मरी हुई बिल्ली की कहानी :: विकुति
बिल्ली कमरे के बीचों बीच एक मेज पर सुलायी गई थी। मरने के बाद चूँकि खड़े होने या बैठने की कोई सुविधा नहीं थी इसलिए उसे लिटा दिया गया था। यह उसकी ऐच्छिक किया नहीं थी। यह सब दूसरे लोगों ने किया था। कमरे में सभी विद्वान बैठे हुए थे। कोने की तरफ बैठी विदुषी ने अपने चश्मे को उतारते हुए कहा- "बड़ी प्यारी बिल्ली थी।" यह कहकर उसने फिर से चश्में को चढ़ा लिया।
उसके लगभग सामने बैठे हुए विद्वान ने उसे तरेरते हुए देखा और बोला- "कितनी भी प्यारी रही हो मरना तो था ही।" यह कहकर वह चुप हो गया। उसके बगल वाले विद्वान को यह बात कुछ जॅची नहीं, उसने धीरे से संयत लहजे में कहा- "मरना तो सबको ही पड़ता है किन्तु मरने के बाद भी गुण-अवगुण विद्यमान रहते हैं।"
“जनाब हम बिल्ली की बात कर रहे हैं, बिल्ली के कौन से गुण-अवगुण होते हैं? क्या वह चूहे नहीं खाती थी? या चुराकर दूध नहीं पीती थी? या उसने कौन सी सेवा की थी? स्कूल या अस्पताल बनवाए थे? बीमार, लाचार की सेवा की थी या भगवान की भक्ति की थी, यह सामान्य ही बिल्ली भी? क्या उसकी सुन्दरता को गुण मान लिया जाए।” इतना बोलने के बाद वह वरिष्ठ सा दिखने वाल विद्वान चुप हो गया। थोड़ी देर के लिए कमरे में सन्नाटा छा गया। फिर एक युवा विद्वान उठ कर खड़ा हुआ और बोलने लगा- "क्या सुन्दरता गुण नहीं माना जाता? आज जिन स्त्रियों को हम स्टेज पर, परदे पर या रैम्प पर देखते हैं क्या वे गुणी नहीं है? मैं कहता हूँ वे गुणी हैं उनके सौन्दर्य के भरोसे ही लाखों-करोडों का कारोबार चल रहा है और लाखों-करोड़ों को रोजगार मिला हुआ है तथा वे खुद स्त्रियाँ भी लाखों-करोड़ों कमा रही हैं। वह बिल्ली भी इसी तरह की सुन्दर थी, प्यारी थी, यही उसका गुण था।" यह कहकर वह युवक बैठ कर चारों तरफ देखने लगा। विद्वानों के चेहरे पर मिश्रित भाव थे, उनको देखकर यह बताना मुश्किल था कि वे सहमत थे या असहमत। इसी उहापोह में दूसरे कोने से आवाज आयी "क्या हम लोग विषय से भटक नहीं गए हैं, हम लोग बिल्ली की मौत पर जमा हुए हैं, मौत के बाद आगे क्या बचता है? अब पिछली बातों यानि गुण-अवगुण की चर्चा व्यर्थ नहीं है फिर क्या हिंसा और चोरी पाप नही है, जो यह बिल्ली करती रहती थी ।”
बीच में ही एक अन्य विद्वान बोलने लगा "श्रीमान् जी मेरा विनम्र निवेदन है कि यह बिल्ली मनुष्य नहीं थी, बिल्ली थी इसलिए उसकी हिंसा और चोरी को दोष नहीं माना जा सकता।" पूर्व वाले विद्वान ने प्रतिवाद किया "मेरा मानना है कि बुराई तो सार्वभौम है, शाश्वत है, जो मनुष्य के लिए बुरा है वह जानवर के लिए भी बुरा है “।
इसी समय प्रथम महिला वक्ता ने यह प्रश्न किया "क्या इस बिल्ली के बच्चे थे?" उनके बगल वाले विद्वान ने कहा "जरूर होगें। लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है, यह तो बिल्ली है, कोई आदमी नहीं है कि इसका श्राद्ध कर्म इसके बच्चे करेगें।"
"नहीं मेरा आशय था, बच्चे हैं तो इसका सन्तति प्रवाह आगे भी चलता रहेगा" महिला ने कहा।
