A I की गाथा फाइल में ( भाग - 7) :: विकुति

 

A I की गाथा फाइल में ( भाग - 7)

 

【पुनरावलोकन -  अब तक आप ने पढ़ा है कि ए0 आई0 निर्माण विषयक फ़ैक्स संदेश चीफ साहब को प्राप्त होता है और वे बिना बिलम्ब किये उसकी प्रति प्रमुख सचिव शिव कुमार शर्मा के पास अग्रतर कार्यवाही हेतु भेज देते है और खुद मुख्यमंत्री जी से सम्पर्क करने का अथक प्रयास करते हैं पर सफल नहीं हो पाते है। फिर भी वे पराजय स्वीकार नहीं करते। मुख्यमंत्री जी की लोकेशन काशी नगरी में मिलती है जहाँ वे प्रधानमंत्री जी की सभा के पूर्व तैयारियों का जायज़ा लेने गये हुए थे। बिना वक्त गवाएं चीफ़ साहब काशी नगरी पहुँच जाते हैं और लंच के समय A I पर मुख्यमंत्री जी का मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं।वापसी पर उनकी तबीयत भी नासाज़ हो जाती है।प्रमुख सचिव विज्ञान को मुख्यमंत्री जी के साथ होने वाली बैठक और उनके निर्देशों से अवगत कराते हुए यह अपेक्षा की जाती है कि स्लाइड प्रजेंटेशन की भी तैयारी कर ली जाये। गोरक्ष धाम की लाइब्रेरी में पुराने ग्रन्थों की खोजबीन भी की जाये और संस्कृत व दर्शन के विद्वानों की भी सहायता ली जाये। स्टॉफ ऑफिसर मंजीत सिंह को भी आवश्यक निर्देश देकर चीफ़ साहब आराम फरमाने एवं आरोग्य लाभ प्राप्त करने अपने आवास चले जाते है। आगे की कथा नीचे प्रस्तुत की जा रही है।】....

 कल दफ़्तर से घर जाकर चीफ साहब ने लंच में केवल श्रीफल ( बेल ) का एक गिलास शर्बत ही लिया था और सो गये थे। शाम पाँच बजे तक बिल्कुल चंगा फील करने लगे।  ब्लैक कॉफी का सेवन किया ,एकाध सिगरेट फूंके और सीधे सफेद टी शर्ट और सफेद हाफ पैंट में टेनिस कोर्ट पहुँच गये। खूब जम कर पसीना बहाये। वापसी पर मजे से स्नान किये। मुद्दतों बाद वे डूबते हुए सूरज को आज देखने का सौभाग्य जुटा सकते थे। इन्जॉय करने के विविध तरीके उनके मन पर हावी हो रहे थे पर अपनी सेहत का भी तो ख्याल रखना था। एक एक करके दुरूह आइडियाज से अपने को विलग करते गए।

इसी बीच मेम साहब का फरमान आया - "  It is fortoitous  circumstances  कि आप घर पर हो ,क्यों न हम लोग शापिंग करने ' लू लू मॉल चलें ?'" भला ढलती उम्र में कौन हसबेंड अपनी वाईफ के आग्रह को टाल सकता है ?  पत्नी का अनुरोध उसके लिये आदेश ही हो जाता है। खैर दोनों लोग शॉपिंग के लिये निकल लिये। दो घण्टे तक मॉल घूमे और रेस्तरां में काफ़ी आदि का आनन्द लेकर खुशी खुशी घर भी आ गये। घर में प्रवेश करते ही किचन से फिश बेक करने की खुशबू उनके नथुनों में पड़ी।उत्साह बढ़ा और जॉनी वाकर की  बॉटल ,चिप्स ,सोडा ,रोस्टेड काजू ,भींगे अखरोट व बादाम और आईस क्यूब्स लॉन के समीप वाले कमरे में सजाने के आदेश उन्होंने अपने प्रिय डोमेस्टिक हेल्पर दिवाकर आचार्य को दे दिया। दिवाकर ने ए सी ऑन किया ,करीने से मेज साफ़ किया और सभी आवश्यक चीजें टेबल पर सजा दिया।फिश भी बेक होकर प्लेट की शोभा बढ़ाते मेज पर विराजमान हो गयी। चीफ साहब सफेद कुर्ते पजामे में गर्दन व छाती पर खुशबूदार टेल्कम पॉवडर बिखेर कर कुर्ते पर डियोड्रेंट छिड़क कर कुर्सी पर धँस गये। दिवाकर को आदेशित किया कि एक छोटा पैग बनाये ,आईस क्यूब्स डाले ,थोड़ा सोडा और पानी मिलाये तथा जगजीत सिंग एवं चित्रा सिंह की ग़ज़ल  ब्लू टूथ  माध्यम से चालू कर दे। फोन अटेन्डेन्ट को निर्देशित कर दिया कि - " पी एम ओ एवं मुख्यमंत्री जी के कॉल्स के अतिरिक्त अन्य कोई फोन कॉल्स उन्हें अग्रसारित न किया जाये ". एक से एक चुनिंदा और कर्णप्रिय गज़लें चलती रहीं ,चीफ साहब उनका आनन्द लेते हुए इस 'नेक कार्य' मे तल्लीनता पूर्वक व्यस्त रहे। रात्रि के ग्यारह बजे चुके थे।डायनिंग टेबल पर डिनर लग चुका था। मेम साहब का आदेश पाकर फ़ौरन साहब भी एक आज्ञाकारी और स्वामिभक्त डॉगी के मानिन्द टेबल पर एडजस्ट हो गये। खाने के पूर्व ईश्वर को कोटिशः धन्यवाद भी ज्ञापित किये कि ऐसा ही अवसर बार बार आये। भोजनोपरांत जब शयन कक्ष में गये तो श्रीमती जी से बोल दिया कि जल्दी ही नींद मुझे अपने आगोश में ले लेगी ,कल मॉर्निंग वॉक पर भी नहीं जा सकूँगा।

