मेरे प्रिया आकांक्षी मित्रो, कठोर फैसले लेना सब की बस की बात नहीं:: विकुति

 


 

मेरे प्रिया आकांक्षी मित्रो,

मुझे यह बताते हुए अपार   हर्ष।हो रहा है कि जो समस्या ये कांग्रेसी 70 साल में हल नहीं कर पाए मैने उसे चुटकियों में हल कर दिया है। आपको,बेरोजगार  या बेकार जैसे घटिया विशेषणों से सदा के लिए मुक्त करके आकांक्षी युवा जैसे सम्मानित विशेषण से संयुक्त कर दिया गया है लेकिन मुझे इसका कोई क्रेडिट नहीं चाहिए। मुझे तो केवल वोट की दरकार रहती है जो आप मुझे देंगे ही देंगे। विश्व गुरु होने के नाते भी मेरा आपके वोट पर अधिकार बनता है। यह सब कैसे हुआ इसे संक्षेप में बताने का प्रयास करता हूं जो जानकर आप खुश होंगे।

यह समस्या आज की नहीं है यह तो नेहरू जी के समय में भी थी जिस पर उन्होंने कोई ध्यान ही नहीं दिया। मैं तो उसे समय बच्चा ही था लेकिन जन सेवा का भाव मेरे अंदर कूट-कूट कर भरा हुआ था इसीलिए मैं यह समस्या लेकर नेहरू जी के पास गया ,लेकिन उन्होंने चाचा नेहरू होते हुए भी मुझ गरीब बच्चे

 को झिड़क कर भगा दिया। इसके बाद इंदिरा जी आई लेकिन उन्होंने तो इमरजेंसी ही लगा दी, मेरे जैसे लोग जयप्रकाश नारायण के साथ जेल चले गए इसलिए कोई बात आगे बढ़ने का सवाल ही नहीं पैदा हुआ और यह प्रकरण ऐसे ही पड़ा रहा, उल्लेखनीय है कि उस समय मैं अभी प्रधानमंत्री नहीं बना था बल्कि भीख मांग कर अपने दिन काट रहा था। मनमोहन सिंह ने जरूर इस मुद्दे को उठाना चाहा लेकिन उनको सोनिया जी ने डांटते हुए कहा यह एक कठोर फैसला है हम लोग यह नहीं ले सकते, विश्व गुरु को आने दो वही जो कुछ करना होगा करेगा तुम चुप करके बैठो। यह सुनकर मनमोहन सिंह चुप कर बैठ गए, और इस मामले में कोई प्रगति नहीं हो पाई।

फिर मैं आ गया लेकिन आकांक्षी बनाने का यह फैसला इतना कठोर था कि मैं भी इसे 11 साल तक नहीं ले पाया। मैं विचार करता रहा ,करता रहा लेकिन बात बन नहीं पा रही थी फिर मैने एक दिन अपनी पार्टी की एक मीटिंग बुलाई, वैसे आप मित्रों से क्या छुपाना हमारे यहां तो सब कितने कितने बुद्धिमान है यह पूरी दुनिया को पता है, उनसे आखिर क्या उम्मीद हो सकती थी लेकिन लोकतंत्र की भी एक मर्यादा होती है और उसका पालन भी जरूरी है इसीलिए यह बैठक बुलानी पड़ी। घंटों बैठक चलती रही लेकिन मेरे मन लायक कोई प्रस्ताव आया ही नहीं। मैं उन प्रस्तावों को भी आपसे छुपाना नहीं चाहता एक-एक कर उनकी संक्षेप में चर्चा करता हूं।

सबसे पहला प्रस्ताव यह आया कि इनकी एक ही समस्या है इनके पास नौकरी नहीं है इसलिए इनको नौकरी दे दी जाए समस्या समाप्त हो जाएगी। मैंने इस प्रस्ताव का तत्काल विरोध किया, आप उनकी समस्या हल कर रहे हैं या उनको अपमानित कर रहे हैं? ऐसे तेजस्वी और ऊर्जावान नौजवानों को आप किसी का गुलाम बनाना चाहते हैं? यह मुझे कतई स्वीकार नहीं है। यह सब लोग गरीब लोग हैं इनके पास व्यापार कारोबार कल कारखाना नहीं है। यह लोग मेरी तरह के गरीब हैं मेरे पास तो फिर भी एक दुकान थी लेकिन तब भी क्या मैंने कभी नौकरी की ओर देखा। नौकरी में फंसा कर क्यों इनका भविष्य चौपट करना चाहते हो। नौकरी करके क्या यह मेरे ओहदे तक पहुंच सकते हैं। अपने यहां कहा गया है निषिद्ध चाकरी भीख निदान, यह विश्व गुरु भारत के नौजवान नौकरी चाकरी करने के लिए बने हैं इनको तो इस देश का तिरंगा दुनिया भर में फहराना है जैसा की मैं कर रहा हूं यह मेरे ही काम को अब आगे बढ़ाएंगे इसलिए इनको इन झंझटों में मत डालो। यह सुनकर प्रस्तावकर्ता  सकते में आ गए।