"यह भी व्यर्थ प्रश्न है। बिल्लियों के पास कौन सी जमीन, जायदाद सम्पदा होती है जिसकी मिल्कियत के लिए वारिस की जरूरत पड़ेगी" बगल वाले विद्वान ने चिढ़ कर कहा। इसी समय एक नौकर किस्म का आदमी कमरे में आया और मेज पर धूप, अगरबत्ती जलाकर चला गया। उसके पीछे एक औरत आयी और उसने मेज पर कुछ फूल बिखेर दिए। लोग बड़े मनोयोग से इस अनुष्ठान को देखते रहे। इसके बाद एक विद्वान ने इस चर्चा के सूत्र को वहाँ से पकड़ा जहाँ व्यवधान आ गया था। उन्होनें कहना शुरू किया तो बात चल रही थी कि इस बिल्ली के बाल बच्चे हैं कि नहीं। जहाँ तक बाल बच्चों का प्रश्न है यह केवल विरासत का ही प्रश्न नहीं है, बाल-बच्चों से मृतक के अमरत्व का बोध होता है, विज्ञान की दृष्टि से भी देखा जाए तो मांता-पिता की निरन्तरता उनकी संतान के माध्यम से अनन्त काल तक चलती रहती है। यह अगर मान भी लिया जाए कि मृत्यु के बाद कुछ नहीं बचता फिर भी संतान के माध्यम से मृतक की कोषिकाएं संतान में पल्लवित होती रहती है और वे उनसे आगे उनकी सन्ततियों को प्राप्त होती हैं। इससे लगता है कि जीवधारी अमर है।
चर्चा के इस मोड पर उसमें एक जीव वैज्ञानिक भी कूदे। उनका भाषण इस प्रकार आरम्भ हुआ अब जबकि जैविक बिन्दु पर चर्चा आ गयी है में भी कुछ कहना चाहूँगा, जीव विज्ञान की दृष्टि से बिल्ली उसी परिवार की निम्नतम जीव है जिसमें शेर, बाघ, चीता, तुर्दैए आदि आते हैं किंतु यह उस समुदाय के निम्नतम पायदान पर आती है और यह बिल्ली जो मेज पर है बिल्ली कुल के भी निम्नतर स्तर पर आती है। इस बिन्दु पर एक विचारक किस्म के सज्जन ने जिज्ञासा की यह कैसे? जीव वैज्ञानिक बोले में “उसी पर आ रहा हूँ मुझे इस बिल्ली के रंग-रूप आचरण आदि को देखकर इसमें कोई संदेह संदेह नहीं है कि यह बिल्ली निम्न श्रेणी की बिल्ली है, देखिए कुलीन बिल्लियाँ प्रायः सफेद या भूरी होती हैं और उनके शरीर पर आभा होती है जबकि यह बिल्ली तो काली है तथा इसके शरीर पर कोई चमक भी नहीं है, इसके अतिरिक्त इस तरह की बिल्लियों चाल-ढाल भी निकृष्ट कोटि की होती है। इसकी चाल में गरिमा और भद्रता नहीं होती बल्कि एक प्रकार की धूर्तता और लम्पटता परिलक्षित होती है। यहाँ तक की इसकी आवाज में भी वह शालीनता ओर शिष्टता नहीं है जो उच्च कुलीन बिल्लियों में होती है।”
विचारक ने उन्हे फिर टोका “वह जानवर के लिए भी बुरा है। यह ठीक है कि जानवर अज्ञान के कारण पाप करता है जो अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण नहीं कर पाता वही पाप करता है चाहे वह मनुष्य हो या जानवर।" पाप पुण्य के इस प्रसंग पर कमरे की गर्मी बढ़ गयी थी. इस विषय पर हर विद्वान अपना विचार प्रस्तुत करने के लिए व्यग्र हो रहा था। कई विद्वान एक साथ बोल रहे थे , लेकिन शोर के कारण किसी की बात समझ में नहीं आ रही थी। कई लोग अपनी सीट से खड़े हो गए थे और हाथ हिला हिला कर लगभग चिल्लाते हुए कुछ न कुछ कह रहे थे। चूँकि वहाँ कोई चुना हुआ सभापति या अध्यक्ष नहीं था इसलिए व्यवस्था कायम नहीं हो पा रही थी।
इसी अव्यवस्था के दौरान एक लम्बे चौडे विद्वान खड़े हुए जो विद्वान कम और पहलवान ज्यादा दिखायी दे रहे थे। उनके व्यक्तित्व के रोब से कई लोगों ने चिल्लाना बंद कर दिया और सभा में शांति स्थापित होने लगी। जब सभा में लगभग शांति स्थापित गयी तो उन पहलवाननुमा विद्वान ने अपनी गुरू गम्भीर वाणी में आरम्भ किया "विद्वत जन मेरी राय है कि पाप-पुण्य का यह विवाद प्रायः व्यर्थ है, आप ठीक से देखे तो आप स्वतः अनुभव करेगें कि बिल्ली में जो दोष बताए जा रहे हैं जैसे हिंसा या चोरी वे सब परिस्थितिजन्य