एक प्रतिक्रिया वादी कहानी :: विकुति
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( अग्रिम क्षमा प्रार्थना सहित)
वह महिला बहुत हड़बड़ी में श्रृंगार कर रही थी। श्रृंगार करते हुए वह कुछ खीझती हुई बड़- बड़ा भी रही थी, इसका कारण यह था कि इस समय दोपहर में ,उसके आराम का समय था किंतु संस्था वालों ने सेमिनार का समय, इस दोपहर में तय कर दिया था। उनकी मजबूरी यह थी कि अंतरराष्ट्रीय स्तर की महिला वादी विद्वान, अपने भारत दौरे के दौरान इस शहर में अपने व्यस्त कार्यक्रम में इस समय ही उपलब्ध हो पा रही थी। इसीलिये सेमिनार इसी समय आयोजित हो सकता था । क्यूंकि यह महिला इस शहर की मानी हुई महिलावादी थी ,इसलिए सेमिनार में उनकी उपस्थिति प्रायः अनिवार्य ही थी। अपने बाल सवारते हुए उन्होंने वहीं से चिल्ला कर नौकर को आवाज दी “सीताराम गाड़ी लगवाओ, जल्दी'’। सेमिनार शहर के ही एक पांच सितारा होटल में आयोजित था ,साथ में लंच की भी व्यवस्था थी। अंतिम रूप से अपना रूप निहार कर वह महिला अपना पर्स और एक फाइल संभालते हुए जल्दी से निकली। पोर्च में गाड़ी खड़ी थी और बावर्दी ड्राइवर गेट खोले हुए खड़ा था । पर्स और फाइल अंदर सीट पर फेंकते हुए वह बैठ गई ,और ड्राइवर दरवाजा बंद कर अपनी सीट की ओर लपका । महिला ने थोड़ी दूर खड़े नौकर को इशारा किया वह खिड़की के पास आ गया, “देखो रतन लंच के लिए आने ही वाले होंगे ,उनको लंच करा देना, और बता देना मुझे फोन करने की कोशिश न करें, मैं सेमिनार में रहूंगी, वैसे भी मेरा फोन साइलेंस मोड पर ही रहेगा। नौकर ने सिर हिलाया और दूर हट गया।
गाड़ी के चलते ही महिला ने टाइम देखा करीब 17 मिनट बाकी थे। चौधरी यानी अपने ड्राइवर को संबोधित करते हुए महिला ने कहा “जरा तेज चलो टाइम बहुत कम है’” जी मैडम ड्राइवर ने कहा। गेट से निकलते हुए ड्राइवर ने पूछा “मैडम कहां चलना है “मैडम थोड़ा झुझलाई
“उसी होटल में जहां परसों शाम को गए थे “। इतनी व्यवस्था के बाद महिला ,पॉजिटिव मोड में आने का प्रयास करने लगी उसने होठों को हल्की सी जुम्बीश देकर किंचित फैला लिया और परसों की पार्टी की याद करने लगी ,जहां उनका बहुत सम्मान हुआ था ,साथ ही उनको अपने पिताजी द्वारा प्राय: उद्धारित की जाने वाली वह चौपाई भी याद आई” हानि ,लाभ जीवन, मरण, यश ,अपयश विधि हाथ”। महिला ने सोचा यह परमात्मा की कृपा ही तो है जो उसे इतना यश मिल रहा है , यद्यपि अन्य महिलाएं जो इस क्षेत्र में हैं उनसे किसी प्रकार कम नहीं है,लेकिन उसको जो यश और ख्याति मिल रही है, दूसरी उनके आसपास भी नहीं है। उन्हें मैडम लीला वाधवानी की याद आई जो महिला उत्थान में लगी हुई बूढी हो चुकी है लेकिन आज वह कहां है और वह कहां है। आज सभा की अध्यक्षता उन्हें ही करनी है ,जबकि देखा जाए तो वह दूसरी एक्टिविस्टों से शायद सबसे कम उम्र की है। ऐसे ही ख्यालों में महिला होटल पहुंच गई। उनका ध्यान भंग तब हुआ जब गाड़ी पोर्च में जाकर रुकी , ड्राइवर ने दरवाजा खोला और वे आत्म मुग्ध मुस्कुराती हुई उतरी। पोर्च में ही स्वागत समिति की कई सदस्य मौजूद थीं उनसे यथायोग्य ,दुआ सलाम हुआ और वह हाल की ओर बढ़ गई।