सौ वक्ता एक चुप हरावे :: विकुति


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यह एक कहावत तो है, ही एक सूक्ति भी है। यह सूक्ति सनातन काल से चली आ रही है। द्वापर युग में भगवान कृष्ण के सामने भी एक ऐसी ही चुनौती आ गई थी। शिशुपाल नामक उनका एक संबंधी भरी सभा में उनको गालियां देने लगा और लगातार देता ही जा रहा था। भगवान ने सूक्ति के पालन का प्रयास किया, किंतु वे इसे पूरी तरह पालन करने में असफल होने लगे ,तो इसमें उन्होंने कुछ सीमाएं लगा दी। उन्होंने कहा वह100 गालियों तक बर्दाश्त करेंगे, इससे अधिक नहीं । लेकिन शिशुपाल भी अपनी धुन का धनी था ,गाली देता गया। 100 गाली पूरी होते ही भगवान ने सुदर्शन चक्र से उसका सर धड़ से अलग कर दिया।  

 

इस प्रसंग में एक और कमी भी रह गई ,भगवान को गाली देने वाला  एक ही था सौ नहीं थे ,फिर भी भगवान उसको झेल नहीं पाए। खैर वह तो भगवान थे उनकी लीला वही जाने। इस घोर कलि काल में, मेरे जैसा तुच्छ प्राणी उनकी लीला को क्या समझेगा। लेकिन जानने वाले जानते हैं की इस समय भी इस पृथ्वी पर एक  ऐसे महापुरुष ,महा -मानव विद्यमान है जिनको अवतारी से कम नहीं माना जा सकता है।

 

वे  अवतारी स्वयं भी, अपने अजन्मा होने की घोषणा कर चुके हैं ,जिस पर अविश्वास का कोई कारण नहीं  हैं ,अत: भक्तों के कल्याण के लिए उनके चरित्र का वर्णन आवश्यक प्रतीत होता है । यद्यपि जब तक कोई अवतारी मृत्यु लोक में रहता है सांसारिक प्राणी उसकी लीलाओं को समझ नहीं पाते हैं। कलयुग के इस चरण में विद्यमान महा मानव या अवतारी पुरुष की लीलाओं का ज्ञान एवं आभास मुझ जैसे तुच्छ व्यक्तियों को भी कभी-कभी ,अकस्मात ,कारागार -वासी महात्माओ या अपने-अपने आश्रमों में बिहार कर रहे संतो के आशीर्वाद से हो जाता है,। कहां भी गया है” बिन सत्संग विवेक न होइ”।

इन अवतारी पुरुष की लीला अपरंपार है। इनको गाली देने वालों की संख्या सहस्रों मैं नहीं पदम या महापदम में हो सकती है, लेकिन ये  कभी उसका संज्ञान नहीं लेते। उनका मानना है कि इनका जवाब क्या देना ,ये गालियां उनके लिए स्वाद में कटु किंतु स्वास्थ्य की दृष्टि से पोषक होती हैं। इनके सेवन की, उनकी क्षमता लगभग ढाई -तीन किलोग्राम प्रति दिवस है । इससे अधिक होने पर वह उनको फ्रिज में संरक्षित कर देते हैं , आगे किसी दिन दुर्योग से कम गालियां आने पर इनका उपयोग कर लेते हैं। इनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को देखकर इनके समस्त भक्तजन यह कहते फिरते हैं की देखो -,देखो यह देखो अब तो मान लो, गलियां कितनी स्वास्थ्यवर्धक होती हैं। महा मानव के रूप लावण्य में चार चांद तो तब लगते हैं ,जब वह अपने पसीने को मल- मल कर अपना चेहरा चमका  लेते हैं। महामानव साधारण मनुष्यों के कठोर अपमानजनक वक्तव्य का कभी प्रति उत्तर नहीं देते हैं। वे जो भी दुर्वचन उचारते हैं वह सर्वथा स्वतंत्र होते हैं अर्थात वे किसी के कटु वचन का प्रति उत्तर नहीं होते हैं। वे किसी को भी उत्तर देने लायक नहीं समझते हैं। वैसे उनका यह अक्षुण व्रत है कि वह किसी मृत लोकवासी के किसी भी प्रश्न पर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं करते हैं, बल्कि वह कोई प्रश्न  प्रस्तुत होते ही अंतर्ध्यान हो जाते हैं और तब तक अज्ञातवास में रहते हैं जब तक प्रश्न की अनुगज या प्रतिध्वनि भी समाप्त न हो जाए। कभी-कभी  किसी प्रश्न को विलोपित करने के लिए अपने भक्तों से कोई अनर्गल प्रश्न उठवा  देते हैं । जिसको उनके  पालतू पोमेरेनियन  शशले उड़ते हैं। इस धूम धड़ाके में मूल प्रश्न तिरोहित हो जाता है।

 इस विवरण से यह न समझा जाए कि यह अवतारी मितभाषी हैं

 

 जब यह बोलते हैं तो घंटो प्रलाप व, उद्धबोधन कर सकते हैं। यद्यपि इन गुढ वत्तव्यों का अर्थ एवं संदर्भ इनके श्रद्धालु भक्त ही समझ पाते हैं। इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है “ श्रद्धावानम लभते ज्ञानम “इन वक्तव्यों को अंग्रेजी में प्राय: मास्टर स्ट्रोक कहा जाता है। इस प्रकार मोटे तौर पर कहा जाए तो यह कहा जा सकता है कि महामानव प्रश्न उत्तर को हेय दृष्टि से देखते हैं या उनका इसमें कोई विश्वास नहीं है।