             बीती रात चीफ़ साहब घोड़े बेच कर सोये और सुबह फ्रेश नींद टूटी। सब यथावत था।कमरे व लॉन की सफाई हो चुकी थी।माली अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद था।  जय और वीरू दोनों डॉगी सुबह की सैर से वापस आ गये थे। साहब के दुलार की प्रतीक्षा कर रहे थे।साहब ने भी उन्हें निराश नहीं किया।वे उन्हें पुत्रवत स्नेह देते है क्योंकि अपने जाये दोनों बेटे बहुओं के साथ अमेरिका और ब्रिटेन में सेटिल हो गए हैं और अपनी व्यस्तता के चलते धर का रुख नहीं करते हैं। चीफ़ साहब वीतराग हैं और यह वैश्विक समस्या है अतः इस पर उनका ध्यान कभी नहीं जाता।वे अपने आप में व्यस्त और प्रसन्न रहते हैं। खैर  चीफ साहब स्नानादि से निवृत्त होकर हल्का नाश्ता कर के दफ़्तर के लिये निकल लेते हैं। दफ़्तर पहुँच कर श्रीगणेश की पूजा अर्चना कर अपनी कुर्सी पर तशरीफ़ रख देते हैं। पी एस पाण्डेय कमरे में प्रवेश करता है और स्वास्थ्य संबंधी पूछताछ कर इत्मीनान की सांस लेता है। वह कल दोपहर बाद आने वाले फोन कॉल्स की डिटेल्स भी प्रस्तुत करता है और इज़ाजत चाहता है कि किसी से बात करायी जाये अथवा नहीं। साहब के मौन साध लेने का तात्पर्य निकाल लेता है कि किसी से भी बात नहीं करानी है। वह अपनी सीट पर वापस आकर बैठ जाता है।