उनको एस्कॉर्ट करते हुए दो कार्यकर्ता भी चल रही थी । हाल पहले से भरा हुआ था वरिष्ठ कार्यकर्ता मंच पर आसीन थीं। उनके मंच पर पहुंचते ही सभी लोग उठ खड़े हुए, और उन्होंने आसन ग्रहण किया।
इसी समय घोषणा हुई बहनो! माननीय अध्यक्ष महोदया अभी-अभी पधारी हैं ।मुख्य अतिथि महोदया भी कुछ ही छंणो में पधारने वाली हैं, कृपया शांति बनाए रखें ,और इंतजार करें। अंततः मुख्य अतिथि महोदया लगभग 15 मिनट विलंब से पधारी । कार्यक्रम आरंभ हुआ। मुख्य अतिथि के पास समय बहुत कम था अतः उनसे पहले बोलने का अवसर दो - तीन फालतू महिलाओं को दिया गया था, तथा उनके बाद एवं मुख्य ,अतथि के पहले मैडम की बारी थी। जिन महिलाओं को फालतू समझ कर बुलवया गया था ,उन्होंने भी काफी गर्म भाषण किया । मूल रूप से उनका कहना था कि ,अब समय आ गया है कि महिलाएं उठ खड़ी हों और उनका, जिन्होंने हजारों वर्षों से उत्पीड़न एवं शोषण किया है उन्हें मुंहतोड़ जवाब दें, और अपना पूरा बदला लें। इसके बाद मैडम की बारी आई वे खड़ी हुई, और उन्होंने बोलना आरंभ किया। उनके हाथ में कुछ गोल मुड़े हुए कागज थे जिन्हें वे डंडे की तरह लहरा रही थी। मैडम का भाषण अंग्रेजी में था उनके पहले की महिलाओं के भाषण भी अंग्रेजी में ही थे । मैडम के भाषण का हिंदी पाठ दिया जा रहा है अनुवाद की अशुद्धियों के लिए पूर्व में ही क्षमा निवेदित है ।
मैडम का स्वर अत्यंत मधुर एवं सधा हुआ था, फिर उनके रूप का तो कहना ही क्या? । उन्होंने बोलना आरंभ किया । मैंने आज की अपनी वार्ता का विषय “महिला मुक्ति आंदोलन के भटकाव और भ्रांतियां “रखा है मुझे अफसोस है कि आज वे बहने हमारे बीच नहीं है जो अधिकांशत: प्रताड़ित और पीड़ित है ,किंतु मुझे विश्वास है कि हमारी बात शनै:शनै: उन तक पहुंच ही जाएगी जैसा की आज तक पहुंचती रही है। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारे बीच जो भाषा की दीवार है वह एक दिन टूट कर ही रहेगी, क्योंकि आज अंग्रेजी किसी एक देश की भाषा नहीं रह गई है ,बल्कि आज यह विश्व भाषा बन चुकी है। आज गांव-गांव में अंग्रेजी स्कूल खुल चुके हैं और निकट भविष्य में हमारी वे अभागी बहने भी जो अभी अज्ञान के अंधकार में जीने को विवश हैं इस ज्ञान से , शीघ्र ही आलोकित होगी ,और भाषा की यह दीवार भर भरा कर गिर जाएगी यह निश्चित है । मैं यहां यह भी स्पष्ट करना चाहूंगी कि हमें अपनी देशी भाषाओं से कोई दुराव नहीं है वे भी अच्छी भाषाएं हैं किंतु विषय की नजाकत यह है कि महिलाओं की पीड़ा और दर्द का जितना प्रभावी संप्रेषण अंग्रेजी में होता है वह दूसरी देशी भाषाओं में संभव नहीं है । यहां यह उल्लेख करना