अभी तक जो वर्णन किया गया है वह महामानव के चरित्र का एक पक्ष है । यह कभी-कभी चुप रहने की बड़ी-बड़ी प्रतियोगिताओं में भी भाग लेते हैं। स्वदेश में वह मौन प्रतियोगिता में अब तक सभी प्रतियोगिताओं में विजई घोषित हुए हैं। बड़े से बड़ा खिलाड़ी भी कभी इनका मुंह नहीं खुलवा पाया है। यह मुंह खोलते हैं तो अपन राम कहानी सुनाने के लिए खोलते हैं ,जिसमें कोई तथ्य ढूंढना  भूसे के ढेर  में सुई ढूंढने के समान है।

 

अभी वर्तमान में एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता चल रही है जिसको पूरा विश्व बड़ी उत्सुकता से देख रहा है। विश्व की एक हस्ती हैं जो आयु और बल में इनसे थोड़ा अधिक हैं किंतु होशियारी और तिकड़म में यह उनसे कहीं 20 पड़ते हैं। दोनों अपने आप को प्रजातांत्रिक मानते हैं ।विदेश वाले दिन में कई पीसी करते हैं किंतु अपने वाले आज तक पीसी के करीब भी नहीं गए हैं। इनका मानना है, क्या इन पत्रकारों के मुंह लगना जरा सी छूट दे दो तो ,ये जुबान लड़ाने लगते हैं। विदेश वाले ने यह प्रण कर लिया है कि वह रोज या हर दूसरे तीसरे अवश्यमेव अपने वाले को अपमानित करने वाले वचन कहेंगे और लिखेंगे। निर्णायक की अब तक की गिनती के अनुसार अब तक वह 39 बार ऐसा कर चुके हैं लेकिन अपने वालो का धीरज देखकर समस्त दर्शक अचंभित हैं ,उन्होंने एक बार भी अभी तक मुंह नहीं खोला है। उल्लेखनीय है कि दोनों प्रतियोगी एक दूसरे के घनिष्ठ मित्र हैं। अपने वाले बताते हैं कि दोनों में तू -तडा़क का रिश्ता है। भक्तों ने मुझे बताया कि अपने वाले ने , एक दिन विदेश वाले मित्र को फोन लगाया। उधर से आवाज आई” हेलो माय डियर फ्रेंड”!

अपने वालों ने अपने बाल नाचते हुए, क्रोध में भरकर कहा ,“डियर फ्रेंड गया भाड़ में “पहले यह बताओ कि यह रोज हो क्या रहा है?

उधर वाले ने ठहाका लगाया’ —-हहहहहहहहहह,,,,,,,,,,,

अपने वाले भड़क गए और बोले –हंसना बंद कर ,कलेजा जल रहा है********।

विदेश वाले बोले “क्या यार! मैं तुमसे मजाक भी नहीं कर सकता ?

अपने वाले बोले -तुमको मजाक की , सूझ रही है यहां रोज बेज्जती हो रही है? वह वह तो भला हो गोदी वालों का जो किसी तरह संभाले हुए हैं।

अपने वाले बोले -तुम्हारी बेइज्जती तो पूरी दुनिया में हो रही है। पहले उसको तो संभालो।

उधर वाले बोले -बेइज्जती की मैं घंटा परवाह करता हूं। मुझे अब कौन सा चुनाव लड़ना है?

अपने वाले बोले - यही तो बात है अगर मुझे , गद्दी से खींचकर उतार नहीं दिया गया, तो मैं तो 2047 तक चुनाव लड़ने वाला हूं।

उधर वाले बोले -”मुझे चुनाव भले न , लड़ना हो। नोबेल पुरस्कार तो मुझे चाहिए ही चाहिए। जिसमे तू रोडा़ बना हुआ है । “

अपने वाले -नोबेल में मैं कैसे रोडा़ हूं ? कम से कम झूठ तो मत बोल।

उधर वाले -अगर तू यह मान लेता की शांति मैंने ही करवाई है तो मेरा पुरस्कार पक्का हो जाता। और यह तो सही भी है।

 

अपने वाले -सही गलत गया तेल लेने। अब तो पूरी दुनिया और मेरे यहां भक्तों को छोड़कर और सब मानने लगे हैं की शांति तुमने ही करवाई है ,तो तेरा काम तो हो गया । पुरस्कार निकलवा लो। मैं भी बधाई देने आ जाऊंगा। अब इस बात को छोड़,मेरे यहां जो टैरिफ लगा है ,उसको थोड़ा कम करवा दे भाई! हमारे देश के लोग बहुत तकलीफ में आ जाएंगे ।

 

उधर वाले- देश के लोगों की तू जैसी फिक्र करता है, वह क्या मुझसे छुपा हुआ है ?यह बता तेरे दोनों दोस्त ठीक तो है?

 

अपने वाले –वह भी कहां ठीक है A1अभी तुम्हारे यहां ही किसी लफड़े में फंसा हुआ है। वह भी तुमको ही देखना है। जहां तक देश का सवाल है, उनको भी देखना तो पड़ता ही है आखिर वोट तो वही देते हैं न।

 

उधर वाले –अपने दोस्तों को बोल दो कम से कम हमारे देश में पंगा न लिया करें। दोस्ती की खातिर मैं देखूंगा, A1 के मामले में क्या हो सकता है। दिक्कत यह है कि हमारे यहां तुम्हारे यहां जैसे जज बहुत कम हैं। जहां तक तुम्हारी जनता और वोट का सवाल है ,जैसे आज तक भरमाए, हो आगे भी भरमा लोगे ,मुझे पूरा विश्वास है।

 

इतना कह कर उधर वाले ने फोन रख दिया। अपने वाले आवाक रह गए ।  मुंह खुला का खुला रह गया। 

 

 

 

इति

 

 

 

 

 

 

 

Comments

  1. अत्यंत सुरुचिपूर्ण व्यंग्य।

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