  स्टॉफ ऑफिसर ,मंजीत सिंह चरण स्पर्श कर चीफ़ साहब का आशिर्वाद ग्रहण करते हैं और संकेत पाकर सामने कुर्सी पर विराजमान हो जाते हैं।उन्हें जल्दी है कल दिये गये टास्क की अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने की। अपनी डायरी भी खोलते हैं और उनके हाथ मे दो तीन पेज के कागज़ भी हैं। आदेश मिलते ही तरतीबवार रिपोर्ट करने लगते है - " सर ,कल लखनऊ यूनिवर्सिटी के वी0सी0 प्रो0  आलोक राय और संस्कृत विभाग के एच0 ओ0 डी0  प्रोफ़ेसर राम नगीना मिश्र एवं दर्शन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो0 बी0 एन0 अग्रवाल जी से दूरभाष पर सम्पर्क साधा गया। जानकारी प्राप्त हुई कि संस्कृत विभाग के अन्तर्गत वेदाध्ययन की व्यवस्था नहीं है और किसी भी शोधार्थी ने वेदों पर कोई शोध भी नहीं किया है। अधिकतम शोध कालिदास के विभिन्न नाटकों पर ही किये गए हैं। जहाँ तक A I का सम्बन्ध है ,इसके बारे में अनभिज्ञता व्यक्त की गई। डॉ0 सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0  शरदेन्दु कुमार अवस्थी जी से फोन पर सम्पर्क किया गया।वहाँ भी वेदों पर कोई शोध पत्र अभी तक नहीं प्रस्तुत किया गया है। वे ख़ुद भी वेदों का अध्ययन नहीं किये हैं और A I के विषय में उनकी कोई जानकारी भी नहीं है। गोरक्ष धाम पुस्तकालय के प्रभारी  डॉ0 ज्ञानेन्द चतुर्वेदी जी से भी वार्ता हुई। उन्होंने अवगत कराया कि उनकी लाइब्रेरी में चारो पवित्र वेद अवश्य हैं पर पाठकों की कोई दिलचस्पी नहीं है और बहुत ही कम पढ़े गये हैं।गीता पर भाष्य एवं मेघदूत का हिन्दी अनुवाद ही ज्यादातर लोगों की पसन्द है। उन्होंने भी A I के विषय में अनभिज्ञता ही ज़ाहिर किया था। ले देकर स्थिति यही बन रही है कि संस्कृत एवं दर्शन विभागों में न ही किसी को A I के विषय मे कोई ज्ञान है और न ही वेदाध्ययन की सुविधा अनुमन्य है।  पण्डित रामभरोसाचार्यजी के निजी सचिव व कार्यक्रम अधिकारी  डॉ0 शालिग्राम शांडिल्य जी से समय ले लिया गया है और आज अपराह्न साढ़े तीन बजे उनकी वार्ता आप से हो सकती है। ए0 सी0 एस0 नियुक्ति विभाग से मैं व्यक्तिगत रूप से मिला था। उन्होंने अवगत कराया कि संस्कृत को ऑप्शनल विषय के रूप में लेकर आईएएस बनने वाला सीधी भर्ती का कोई बंदा वर्तमान में सेवारत नहीं है।दो प्रोमोटेड ऑफिसर  राम ज्ञान पाण्डेय और त्रिभुवन तिवारी हैं जो क्रमशः  बागपत के डी0 एम0 और  मीरजापुर के मंडलायुक्त के पद पर तैनात हैं। सौभाग्य से दोनों जनों से बात हुई पर कोई सार्थक परिणाम नहीं मिला। वे लोग न तो वेदों का अध्ययन ही किये हैं और न ही A I से भिज्ञ हैं। पूरी रिपोर्ट यही है सर। आज आप को पण्डित रामभरोसाचार्यजी से बात करनी है जिसका समय साढ़े तीन बजे अपराह्न है। इस समय एक बैठक भी नियत थी जिसे स्थगित करने के आदेश, आप के अनुमोदन की प्रत्याशा में , जारी कर दिये गये हैं।"

             मंजीत सिंह सीधी भर्ती के आईएएस हैं और अभी एक ही जिला किये हैं।वो भी महज चार महीने तक ही। नासमझी के कारण सत्ताधारी दल के  एक पार्षद को सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करने के एक ' तुच्छ ' जुर्म में हवालात में डालने से उत्पन्न रोष के चलते उन्हें सचिवालय की पनिशमेंट पोस्टिंग दे दी गयी थी। चीफ़ साहब अपने स्टॉफ ऑफिसर से प्रसन्न रहते हैं क्योंकि सौंपे गये कार्य को समय सीमा में ही पूरा कर लेता है। अभी वे मंजीत को ' थैंक यू ,वेल डन ' कहने ही वाले थे कि मंजीत ने अति कातर स्वर में कहा - " सर ,गुस्ताखी माफ हो तो अर्ज करूँ। मैं केवल चार माह तक बाँदा में डी एम रहा हूँ।सचिवालय आये भी डेढ साल का समय गुज़र गया। यदि आप की कृपा हो जाती तो -----।" यह कहते हुए मंजीत उठा और एक बार पुनः चीफ साहब का चरण स्पर्श कर के बाहर जाने लगा।  चीफ साहब ने कहा - " ओ0 के0 ,मंजीत , इस पर बाद में बात करते हैं।कोई उपयुक्त समय आने दो।" निःसंदेह चीफ साहब बहुत ही प्रभावशाली ब्यूरोक्रेट हैं।सीधे प्रधानमंत्री जी से इनके तार जुड़े हैं और उन्हीं के बदौलत चीफ के पद पर तीन तीन सेवा विस्तार भी प्राप्त कर चुके हैं। भलेमानस भी इतने हैं कि  मुख्यमंत्री जी की पसन्द के न होते हुए भी कोई ऐसा मौका नहीं देते कि मुख्यमंत्री जी नाराज़ हो सकें।