भी प्रासंगिक होगा कि किसी भाषा के इस्तेमाल के लिए तदनुरूप परिवेश की भी आवश्यकता होती है ,उदाहरण के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग में तापमान एक प्रमुख कारक होता है, अंग्रेजी भाषा का प्रयोग 16 डिग्री से 24 डिग्री तापमान के ऊपर के तापमान में करना संभव नहीं है ,इसीलिए हमें ऐसे ही तापमान में इन कार्यक्रमों को आयोजित करना पड़ता है । एक यह भी कारण है कि हम अपनी बहुत सी ग्रामीण वाहनों को इन कार्यक्रमों में निमंत्रित नहीं कर पाते हैं ,क्योंकि आदत न होने के कारण उनको इस निचले तापमान पर प्राय:जुकाम आदि हो जाता है ,या गठिया आदि का दर्द उभर आता है।
दूसरी तरफ मजबूरी यह भी है कि जिस परिवेश में देसी भाषा प्रयुक्त होती है वह परिवेश यहां उपस्थित बहनों जिन्हें इस विषय का बृहद ज्ञान है कि अनुकूल नहीं है तथा उन्हें ऐसे शहरों में निर्मित कर पाना भी अत्यंत दुरुह है, उदाहरण के लिए देशी भाषाओं के व्यवहार के परिवेश में गाय, भैंस ,गोबर भूसा, चारा आदि का होना आवश्यक है जो यहां नहीं है। अब तक मैंने जो कुछ भी कहा है उसका आशय यह है कि महिलाओं की समस्याओं की वास्तविक समझ के लिए अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ की आवश्यकता है । आप देख सकते हैं कि महिलाओं की बराबरी की आवाज हिंदुस्तान में सर्वप्रथम उन्हीं महापुरुषों ने उठाई जो अंग्रेजी जानते थे या इंग्लैंड में पढ़े भी थे। ऐसे कई नाम गिनाए जा सकते हैं। बहनों आज हम इतिहास के उस मोड पर खड़े हैं जहां दोनों पक्ष एक दूसरे के आमने-सामने हैं और लड़ाई का बिगुल बज चुका है । यह एक ऐतिहासिक क्षण है, अगर आज हम चूक गए तो पता नहीं ऐसा अवसर फिर कभी मिले या ना मिले। आज जबकि दोनों पक्ष आमने-सामने है फिर भी हम अपने शत्रु को पहचान नहीं पा रहे हैं अगर पहचान रहे हैं तो भी हमारी हमारी बहने चित्त के मोहित होने के कारण , शत्रु से निर्णायक युद्ध आरंभ नहीं करना चाहती हैं ,तो मेरा यह निवेदन है कि इस घड़ी को हाथ से न जाने दे। आज स्थिति यह है कि कानून आपके पक्ष में है, प्रशासन आपके पक्ष में है ,समाज आपके पक्ष में है सरकार आपके पक्ष में है, और यहां तक शत्रु पक्ष की 95 % भी आपके पक्ष में है ,तथा हम लोगों के जैसे संगठन आपके पक्ष में ,और आपके लिए ही है किंतु फिर भी आप लोग मोह के वशीभूत युद्ध आरंभ करने से बच रही हैं। धिक्कार है ऐसे स्त्री जीवन को जो अपने ही अधिकारों को , छीनने में घबरा रही हैं।
