उनकी दिनचर्या :: विकुति


          यह सर्वमान्य और सर्वविदित तथ्य है कि हम भारतीय उत्सव धर्मी लोग हैं।मूल रूप से अहिंसक भी हैं।अपनी प्राचीन परम्पराओं से अद्भुत लगाव भी है।हमारी आस्था अपरम्पार है। हमारी सभ्यता सबसे प्राचीन है।हम विश्वगुरु भी रह चुके हैं। मनुस्मृति विश्व का सबसे पहला लिखित संविधान है।हमारे वेद अपौरुषेय हैं जो ज्ञान का खजाना भी है।सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद है जिसमें गाय का उल्लेख मिलता है।गाय को 'अघन्या ' कहा गया है अर्थात गाय का वध निषिद्ध है।

              अब दूसरे बिन्दु को लिया जाये तो जो लोग सामाजिक जीवन अख्तियार किये हैं ,जिनमें जनकल्याण की भावना है ,जो परोपकारी हैं ,जिन्हें सनातन का उत्थान करना है ,जिन्हें रामराज्य ले आना है वे अपने अपने घरों में एकाकी जीवन नहीं व्यतीत करते हैं।उनकी दिनचर्या आमजन से भिन्न होती है। सामाजिक जीवन को अपनाने वाले लोग विविध कार्यक्रम प्रायोजित करते हैं ,भीड़ एकत्र होती है , गण मान्य लोग आते हैं ,कैमरे वाले लोग भी होते हैं और पत्रकारों को भी आमन्त्रित किया जाता है ताकि सुन्दर सुन्दर तस्वीरें  उतारी जा सकें जो अगले दिन विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हो सकें।  ऐसे लोगों को अवसरों की तलाश नहीं करनी पड़ती है।कभी रात्रि जागरण का आयोजन होता है तो कभी हनुमान चालीसा का सस्वर पाठ होता है,कभी स्थानीय मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम होता है तो कभी रक्तदान शिविर का आयोजन होता है।यदि कोई कार्यक्रम न बन पा रहा हो तो लोग समूह में कान्हा उपवन में चले जाते हैं जहाँ गौ माता एवं नंदी बाबा की सेवा सुश्रुषा करते हुए फोटो शूट करवाते हैं।

             राजधानी के पवित्र 'लवकुश नगर '  के 'जन जागरण मंच' के स्वयं - भू  अध्यक्ष एक धर्मात्मा प्राणी हैं जिनका शुभ नाम पण्डित पवित्र नारायण शांडिल्य है। उन्होंने अपने भरोसेमंदअनुयायियों को निर्देशित किया था कि अमुक तिथि को अमुक स्थल पर एक पवित्र कार्यक्रम आयोजित किया गया है जहाँ पूरी तैयारी के साथ बहुसंख्या में उपस्थित होना है और कार्यक्रम को सफल बनाना है। आगे उसका विधिवत वर्णन प्रस्तुत है --

                 अमुक तिथि को सब तड़के ही एकत्र हो गए थे, क्योंकि आज का दिन बहुत व्यस्त होने वाला था। आज के लिए दो महत्वपूर्ण कार्यक्रम तय कर दिए गए थे यथा,

प्रथम -  गोबर स्नान तथा द्वितीय -  सामूहिक गोमूत्र पान । कार्यक्रम की शुरुआत कुछ इस प्रकार हुई -सर्वप्रथम उनके नेता से लगने वाले महापुरुष ने हाथ जोड़कर गोबर कुंड के दो चक्कर लगाए। उसने बड़े जतन से तिलक सजाया था, पीले चंदन के एक बड़े से गोले के भीतर लाल रंग की एक छोटी सी रोली की बिंदी सुशोभित थी। धवल धोती के ऊपर उसने चमकदार रेशमी, गेरुआ कुर्ता धारण कर रखा था। चक्कर लगाकर उसका मन थोड़ा हल्का हुआ।  यही पण्डित पवित्र नारायण शांडिल्य जी थे।एक पजामा धारी सदस्य की ओर इंगित कर उसने कहा , " अरे ' त्रयम्बक नाथ जी ,कब तक यह फारसी वस्त्र पहन कर भारतीय संस्कृति को अपमानित करते रहेंगे अब तो  चेतिये।" त्रयम्बक नाथ जी ,कुछ असहज होते हुए ,कुछ शरमाते हुए बोले - "  हे  महामानव शांडिल्य जी , यह राणा प्रताप की मूछें तो है ही , शिवाजी महाराज वाली दाढ़ी भी बढ़ा लेंगे ,   आप  चिंता  क्यों करते हैं।  आप के निर्देशों का अक्षरशः पालन किया जायेगा।" सभी उपस्थित जन हंसने लगे। फिर शांडिल्य जी ने  ने गंभीर होकर कहा - 'अच्छा ,  अब कब तक  हँसी ठिठोली होती रहेगी ।अब कार्यक्रम आरंभ किया जाए । मीडिया वाले अभी आए कि नहीं? "  तभी पीछे से दो लोगों का समवेत स्वर गुंजा - " हाजिर है श्रीमान । हम तो सबसे पहले आ गए थे ।अभी पीछे कुछ लोगों की बाइट ले रहे थे।"