 लोगों ने तालियां बजाई और कहा महा मानव ठीक कहते हैं। इस प्रकार यह प्रस्ताव गिर गया।

फिर एक सज्जन खड़े हुए उन्होंने गंभीरता पूर्वक यह प्रस्ताव रखा की क्यों न इनको आर्थिक मदद देकर इनका औद्योगिकरण कर दिया जाए। मैंने कहा मैं एक हद तक इस प्रस्ताव से सहमत हूं, लेकिन आखिर कितने लोग व्यापार करेंगे या उद्योग लगाएंगे A1 और A2 तो व्यापार कर ही रहे हैं, क्या यह लोग उनसे बड़ा व्यापार खड़ा कर देंगे। नहीं यह किसी भी प्रकार संभव नहीं है। इसी प्रकार के चिरकुट व्यापारियों को समाप्त करने के लिए तो नोटबंदी लागू की गई थी, फिर उसी प्रकार के चिरकुट व्यापार को बढ़ावा देने का क्या फायदा? इसके बावजूद मैं स्टार्टअप के विरोध में नहीं हूं, बल्कि उसके समर्थन मैं हूं लेकिन मेरी एक ही शर्त है, स्टार्ट अप का भारतीय संस्कृति अर्थात हिंदुत्व के मूल्य के अनुरूप होना चाहिए। धर्म के बिना व्यापार व्यर्थ होता है। उदाहरण के लिए यदि किसी ठेले पर कोई अमरुद या केला बेच रहा हो तो ग्राहक को यह पता तो होना ही चाहिए की बेचने वाला हिंदू है या मुसलमान है, किंतु हमारे देश में ऐसी छोटी-छोटी सामान्य बातों पर भी ध्यान नहीं दिया जाता है। मुझे लग रहा है कि आप मेरी बात ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं तो मैं उदाहरण सहित समझता हूं, हमारे देश में इस प्रकार के स्टार्टअप पहले भी रहे हैं और आज भी हैं जिन्होंने विश्व में भारत का परचम लहराया है उदाहरण के लिए आसाराम के स्टार्टअप और राम रहीम के स्टार्टअप पर दृष्टि डालिए, इन स्टार्टअप में एक पैसे का  कर्ज़ ना तो किसी बैंक से लिया गया और ना ही किसी इन्वेस्टमेंट कंपनी से लिया इस प्रकार इन पर किसी प्रकार का वित्तीय भार देश पर नहीं पड़ा। किंतु अपने अच्छे दिनों में यह स्टार्ट अप अरबों मैं खेल रहे थे तथा देश का विकास कर रहे थे। पैसे रुपए की बात छोड़िए तो भी यह स्टार्टअप लाखों भटके हुए लोगों को सच्ची हिंदुत्व की राह दिखा रहे थे। किंतु व्यापार में ऊंच नीच लगी ही रहती है कुछ छोटी-छोटी बातों की वजह से इन दोनों स्टार्टअप के सीईओ आजकल जेल में है लेकिन आपको ज्ञात ही होगा की जेल कहने भर की जेल है। यह लोग अपनी इच्छा से अंदर बाहर करते रहते हैं वैसे जेल का नीरव एकांत साधना के लिए अति उपयुक्त होता है। जब तक इच्छा हुई ध्यान साधना करते रहे और जब जी उचट गया तो टहलते हुए आश्रम पहुंचकर भक्तों को प्रवचन सुनाने लगे। फिर जब इस असार संसार से मन ऊब गया तो अंदर जाकर साधना में लीन हो गए और सच कहूं तो आज ये स्टार्ट अप भारत देश यानी सरकार के लिए ज्यादा उपयोगी साबित हो रहे हैं।