तो बहनो आपका पहला कर्तव्य यह है कि आप अपने शत्रु को पहचानिए ।आपका शत्रु कहीं दूसरे देश में नहीं है, वह आपके अति निकट है ,आपके घर में है ,,आपके मोहल्ले में है ,आपके शहर में है ‘, आपके गांव में है ,इस शत्रु को स्थिर चित होकर पहचानिए। यह शत्रु है, इस पितृ सत्तात्मक समाज का प्रतिनिधि जो आपके बिल्कुल करीब है ,यह शत्रु आपका दादा है ,आपका पिता है ,आपका भाई है ,आपका पति है और यहां तक कि आपका बेटा भी है । शत्रु की पहचान के बाद आपका यह कर्तव्य बनता है कि आप इसकी हर स्तर पर अवज्ञा करें। यह आपको नियंत्रित करना चाहता है, आप इससे नियंत्रित होने से इंकार करें। आप इसकी गुलामी से इंकार करें और उल्टे इस शत्रु को गुलाम बनाएं। आप अपने पति की गुलाम नहीं है, बल्कि आपका पति आपका गुलाम है बहनो हमें इतिहास की धारा को बदलना है । सबसे पहले अपने पति को नियंत्रित करें । आज से संकल्प करिए कि आप अपने पति को एक मध्य युग के गुलाम से अधिक नहीं समझेंगी।
वह कमाता जरूर है, लेकिन अपनी छोटी से छोटी जरूरत के लिए उसे आपका मोहताज होना चाहिए। पैसे उसके होंगे लेकिन आप उसकी मालकिन होगी। अगर आप भी कमाती है तो आपके पैसे आपके और उसके भी आपके। आखिर आपकी भी अपनी जिंदगी है। आप अपनी इच्छा के अनुसार जिएं और शत्रु को भी अपनी इच्छा के अनुसार जिलाएं।
यहां जो बहने उपस्थित हैं, अधिकांश के घरों में नौकर चाकर हैं वहां घरेलू कामकाज का प्रश्न नहीं उठता ,लेकिन जहां नहीं है ,वहां प्रतिज्ञा कर लीजिए की घरेलू कामकाज आपके लिए नहीं है ,वह आपके पति का काम है, बेटों का काम है। आप मालिक हैं और मालिक आदेश देता है ,काम नहीं करता। वैसे मैं अभी बता दूं यह काम आसान नहीं है इस मार्ग में बहुत से प्रलोभन और लालच आएंगे। आपको , अत्यंत धीरज से इनका सामना करना होगा। प्यार, मोहब्बत ,ममता ,वात्सल्य दया ,करुणा आदि के बहुत से प्रलोभन आपको दिए जाएंगे किंतु आप इससे रंच मात्र भी विचलित न हों यह सब , बुर्जआ समाज के मूल्य हैं जिनसे आपका क्रांतिकारी विचार और जीवन , प्रदूषित नहीं होना चाहिए। विचारों के स्पष्ट होने पर यह भावुक शब्दावली आपको छू भी नहीं पाएगी। क्रांतिकारी व्यक्तित्व कभी भी भावनाओं में नहीं बहता, क्रांतिकारी की दृष्टि सदैव अपने उद्देश्य पर रहती है ,और वह उद्देश्य प्राप्त किए बिना वह बीच में कभी नहीं रुकता। आपका अपना जीवन है जो सिर्फ आपका है ,और आपका उद्देश्य है अपनी अस्मिता की तलाश करना ,अपने जीवन को जीवंत बनाना और अपना स्पेस प्राप्त करना। यह पारिवारिक घालमेल
आपके शोषण का यंत्र है जिसमें आपकी अस्मिता ना जाने कहां गुम हो जाती है ,और आपको पता ही नहीं चलता।
आज सौभाग्य से ऐसे कानून है कि कोई आपको छू तो क्या आपको देख भी नहीं सकता। आप इन कानूनो का प्रयोग करें आप की तरफ देखने वालों की आंखें निकाल ली जाएगी । लेकिन मुझे अफसोस है कि आज भी हमारी कुछ बहने शील संकोच जैसे अनेक दुर्गुणों को छोड़ नहीं पाई है, और इन पितृसत्तात्मक मूल्यों को कारण इन कानूनों का यथेष्ट प्रयोग नहीं कर पा रही हैं। हमें अपनी बहनों को इनके इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा ,आप घर-घर जाकर इन कानूनों का प्रचार कीजिए और इन कानून के प्रयोग को प्रोत्साहित करिए अभी तक इन कानून के अंतर्गत दर्ज वादों की संख्या संतोषजनक नहीं है जैसे-जैसे इनकी संख्या बढ़ेगी वैसे-वैसे इस समाज में आपकी स्थिति सुदृढ़ होती जाएगी । इस समाज की स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि इसका प्रत्येक परुष, सदस्य महिलाओं को देखकर कांपे और सिर नीचे किए
