता है किन्तु मरने के बाद भी गुण-अवगुण विद्यमान रहते हैं।" “जनाब हम बिल्ली की बात कर रहे हैं, बिल्ली के कौन से गुण-अवगुण होते हैं? क्या वह चूहे नहीं खाती थी? या चुराकर दूध नहीं पीती थी? या उसने कौन सी सेवा की थी? स्कूल या अस्पताल बनवाए थे? बीमार, लाचार की सेवा की थी या भगवान की भक्ति की थी, यह सामान्य ही बिल्ली भी? क्या उसकी सुन्दरता को गुण मान लिया जाए।” इतना बोलने के बाद वह वरिष्ठ सा ...

लीला -ए -मोबाइल( अंतिम अंक) :: विकुति

    एकवचन —------------------- उठते ही उसने झपटकर मोबाइल उठाया। फिर उंगली से सहला सहला कर रात की आवक सर- सरी तौर पर देखता रहा। रात में शायद कुछ मजेदार नहीं आया था वैसे 3:00 बजे तक तो वह खुद ऑनलाइन था ही और सोने से पहले तक का सब आया गया ,चेक कर ही वह सोने गया था। फिर वह अंगड़ाई लेता हुआ उठा और मोबाइल को चार्ज में लगा दिया। यह रोज का उसका पहला काम होता है। उसके बाद वह किचन में गया और एक कप चाय बना ले आया। वह जल्दी चाय पी गया ,फिर बाथरूम में घुस गया ,फिर अचानक पीछे मुड़कर बाहर आया ,और मोबाइल लेकर अंदर चला गया । बाथरूम में उसे बहुत देर नहीं लगी इस बीच एकाध छोटी-मोटी काल ,और मैसेज आए ।  बाहर आकर वह चारपाई के किनारे बैठकर मोबाइल को सहलानेलगा ,अचानक उसे कीमती ज्ञान के एक महत्वपूर्ण सूत्र से साक्षात्कार हुआ । क्या चमत्कार है ,इस छोटे यंत्र को सहलाते ही क्या-क्या चीज साक्षात हो जाती हैं । अभी इस सूक्ति पर वह विचार कर ही रहा था की फोन बजने लगा । वह फोन उठा कर बात करने लगा। किसी दोस्त का फोन था  , देर तक बात होती रही बीच-बीच में काफी हंसी मजाक भी था। वार्ता के बीच में उसकी बहन...

लीला -ए -मोबाइल ( द्वितीय अंक ) :: विकुति

    द्विवचन ________________________ आज मैं बहुत प्रसन्न था, कारण यह की मेरा एक लंगोटिया यार बेंगलुरु से यहां आने वाला था, हम दोनों की मुलाकात लगभग 4 वर्षों के बाद होने वाली थी। पढ़ाई खत्म होने के बाद मेरा दोस्त बेंगलुरु में जॉब करने लगा था और मैं इसी शहर में रह गया था। तय, यह हुआ  कि वह मुझसे ऑफिस में लंच के समय मिलेगा । हम साथ लंच करेंगे और वह वहीं से एयरपोर्ट चला जाएगा शाम , 5:00 बजे उसकी फ्लाइट थी। मैं उत्साह के मारे आज ऑफिस समय से पहले ही पहुंच गया जबकि दोस्त को, लंच के समय आना था। काम में मेरा मन नहीं लग रहा था ,और मैं बार-बार समय देख रहा था। 11:00 बजे उसका फोन आया कि वह शहर में आ गया है और 1:00 बजे के आसपास मेरे ऑफिस में आ जाएगा। मैं प्रतीक्षा करने लगा। अंत में लगभग 1:15 पर वह मेरे कमरे में फोन कान पर लगाएं धड़ धड़ाते हुए घुसा और सोफे पर बेपरवाह पसर गया। मैं उठकर खड़ा हो गया, वह बात करता रहा, मैं उसे बात करते हुए देखता रहा ,करीब 15 मिनट के बाद उसने फोन कान से हटाया  ,तपाक से उठकर खड़ा होकर, आगे बढ़कर गले लगते हुए कहा “बास का फोन था, यार क्या करता” ? मैंने कहा...