A I की गाथा फाइल में ( भाग - 8)
【 पूर्व संक्षिप्त - अभी तक आप ने पढ़ा है कि भारत सरकार से चीफ साहब को एक फ़ैक्स संदेश प्राप्त होता है जिसमें A I का निर्माण करने के आदेश होते हैं।फ़ैक्स की प्रति प्रमुख सचिव विज्ञान को अग्रतर कार्यवाही हेतु प्रेषित कर दी जाती है। चीफ साहब अथक प्रयास कर के मुख्यमंत्री जी का मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं और प्राप्त निर्देशों के अनुसार कई यूनिवर्सिटीज के संस्कृत ,दर्शन विभाग के प्रोफेसर्स के साथ चर्चा की जाती है।वेदाध्ययन का कोई संस्थान न होने , संस्कृत भाषा मे A I अथवा विज्ञान पढ़ाने की व्यवस्था न होने के तथ्य उज़ागर होते हैं। जगतगुरु रामभद्राचार्य जी से भी संपर्क किया जाता है पर वे वेदों पर शोध करने की सलाह देते हैं ताकि साफ तौर पर A I के विषय मे मत स्थिर किया जा सके। मा0 मुख्यमंत्री जी स्वदेशी A I के निर्माण पर बल दे रहे हैं जो संस्कृत ,संस्कृति एवं सनातन के आदर्शों से ओतप्रोत हो। वे दो दिन बाद एक प्रारम्भिक बैठक कर विभागीय रणनीति की जानकारी भी चाहते हैं।चीफ साहब विज्ञान विभाग के प्रमुख को यह भी निर्देश दे चुके हैं कि निदेशालय स्तर पर टास्क फोर्स गठित कर स्लाइड तैयार की जाएं और मुख्यमंत्री जी की बैठक में उसका प्रस्तुतिकरण भी किया जाये। चीफ साहब अपने स्तर से भी इस नेक काम को अंजाम देने में लगे हुए हैं पर कोई दिशा नहीं मिल पा रही है। बैठक की तिथि निकट आ रही है और रक्तचाप बढ़ रहा है। आगे की गाथा नीचे प्रस्तुत की जा रही है।】....
जगतगुरु रामभरोसेचार्य जी से हुई लम्बी वार्ता बेनतीजा रही।न कोई दिशा ही मिली और न ही कोई ठोस जानकारी। अलग से यह भी हुआ कि ' कृत्रिमता ' पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए 'कृत्रिम मेधा ' से विरत रहने का सुझाव भी मिल गया। कथावाचकों , धर्माचारियों से इससे अधिक अपेक्षा भी नहीं की जानी चाहिए। अब रामभरोसेचार्य जी से कौन बहस करे कि रामायण ,महाभारत में भी तो छल छद्म का खूब प्रयोग किया गया था। खैर यह बात तो स्वीकारी ही जानी चाहिए कि राजनीति एवं कूटनीति में कृत्रिमता का प्रयोग किये बिना सफलता भी नहीं मिलती है। साम, दाम ,दंड, भेद तो चार स्तम्भ हैं जिन पर कूटनीति का आशियाना निर्मित है। छल प्रपंच मिथ्या कथन और तथ्य गोपन तो राजनीति का ककहरा है। यह बात भी अपने आप में उचित है कि कृत्रिमता से सामाजिक समरसता क़ायम नहीं रखी जा सकती ।एक कुशल राजनेता को इन सबमें सामंजस्य बिठाना पड़ता है। इन सब स्थितियों से जूझते हुए चीफ साहब को मानसिक थकान सी होने लगी थी और वे कार्यालय थोड़ा जल्दी ही छोड़ना चाह रहे थे। उन्होंने निजी सचिव को आदेशित किया कि गाड़ी लगवायी जाये और कार्यालय बन्द किया जाये। कल्लन सिंह प्रकट हो गये ,साहब का ब्रीफकेस आदि उठा कर चल दिये ,ड्राईवर गाड़ी संभाल चुका था ,पोर्टिको में अन्य कारों के आने पर रोक लगा दी गयी,निकास मार्ग पर ट्रैफिक सिपाही मुस्तैदी से खड़ा होकर रास्ता सुगम बनाने में व्यस्त था। चीफ साहब कमरे से निकले ,गनर पहले से ही सावधान मुद्रा में था , अन्य स्टॉफ उन्हें पोर्टिको तक छोड़ने चल दिया।