चला जाए । होना यह चाहिए आपसे कोई बात करने की जुरर्रत तभी करें जब आप उससे बात करें। और वह भी नीची नजर कर। बहनो आज तक के आपके संघर्ष ने पुरुषों को घुटनों पर ला दिया है ,लेकिन हमारा संघर्ष रुकना नहीं चाहिए अभी हमें बहुत कुछ प्राप्त करना है, क्योंकि आज समय कम है अतः मैं अपनी बात समाप्त करूंगी किंतु समाप्त करने से पहले आपको सूचित कर दूं की आगामी 27 तारीख को हम फिर मिलेंगे समय की सूचना आपको बाद में दे दी जाएगी आगामी सभा में मैं भविष्य के लक्ष्यों की चर्चा करूंगी। बहनो अभी तक हमें न्याय प्राप्त करने के लिए न्यायालय का सहारा लेना पड़ता है अभी हमारे और हमारे शत्रुओं बीच न्यायालय विद्यमान है। जिससे हमें असुविधा तो होती ही है समय भी बहुत लगता है अतः हमारी अगली मांग यह होगी कि पुलिस ,न्यायालय की मध्यस्थता समाप्त की जाए ,और हमें सीधे दंड देने का अधिकार हो ,। अपनी एकता के बल पर हम हम यह लक्ष्य निकट भविष्य में प्राप्त कर ही लेंगे।
हमारा अगला लक्ष्य बराबरी का भी है हम वह सब कुछ करेंगे जो पुरुष करते हैं । सौभाग्य से आपके संघर्ष के फल स्वरुप आप आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों को कड़ी टक्कर दे रही है । आज हम और तो और सेना में भी है। पढ़ाई लिखाई के क्षेत्र में तो हम पुरुषों को परास्त भी कर चुकी हैं। अब हमें आचार् व्यवहार के क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी ही नहीं करनी है उनसे आगे निकल कर दिखाना है । अब हमारा नारा है “बराबरी और पूर्ण बराबरी “। हम यह लक्ष्य हासिल कर सकते हैं केवल आपका सहयोग चाहिए । अगली सभा में जरूर पधारिए।
मैडम के व्याख्यान के बाद हाल तालिया की गड़गड़ाहट से गूंज गया। बहुत देर तक तालियां बजती रही मंच पर आसीन गणमान्य भी तालियां बजाते रहे। मीडिया ने भी खूब फोटो लिए। इसके पश्चात माननीया मुख्य अतिथि महोदया का वक्तव्य हुआ। उन्होंने अपने भाषण में बार-बार मैडम के भाषण के अंशों को उद्धारित किया और उनके विचारों पूरी सह़मति व्यक्त की । समयभाव के कारण मुख्य अतिथि महोदया का भाषण संक्षिप्त रहा ,और शीघ्र ही समाप्त हो गया । अब लंच की बारी थी सब लोग लंच के लिए उठे। लंच के दौरान मैडम मुख्य अतिथि महोदया के इर्द गिर्द मडराती रही क्योंकि उनकी की संस्था को विदेश की एक एजेंसी से एक बड़ा फंड प्राप्त होने वाला था, जिसमें माननीया मुख्य अतिथि महोद़या प्रभावी भूमिका अदा कर सकती थी। महोदया आज के मैडम के उद्बोधन से वास्तव में प्रभावित थी, इस लिए मैडम को शीघ्र फंड स्वीकृत होने की संभावना बलवती हो गई थी । लंच के बाद सब लोग एक-एक कर विदा होने लगे मैडम ने कार तक जाकर महोदया को स्वयं विदा किया । इसके बाद स्वयं भी रवाना हुई।