है, मान लीजिए अगर यह बिल्ली पालतू होती तो क्या इसे चूहे मार कर खाने या मारने की बाध्यता होती? क्या इसे दूध या दही चुराने की आवश्यकता पड़ती? नहीं, इसकी कोई आवश्यकता नहीं होती, तब इसके भोजनादि की व्यवस्था इसके मालिक की जिम्मेदारी होती जो इसे यथा समय, अपनी सार्मथ्य के अनुसार इसको भोजन उपलब्ध कराता और ऐसी स्थिति में यह बेचारी बिल्ली इस घोर अनर्थ से बच जाती। समय-समय पर भोजन उपलब्ध होने पर यह बिल्ली स्वतः सात्विक होकर डोलती और अपने स्वामियों का मनोरंजन करती और उनकी स्नेह भाजन बनी रहती, माफ करएिगा मेरी राय यह भी है कि आवारा बिल्लियों के साथ ही हिंसा और चोरी जैसे दोष होते हैं। पालतू बिल्लियों सर्वथा सात्विक ओर दोष रहित होती हैं। इस बिल्ली के संबंध में भी मेरी राय है कि इस बिल्ली को "प्यारी" कहना भी सर्वथा अनुचित है। अब मैं पूछता हूँ आखिर यह बिल्ली किसको प्यारी थी? क्या उनकी जिलका दूध, दही चुराकर खाती पीती या उनकी जिनका घर गन्दा करती थी या उनकी जिनकी नींद असमय म्याऊँ-म्याऊँ कर खराब करती थी और तो छोड़िये क्या अपने बच्चों को प्यारी थी? जी नहीं। वे अलग हिंसा और चोरी करके निर्वाह करते थे और यह अलग। फिर प्यार किस बात का। इसके अलावा इसने उनको चोरी और हिंसा का ही पाठ तो पढाया था, कोन सा वेद पढाया था कि वे इसके एहसानमंद होते। इसलिए इस विवाद को यहीं समाप्त किया जाए और यह निष्कर्ष लिया जाए कि बिल्लियों के प्रिय होने के लिए बिल्ली का पालतू होना आवश्यक है।"
इस विद्वतापूर्ण टिप्पणी के पश्चात् सभा में सन्नाटा पसर गया। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि इस निष्कर्ष से अधिकांश लोग सहमत थे याइसके बाद कमरे में सन्नाटा पसर गया। कई विद्वानों ने सिगरेट जला ली और कई एक-दूसरे का मुँह देखने लगे।
अन्त में सन्नाटा तोड़ते हुए एक विद्वान खड़े हुए और उन्होनें अपना व्याख्यान आरम्भकिया-"सज्जनों मै इसी मुहल्ले का रहने वाला हूँ और इस बिल्ली को बहुत ठीक से जानता हूँ। इस बिल्ली के बारे में अब तक जो कहा जा रहा था उसे मैं ध्यान से सुन रहा था, जो कुछ व्यक्त किया गया वह सर्वथा सत्य है किन्तु दूर होने के कारण आप लोगों को सब कुछ पता नहीं है इसलिए इस बिल्ली के बारे में मैं एक महत्वपूर्ण तथ्य आप लोगों के सम्मुख रखना चाहूँगा, कृपया ध्यान से सुनें, यह बिल्ली किसी से डरती नहीं थी तथा अत्यन्त ढीठ थी। आप सामने खड़े रहिए और आपके देखते-देखते यह रोटी लेकर भाग जाती थी, दूध में मुँह मार देती थी, दही गिरा देती थी। आपके डाँटने पर या डराने पर यह आपके मुकाबिल गुर्राती थी और अपना काम करके ही वहाँ से हटती थी, डंडा दिखाने पर भी इसको कोई भय नहीं होता था और यह खड़ी खड़ी गुर्राती रहती थी। इस प्रकार इस बिल्ली में शालीनता लेश मात्र भी नहीं थी, जो बच्चे इसको चिढाते थे उनको भी दौड़ा लेती थी। इस प्रकार इस बिल्ली में शराफत दूर-दूर तक नहीं थी।” इतना कह कर वे सज्जन बैठ गए।
उस कमरे में बैठे लोग अब बिल्ली की चर्चा करते-करते बोर हो चुके थे और अब वहाँ से उठने के बहाने सोच रहे थे। कुछ लोग आपस की बातचीत में मशगुल हो गए थे। तभी बिल्ली में कुछ हरकत दिखी, लोग कुछ कहते इतने में ही बिल्ली मेज से छलांग लगा कर दरवाजे से बाहर भाग गयी। सभा समाप्त हुयी।
Comments
Post a Comment