लिफ्ट पहले से ही रोक कर रखी गयी थी। पोर्टिको में गाड़ी लग चुकी थी।गनर दरवाज़ा खोले खड़ा था।चीफ साहब के आसन ग्रहण करने के उपरांत वाहन चालक एवं गनर आगे की सीट पर बैठ गये।गाड़ी स्टार्ट हुई और तेजी से निकल गयी। स्टॉफ भी प्रसन्न था क्योंकि आधे घण्टे पूर्व ही उसे घर जाने का सुअवसर मिल रहा था।
चीफ साहब के आवास के बाहर एक कार और दो जीप खड़ी थी जिस पर ' उत्तर प्रदेश सरकार ' लिखा हुआ था। बहरहाल डोमेस्टिक हेल्पर दिवाकर आचार्य ने गेट खोला ,साहब की सरकारी कार पोर्टिको में पहुँच गयी।गनर ने कार का दरवाजा खोला ,साहब बाहर निकले। साहब पर नज़र पड़ते ही तीन व्यक्ति तेज कदमों से चलते हुए समीप पहुँच गये और बारी बारी से चरण स्पर्श किये। एनिमल हस्बेंडरी के डायरेक्टर डॉ0 विवेक सिंह ने दो अन्य लोगों का का परिचय कराया - पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ0 स्वर्णिम मिश्र एवं लाइव स्टाकमैन विनोद पुष्कर। दरअसल चीफ साहब की "गिर नस्ल ' वाली गाय सुरभि का प्रसव काल 290 दिन पूरा हो गया था पर कोई संकेत नहीं मिल रहा था लिहाज़ा निदेशक ,पशुपालन को इसकी ख़बर कर दी गयी थी। उसी सिलसिले में यह टीम आयी थी। प्रसव की आज पूरी संभावना व्यक्त कर रहे थे। चीफ़ साहब अपनी लॉबी में पहुँचे तो पता चला कि मेम साहब अपना सिंगार पटार कर रही थीं।उन्हें किटी - पार्टी में शामिल होने निकलना था। मेम साहब ने लेडी कुक रागिनी को आदेश दिया - " साहब को पानी दे दो और एक कप ब्लैक कॉफी भी। काफी दो कप तैयार करना ,मुझे भी पीना है।" रागिनी ' जी , मेम साहब ' कह कर किचन में तेजी से घुस गयी। काफी ट्रे लेकर जाते समय उसने मेम साहब को आवाज़ भी लगा दिया था। काफी पीने के बाद मेम साहब तो अपने मिशन पर निकल गयीं और देर रात तक वापस आने को कह गयीं थीं। रागिनी को केवल साहब के लिये ही डिनर तैयार करने की हिदायत भी दे गई थीं।
काफी पीकर साहब कपड़े चेंज कर सीधे वॉशरूम में घुस गये और विधिवत स्नानादि कर वापस आये। कुर्ता पजामा पहना ,टेल्कम पाउडर छिड़का और डियोड्रेंट की फुहार से कुर्ते को भिंगो कर सीधे अपने 'चिन्तन गृह ' में प्रवेश कर गये। दिवाकर आचार्य ने सब व्यवस्थाएं पहले ही कर के गुलाम अली की गज़लें ब्लू टूथ से जोड़ कर ऑन कर दिया था और लॉन में प्लास्टिक की कुर्सी पर आराम की मुद्रा में बैठ गया था। चीफ साहब को जानिवाकर ब्लैक लेवल की शोहबत बहुत पसन्द है। इसका असर धीरे धीरे होता है जिससे उनको ऊर्जा मिलती है ,सम्बल मिलता है ,हौसला अफ़ज़ाई होती है और सबसे बढ़ कर रोमांस की झुरझुरी पैदा होती है। कभी कभी इसके विपरीत वाली स्थिति भी आती है। नये नूतन विचार पनपते हैं ,गूढ़ रहस्यों से पर्दा उठता है ,गम्भीर समस्याओं का सुरुचिपूर्ण हल भी निकलता है, अपनी नादानियों नाकामयाबियों के साथ ही साथ अपनी सफलताओं का मिश्रित परिणाम स्मृति पटल पर आकर गुदगुदाने लगते हैं। डेढ़ दो घण्टे का समय कब बीत जाता है ,कुछ पता भी नहीं चलता है।
जानिवाकर का पहला पैग हलक के नीचे उतरा ,थोड़ी सी हलचल हुई ,थोड़ा सा इकुब्रिलियम डिस्टर्ब हुआ तभी उनके कमरे के दरवाजे पर हल्की सी दस्तक सुनायी पड़ी। लेडी कुक रागिनी कमरे में प्रविष्ट हुई ,चेहरे पर खुशी के भाव थे।उसे एक खुशखबरी सुनानी थी और डिनर तैयार करने का निर्देश प्राप्त करना था। उसने कहा - " साहब ,बधाई हो ,सुरभि माता ने लक्ष्मी जी को जन्म दिया है।जच्चा बच्चा दोनों स्वस्थ हैं।डॉक्टरों की टीम जाने की इजाज़त के लिये बाहर खड़ी है। उनको क्या बोल दें ?". साहब को भी प्रसन्नता हुई और उन्होंने उत्तर दिया - " दिवाकर को बोलो कि वह सबको मिठाई से पानी पिला कर ही विदा करे।" जी सर ,बहुत अच्छा कह कर रागिनी दिवाकर को साहब का सन्देश देने चली गयी। मिष्टान्न खा कर डॉक्टरों की टीम जब वापस चली गयी तो एक बार पुनः दरवाजे पर दस्तक हुई। इस बार रागिनी यह बोलने आयी थी कि जाते समय मेम साहब यह कह गयीं थीं कि -" यदि सुरभि ने नंदी बाबा को जन्म दिया तो उसका नाम प्रियांश होगा और यदि गौरी आयीं तो उनका नाम प्रियांशी होगा। और साहब डिनर में क्या क्या बना दूँ।". साहब ने हल्की मुस्कान चेहरे पर बिखेरी और बोले - " मेम साहब की बात का ही पालन किया जायेगा। और हाँ , आज खाने में दाल चपाती ,तोरई की सब्जी और थोड़ा सा सादा राइस ही चलेगा। चिकेन का कोटा पूरा हो चुका है।". रागिनी सिर झुका कर कमरे से बाहर आ गयी।
प्रियांशी के अवतरण से चीफ साहब भी प्रसन्न थे। उसे देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाये और चिन्तन शिविर से बाहर निकल कर सुरभि के समीप गये। जय , वीरू दोनों डॉगी नये मेहमान के स्वागत में पहले ही पहुँच गये थे। प्रियांशी के जैविक पिता जर्सी नस्ल के नंदी बाबा थे और सुरभि ने A I ( आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन ) से गर्भ धारण किया था। प्रियांशी अपने जैविक पिता पर गयी थी यानी चितकबरी थी। माथे पर चन्द्रमा और दाहिने पेट पर स्वास्तिक के चिन्ह होने का स्पष्ट आभास हो रहा था।जब मेम साहब कल सुरभि और प्रियांशी की तस्वीर सोशल मीडिया पर अपलोड करेंगी तो पत्रकारों की भीड़ एकत्र हो जायेगी। चीफ़ साहब के मन में कुछ नूतन विचार कुलाँचे मारने लगे थे और वे चिंतन के मूड में आने लगे थे।अतः कोलाहल से दूर अपने चिन्तन कक्ष में आकर जानिवाकर का एक बड़ा और अन्तिम पैग बना कर आँख मूंद कर विचार करने लगे।