आज के अपने भाषण की स्वीकृति और वाह-वाही से मैडम अत्यंत गदगद और विभोर थी। गाड़ी में बैठे-बैठे मैडम का जीवन वृत्त उनके मानस पटेल पर पिक्चर की तरह गुजर रहा था । मैडम के पिता एक कर्मठ अध्यापक थे ,जिनका क्षेत्र में बहुत सम्मान था ,तथा उनकी गिनती इलाके के गण मान्य व्यक्तियों में होती थी ,यह वह समय था जब पैसे के बिना भी लोगों की इज्जत हुआ करती थी। मैडम तीन बहने थी ,और सबसे छोटा उन सब का दुलारा छोटा भाई था ।यह एक सुखी परिवार था ,किंतु अर्थाभाव सदैव बना ही रहता था। मैडम अपनी बहनों में सबसे छोटी थी किंतु इनका स्वभाव अपनी अन्य बहनों से कत्तई भिन्न था। मैडम पूरी तरह सकारात्मक , वृति की थी ,और इस जीवन में सुख सुविधा की जो भी वस्तुएं थी ,उन सबको , भोगने की
हसरत रखती थी। समय समय पर उनकी बड़ी बहनों का विवाह हुआ ।इनके बड़े जीजा भी अध्यापक थे जो अत्यंत स्वाध्यायी और सच्चरित्र व्यक्ति थे। उनके दूसरे जीजा एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क थे, किंतु अपने मधुर स्वभाव एवं ईमानदारी के कारण बहुत लोकप्रिय थे। मैडम अपने दोनों , बहनोइयों से बहुत प्रेम रखती थी, किंतु इनका जीवन देखकर इन्हें अत्यंत ग्लानि होती थी । दोनों व्यक्तियों का जीवन सादगी एवं संतोष का जीता जागता उदाहरण था । अपनी बहनों का जीवन देखकर भी मैडम को बहुत कोफ्त होती थी और उनको देखते देखते मैडम ने निश्चित कर लिया था कि वह इस तरह की जिंदगी स्वीकार नहीं करेंगी। बाधा केवल यह थी कि इस देश में विवाह एवं दांपत्य जीवन पैसे पर निर्भर करता है, जितना ज्यादा पैसा उतना ही अच्छा घर व वर।यह तो कहा जाता है की जोड़ियां ऊपर ही बनती हैं लेकिन शायद होता यह होगा कि भगवान आर्थिक आधार पर ही जोड़यां बनता होगा।
मैडम बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि एवं मेधावी थी। पिता के अनुशासन में पढ़ते हुए क्लास दर क्लास अच्छे नंबर मिलते रहे ,और वह एम ए में पहुंच गई। उनकी प्रतिभा को देखते हुए पिता ने इनका ऐडमिशन देश के एक मशहूर विश्वविद्यालय में कराया और मैडम उच्च अध्ययन के लिए एक बड़े शहर में चली गई । विश्वविद्यालय में बहुत से लड़के मैडम के शील और सौंदर्य से आकर्षित हुए, किंतु मैडम इस विषय में बहुत सतर्क थी। आखिर इस देश में अच्छे जीवन का प्रवेश द्वार तो विवाह ही है ।अपने करीब आए लड़कों की स्क्रीनिंग करते हुए मैडम ने अंततः एक कुलीन एवं संपन्न परिवार के एकमात्र कुल दीपक का मन ही मन चयन कर लिया जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे । इस संबंध को , प्रगाढ बनाने की अप्रत्यक्ष कोशिश मैडम ने शुरू की ,किंतु यह काम उन्होंने इतनी कुशलता से किया कि उनके भावी पति को आज भी लगता है कि उनका यह सौभाग्य ही था , कि मैडम ने उनका प्रेम निवेदन स्वीकार कर लिया था। इस प्रेम संबंध की परिणति अंततः विवाह में हुई ,मैडम के पिताजी को प्रारंभ में कुछ दुविधा जरूर थी, किंतु यह जानकर कि लड़का सजातीय ही है उनका कोई दुविधा न रही। उन्होंने इसको भगवत कृपा समझ कर स्वीकार किया ,और अपनी सबसे बड़ी जिम्मेदारी से मुक्त होकर पहली बार जीवन में आनंद का अनुभव किया।