           " बहुत-बहुत धन्यवाद ।आखिर आपके भरोसे ही इतना बड़ा नवाचार कार्यक्रम  चल रहा है । ऐसे ही सहयोग बनाए रखिए ।" यह कहकर  शांडिल्य जी अपने कपड़े उतारने लगे। जब वह केवल पटरे वाले अंडरवियर पर आ गये तो उन्होंने कुंड में छलांग लगा दी। छपाक की ध्वनि के साथ सर्वत्र गोबर की बरसात हो गई। शरीर और वस्त्रो पर र्गोबर के छीटे देखकर लोग धन्य हो गए।अब  शांडिल्य जी कुंड में मल मल कर गोबर स्नान कर रहे थे।दुर्गंध से उसकी नाक फट रही थी लेकिन चेहरे पर खिली हुई मुस्कान तैर रही थी।उसने  मन ही मन सोचा ,यू ही नहीं देश भक्ति को कठिन व्रत बताया जाता है।जल्दी ही वह अनुष्ठान पूरा कर बाहर निकल गया।शरीर पर जगह जगह गोबर के चकत्ते चिपके हुए थे।तभी श्री  श्री 108 जी  जो अनुष्ठान के संचालन के लिए पधारे थे ,आगे बढ़े उन्होंने  शांडिल्य को गले से लगा लिया और उसके सिर को सूंघ कर कहा - " क्या   दिव्य सात्विक सुगंध आ रही है।अहा अहा अनेक साधुवाद वत्स ,ईश्वर तुम्हे सफल करे  "  शांडिल्य  महाराज के पैर छुए और कपड़े पहनने पीछे चला गया।श्री  श्री 108 जी  उपस्थित  भक्तों से मुखातिब हुए और दोनों हाथ उठाकर कहा - "अब आप क्या देख रहे हैं,इस दुर्लभ अवसर का लाभ उठाएं। " यह सुनकर भक्तगण एक एक कर कुंड में छलांग लगाते गए।लोगों को स्नान करते देख श्रीश्री पीछे एक पेड़ के नीचे चले गए और धर्म चर्चा करने लगे।.

             स्नान कार्यक्रम समाप्त होने के बाद पान  कार्यक्रम की बारी थी।एक बड़ी सी मेज़  पर अनेक छोटी छोटी तांबे की गिलासे सजा कर रखी गई थी।बीच में एक बड़े से मटके में धारोष्ण गोमूत्र ढक कर रख दिया गया था।

श्री श्री ने उपस्थित जन को संबोधित करते हुए कहा  - " भक्तों स्वर्ग में तो अमृत है लेकिन इस पुण्य भूमि का अमृत तो यही गौ मूत्र है।

इसके लाभ मै तो क्या भूसुंडी महाराज भी नहीं बता सकते। यह सत्व हर प्रकार की व्याधि हरण करने में समर्थ है, जो प्राणी इस रस का नियमित सेवन करता है वह निर्विघ्न 100 साल जीवित रहता है। जो भी व्याधि आप सुनते या जानते हैं इसके नियमित ताजा सेवन से तत्काल छूट जाती है। इसके गुणों का मै जितना भी वर्णन करूं वह कम ही होगा। यहां पर आपके लिए यह अमृत निशुल्क उपलब्ध है, इसका पान कर स्वयं इसका प्रभाव देखें। "

  इसके बाद गोमूत्र का वितरण होने लगा। लोग  मुंह बना बना कर इसको घटक रहे थे। यह देखकर श्री श्री महाराज ने भक्तों को यह वचन कहे " गोमूत्र का पान श्रद्धा पूर्वक प्रसन्न भाव से करें तभी यह फलदाई होगा। आप सब जानते हैं जितनी कड़वी दवा होती है उतनी ही फलदाई होती है, स्वाद और गंध की कदापि चिंता ना करें। "

    अंततः गोमूत्र पान का कार्यक्रम संपन्न हुआ। शांडिल्य आगे आ गया और अंगड़ाई लेते हुए बोला क्या बताएं ,त्रयम्बक भाई आत्मा तृप्त हो गई, रोम रोम से ओज फूट रहा है। मन कर रहा है की डेरी वाले के यहां से उठावन लगवा दूं ताकि रोज-रोज ताज गोमूत्र मिलता रहे। "  

"वह तो करना ही पड़ेगा नहीं तो शुद्ध ताजा गोमूत्र नियमित रूप से  कहां से मिलेगा", त्रयम्बक जी बोले।

    'अच्छा तो अब चला जाए अभी और कई कार्यक्रम भी तो हैं '  शांडिल्य ने कहा।

वह सब चल पड़े। चलते चलते  शांडिल्य अचानक बड़ी तेजी से दौड़ने लगा, अनुयाई अवाक हो गए और पीछे-पीछे दौड़ने लगे, शांडिल्य ने झपटकर एक दाढ़ी वाले अधेड़ आदमी को दोनों हाथों से जकड़ लिया और जोर-जोर से हांफते हुए चिल्लाया- " बोल बोल कमीने क्या नाम है? " आदमी एकदम घबरा गया था, कापते हुए बोला - " क्या बात है भाई? "  शांडिल्य और तेज आवाज में बोला - "कमीने नाम बता, अभी पूछ रहा है कि क्या बात है?"  आदमी धीरे से बोला- " हुजूर अब्दुल रजाक। "  शांडिल्य जोर से हंसा और दूसरे भी हंस पड़े। " मैंने तो इसको कपड़ों से पहचान लिया था ", शांडिल्य ने कहा। माहौल अब हल्का हो गया था। त्रयम्बक  जी ने कहा - "अब आप भी सटीक पहचानने लगे हो भाई, महापुरुषों के सानिध्य में जड़मति भी सुजान हो जाते हैं। कहा गया है श्रद्धा वान ही ज्ञान को प्राप्त होता है।

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