पहला विचार आया कि आखिर A I भी विज्ञान की देन है।इसका विस्तार भी द्रुत गति से हो रहा है और ढेर सारी मान्यताओं को धूल धूसरित भी कर रहा है। अनेक गोपनीय बातों का खुलासा होने लगा है।इससे सत्तारूढ़ दल की पोल भी खुलने लगी है। यह सर्व विदित ही है कि यदि विज्ञान के आविष्कारों का दुरूपयोग किया जाये तो वैश्विक संकट भी उत्पन्न हो सकता है।अतः A I का इस्तेमाल बहुत ही सोच समझ कर किया जाना चाहिए। कभी किसी कॉलीग ने शेयर किया था कि एक रोबोट ने अपनी मालकिन की हत्या कर दिया था।
A I के बारे में दूसरी आशंका चीफ़ साहब को परेशान करने लगी। जब A I इन्सानों जैसे कार्य मे दक्ष होगा तो सम्भव है A I से युक्त रोबोट अपने जैसा ही कोई दूसरा भी रोबोट पैदा कर दे - ( प्रकृति ने जीवधारियों को सृजन के अधिकार से सुसज्जित किया है ) यदि रोबोट इंसानों जैसे ही कार्य करेगा तो सम्भव है उससे ढेर सारे गलत काम भी होने लगें -( इन्सानों द्वारा गलत काम भी तो किये ही जाते हैं )। यदि ऐसा सम्भव हुआ तो अनर्थ भी हो सकता है।
चीफ़ साहब के मन में तीसरी आशंका भी उठती है कि भविष्य में यह भी सम्भव हो सकता है कि रोबोट युद्ध भी करने लग जाएं। सैनिकों की जगह रोबोट ही लड़ने लगें। ये रोबोट पुलिस के भी काम करने में सक्षम हो सकते हैं। मसलन यातायात की व्यवस्था करना ,गाड़ियों की रफ़्तार चेक करना ,जुर्माना लगाना व वसूलना आदि। सरकारी इमारतों और मॉल की सुरक्षा करना , संदिग्ध व्यक्तियों को पकड़ना और उन्हें दण्डित ( शारीरिक दण्ड देना ) करना आदि। विचारणीय है कि यदि ऐसा होगा तो कैसा फील होगा ?
जैसे जैसे जानिवाकर अपना प्रभाव दिखाने लगा वैसे वैसे ही चीफ़ साहब की कल्पना की उड़ान भी ऊँची होती गयी। वे पशोपेश में पड़ गये कि कहीं ऐसा न हो जाये कि A I रोबोट आदमियों पर शासन करने लग जाये। शुरुआत में मानव A I रोबोट पर निर्भर होना शुरू करेगा और कालान्तर में वो रोबोट की दासता ही न स्वीकार कर ले। ऐसा भी हो सकता है कि रोबोट हिंसक हो जाएं और अपने विवेक ( प्रोग्रेमिंग ) के अनुसार उपयुक्त समझते हुए इंसानों को समाप्त न कर दें। ऐसा विचार आते ही चीफ साहब के शरीर मे सिहरन प्रारम्भ हो जाती है। अब वे विचार की दिशा बदलने के लिए एक लवली पैग और बनाते हैं और एक ही सांस में पूरी गिलास ख़त्म कर देते हैं।
अब चीफ साहब के मन में सकारात्मक विचार पनपता है। मसलन आज कल बच्चे पढ़ाई लिखाई में A I का सर्वाधिक प्रयोग करने लगे हैं। कम समय मे सटीक रिपोर्ट और प्रोजेक्ट तैयार कर लेते हैं। यहाँ तक तो ठीक है पर एक लोचा की संभावना तो बनी ही रहेगी कि जब A I की सहायता से ही प्रोजेक्ट और रिपोर्ट तैयार करने की प्रवित्ति बलवती हो जायेगी तो क्या बच्चों की रचनात्मकता और मौलिकता को अक्षुण्ण रखना सम्भव हो पायेगा ?