विवाह के पश्चात मैडम अपनी ससुराल आ गई और उन्होंने स्वेच्छा से पढ़ाई को प्रणाम कर लिया । उन्होंने सोचा पढ़ाई लिखाई अच्छे करियर के लिए ही तो होती है ,और जब बैठे-बैठे ही करियर मिल गया हो ,तो अब आंखें क्या फोड़ना ?अब तक अभाव में पली मैडम के जीवन का उद्देश्य अब वर्तमान के ऐश्वर्या एवं सुख साधनो के भरपूर उपभोग तक सीमित होकर रह गया था।मैडम ने पहली बार यह महसूस किया की धन के प्राचुर्य में जीवन कितना सुंदर है । साधनों की सघनता में कब दिन और कब रात होती थी यह पता ही नहीं चलता था, कितना भी उपभोग करो, कल के लिए कुछ न कुछ बचा ही रह जाता था। कालांतर में मैडम इस सुख भोग की निरंतरता से बोर होने लगी’, किंतु , महात्वाकांक्षी प्रवृत्ति ने और दूसरे आयाम खोले। अब मैडम अपनी अस्मिता और पहचान की खोज में अग्रसर हुई। धन और साधन की प्रचुर उपलब्धता में यह खोज आसान भी थी। सर्वप्रथम उन्होंने शुद्ध राजनीति में अपने हाथ आजमाए और इसमें उन्हें , आशातीत, सफलता भी मिलने लगी। किंतु , शीघ्र ही उन्हें महसूस हुआ कि यह जीवन खुरदरा होने के कारण, उनके स्वभाव के अनुकूल नहीं है। सच्चाई और सादगी के आवरण में हर वक्त लोगों के सामने रहने की मजबूरी से उनका दम घुटने लगा। आराम और एकांत तो हराम ही हो गया था। यहां , शिष्ट और भद्र लोगों का साथ नहीं था और समय, असमय दूर दराज गांव, गिरांव की यात्रा धूप, धूल, गर्मी ,बरसात मैडम को शारीरिक तौर पर थका डालती थी। यह सब मैडम के मिजाज के खिलाफ था। उन्होंने साहस पूर्वक निश्चय किया और ,महिला मुक्ति आंदोलन छेड़ दिया। महिला मुक्ति आंदोलन में अंग्रेजी बोलने वाले लोगों
का साथ था और काम था पांच सितारा होटल में बड़े-बड़े सेमिनार ,चर्चा, गोष्ठी आदि करना। फंड वगैरा की कोई कमी नहीं थी और अखबारों में कवरेज तो होती ही रहती थी। गांव की होने के बाद भी मैडम की अंग्रेजी बहुत अच्छी थी, इसलिए अखबार वाले उनके व्याख्यानों को दिलचस्पी और प्रमुखता से छापते थे। कुछ वर्षों में ही मैडम देश में महिला मुक्ति की अग्रणी नेत्रियों की कोटि में आ गई। मुक्ति आंदोलन जोर-शोर से चलने लगा , किंतु दवा और मर्ज में कोई ताल -मेल नहीं था। दर्द घुटनों में था और सर की मालिश तेल बदल बदल कर होती रही। परिणाम यह हुआ ,की मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों -ज्यों दवा की । पुरुषवादी समाज के बदले पुरुष निशाने पर आ गए। महिला मुक्ति , आंदोलन चलता रहा।
इति
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