सरकार को समय-समय पर मूर्खों की आवश्यकता पड़ती ही रहती है ऐसी स्थिति में बिगड़ी हुई स्थिति में भी यह स्टार्टअप आवश्यकता अनुसार मूर्खों की उपलब्धता तत्काल सुनिश्चित कर देते हैं जो वोट से लेकर के नीतियों के प्रचार प्रसार में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होते हैं। इस प्रकार,ऐसे स्टार्ट अप देश का विकास तो करते ही है अपना भी विकास करते रहते हैं। ऐसे स्टार्ट अप स्वप्रेरण से स्थापित और संचालित होते हैं।

आप सोच रहे हैं की मैं आपको पुराने उदाहरण देकर बहला रहा हूं लेकिन बात ऐसी नहीं मैं अभी एकदम ताजा उदाहरण देकर भी अपनी बात सिद्ध करने का प्रयास करूंगा। ध्यान दीजिए, एकदम अभी का उदाहरण लीजिए मेरे छोटे भाई का एक ताजा-ताजा स्टार्टअप है अभी इसको तीन-चार साल ही हुए हैं लेकिन इसका टर्नओवर करोड़ों में चल रहा है इस स्टार्टअप में भी किसी प्रकार का कोई वित्तीय कर्ज या अन्य किसी प्रकार की सहायता किसी से नहीं ली है आपने सामर्थ एवं प्रतिभा से आज इस स्तर पर पहुंच गया है। कोई कितनी भी बड़ी नौकरी करता हो जिंदगी में एक घर बना बना लेना ही बहुत बड़ी बात होती है लेकिन मेरा छोटा भाई पूरा एक गांव बसा रहा है वह भी ऐसा वैसा गांव नहीं बल्कि खालिस हिंदुओं का गांव, क्या आपको विश्वास हो रहा है? यह एकदम सत्य पर आधारित तथ्य है अभी आगे ब्राह्मण गांव, ठाकुरगांव, वैश्य गांव, और शूद्र गांव की भी योजना है। इस प्रकार के जितने भी अधिक स्टार्ट अप स्थापित हो देश के विकास के लिए अत्यंत उपयोगी होंगे। यदि आपका विश्वास धर्म में नहीं है तो भी कोई बात नहीं है एक एक अन्य प्रकार का स्टार्टअप भी मेरे जेहन में है जिसके उदाहरण विशेष कर मेरे गृह प्रदेश में विद्यमान है मैं एक उदाहरण देकर आपको स्पष्ट करता हूं। वहां यानी मेरे गृह प्रदेश में ऐसे ऐसे प्रतिभाशाली युवक हैं जो घर बैठे बैठे प्रशासनिक अधिकारी और जज आदि बनकर कश्मीर भ्रमण कर रहे हैं और अपने ही बनाए न्यायालय में फैसला दे रहे हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा की ये फैसले सरकारी अदालत में भी मान्य थे। क्या आपको उपरोक्त उदाहरणों में कोई रुचि है? यदि नहीं है तो होनी चाहिए। कहा गया है जिस राह महाजन जाते हैं वही सच्ची राह है।

अब मूल प्रकरण पर आते हैं अंत में एक वरिष्ठ सदस्य ने उठकर गंभीरता से यह प्रस्ताव किया की क्यों न इन लोगों को देश भक्त बना दिया जाए? मैंने एक क्षण सोचा और कहां वैसे तो देशभक्त बनने पर कोई रोक है नहीं जो जो चाहता है देशभक्त बन जाता है यहां तक की बहुत लोग अंधभक्त भी बन गए हैं इसलिए इस क्षेत्र में भीड़ बहुत हो गई है इसमें अब और लोगों को समायोजित करना कठिन हो रहा है। आवश्यकता अनुसार इस क्षेत्र में लोग आते जाते रह सकते हैं इसमें किसी को क्या आपत्ति है?

इसके बाद कोई अन्य प्रस्ताव नहीं आया। मैं निराश होकर समाधि में चला गया और अचानक एक भागवत प्रेरणा मेरे मस्तिष्क में कौंध गई। आंखें खोल कर देखा तो मोहन भाई पीछे बैठे थे मैंने उनको इशारा किया, और वह दौड़ते हुए मंच पर मेरे पास आए। मैंने एक मंत्र मोहन भाई के कान में फूंक दिया इसी मंत्र का परिणाम है आपका यह आकांक्षी युवा का पद। यह कोई मामूली उपलब्धि नहीं है यह एक क्रांति है जो पूरे देश में फैलेगी बस मुझे कांग्रेस वालों, टीएमसी वालों डीएमके वालों और आप वालों पर भरोसा नहीं है, यह इतना कठोर फैसला क्या खाकर करेंगे?

 

 

                     

 

आपका

मुमकिन खान

 

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