अब गहन चिंतन के मूड में चीफ साहेब को दीखता है कि कमरे में टंगे हुए पर्दे झिलमिला रहे हैं और उन्हें ऐसा आभास हो रहा है कि बाहर आँधी आ गयी है जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। यह आभास मात्र है।दिमाग पुनः सक्रिय होता है और नये विचार आते है - आज आमजन मोबाइल और इंटरनेट की गिरफ्त में है।हम इंटरनेट पर कोई चीज ढूंढते हैं या कोई खास रील्स देखते हैं तो हमारे मोबाइल पर वही चीजें आने लगती हैं।ऐसा क्यों होता है ? कहीं न कहीं हमारी निजता पर किसी की नज़र होती है। आज A I के माध्यम से किसी भी तस्वीर से कुछ भी कार्य करा सकना सम्भव हो गया है।फर्जी वीडिओज़ की बाढ़ सी आ गयी है। आम आदमी भयाक्रान्त है कि कब उसकी इज्ज़त में बाट लग जाये।
उक्त चिन्तन से दो विचार पनपते हैं- A I के व्यापक प्रयोग के पहले निजता संरक्षण के लिए सख़्त कानून बनने चाहिए और गहन शोध भी होना चाहिए। समाज अच्छे कार्यों की प्रशंसा भी करता है तो गलत कामों की भर्त्सना भी करता है।इसी के अनुरूप कोई मैकेनिज़्म विकसित किया जाना चाहिए कि A I के ऋणात्मक पक्ष पर अंकुश लगाया जा सके।
चीफ साहब पाँच जिलों में डी एम और तीन मंडलों में आयुक्त रहे हैं।अनेक विभागों में सचिव ,प्रमुख सचिव रहे हैं ,भारत सरकार के दो मंत्रालयों में सचिव की भूमिका में भी रहे हैं तथा वर्तमान में सबसे बड़े प्रदेश के मुख्य सचिव हैं। आज तक उन्हें कठिन निर्णय लेने में भी कोई दिक्कत नहीं आयी तो देशज A I के निर्माण से वे भयभीत क्यों हैं ? राजनेताओं एवं ब्यूरोक्रेट्स में यही अंतर होता है। राजनेता गण अपनी इच्छा जताते हैं और ब्यूरोक्रेट्स उन्हें पूरा करते हैं। राजनेताओं को नियम कानून से कोई लेना देना नहीं होता पर ब्यूरोक्रेट्स उनकी इच्छाओं को कानूनी जामा पहनाने का काम करते हैं। वेदों से ज्ञान अर्जित कर A I का निर्माण करना दुरुहतम कार्य है पर ऐसा भी नहीं कि यह असम्भव प्रकृति का हो। निश्चित रूप से उन्हें सफलता मिलेगी।ईश्वर सहायक होंगे।
चीफ साहब दिवाकर को डिनर लगाने का आदेश देते हैं।खुद वॉशरूम में घुस जाते हैं।ब्लैडर रिक्त करते हैं।मुँह हाथ धोते हैं और खाने की मेज पर आ जाते हैं।डिनर के बाद लॉन में टहलते हैं।मेम साहब की कमी खलती है।पुनः वापसी पर शयनकक्ष में जाते हैं और निद्रा देवी के आगोश में गिरफ़्तार हो जाते हैं।
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