            चीफ साहब के चैम्बर में नीरवता का साम्राज्य छाया हुआ था और वे फाइलों के निस्तारण में व्यस्त थे। अचेतन मन पर रामभरोसाचार्यजी से वार्ता का बिन्दु कभी कभी हावी होने लगता था। वे सेल्फ मेड मैन हैं।दो वर्ष की आयु में नेत्र की ज्योति सदा सदा के लिए जाती रही पर अन्धता उनकी प्रतिभा के चमकने में अवरोध नहीं उत्पन्न कर सकी। रामानन्द सम्प्रदाय के चार जगतगुरुओं में से एक हैं और 1988 से ही इस पद पर विराजमान हैं।चित्रकूट स्थित 'आचार्य रामभरोसाचार्यविकलांग विश्व विद्यालय ' के संस्थापक एवं आजीवन कुलाधिपति भी हैं । वे प्रज्ञा चक्षु हैं ,रामायण एवं भागवत के कथाकार एवं बहुभाषाविद भी हैं।उनकी अच्छी खासी फॉलोइंग और प्रभूत प्रतिष्ठा भी है।उनसे बहुत सम्मानजनक रीति से वार्ता करनी होगी और अपेक्षित सूचनाएं भी प्राप्त करनी होगी।

इसी बीच चीफ साहब को एक बात स्मरण हो आयी।उन्होंने प्रमुख सचिव विज्ञान से बात कराने का निर्देश अपने पी0 एस0 को दे डाला। थोड़े समय बाद ही लाल वाले फोन पर बज़र की घंटी बजी ,पी एस की आवाज आयी - " शर्मा जी ,लाईन पर हैं ,सर।"  शर्मा जी ने अदब से ' गुड मॉर्निंग ' कहा। अब चीफ साहब बोले - " पार्टनर ,A I प्रजेंटेशन की क्या स्थिति है ? निदेशालय वालों को काम पर लगा ही दिया होगा।कल मॉर्निंग तक प्रगति रिपोर्ट भेज देना। लगे रहो , सफलता अवश्य मिलेगी।" चीफ़ साहब का अचानक फोन आ जाना ,प्रमुख सचिव विज्ञान को रुचिकर नहीं लगा था क्योंकि वे संयुक्त सचिव ( सचिवालय सेवा ) डॉ0 शालिनी मिश्रा  के साथ अपने चैम्बर में चाय पी रहे थे और दोनों लोग विश्व विद्यालय के दिनों की चर्चा जैसे ' महत्वपूर्ण ' मुद्दे पर गहनता से विचार विनिमय कर रहे थे। चर्चा इस बिंदु पर जारी थी कि मनोविज्ञान ,समाजशास्त्र ,हिन्दी और  संस्कृत विभाग में छात्राओं की आमद ज़्यादा हुआ करती थी और उन्हें देखने मात्र के लिये छात्र इन विभागों के आसपास मँडराया करते थे। इस महत्वपूर्ण बिन्दु पर चिंतन में चीफ साहब की वार्ता से खलल पड़ा था तथा डॉ0 शालिनी को अल्प अवकाश पर जाना भी था ,वे चली भी गयीं थीं। खैर शर्मा जी  भी निदेशक डॉ0 श्रीधरन को हिदायत देकर लंच पर जाने के लिये तैयार हो गये थे।

          चीफ़ साहब आज लंच से जल्दी ही आ गये थे क्योंकि जगतगुरु रामभरोसाचार्यजी से वार्ता करनी थी।धर्मगुरुओं से वार्ता करने में अतीव संयम बरतने की जरूरत होती है।वे उपदेश भी ज़्यादा देते हैं और ज्ञान भी बघारते हैं। मंजीत भी समय से आ गया था।उसे अपनी जिम्मेदारी का अहसास था। चीफ़ साहब ने निजी सचिव को आदेशित किया कि रामभरोसाचार्यजी के कार्यक्रम अधिकारी डॉ0 शालिग्राम शांडिल्य को फोन किया जाये ताकि वे वार्ता मैनेज करायें। थोड़े समय बाद ही शांडिल्य का फोन आ गया।जब चीफ़ साहब ने फोन उठा लिया तो जगतगुरु को फोन पकड़ा दिया गया। पहल चीफ साहब को ही करनी थी ।वे बोले - " चरण स्पर्श ,गुरुवर ।"  दूसरी ओर से आशिर्वाद मिला - " जुग जुग जियो ,वत्स। ब्यूरोक्रेसी के शिखर पर बने रहो ,प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री की कृपा तुम्हारे ऊपर बरसती रहे। प्रदेश एवं देश को उन्नति के मार्ग पर ले जाने के लिये ईश्वर तुम्हारी मदद करते रहें। एक लम्बे अन्तराल से तुम्हारा चित्रकूट  आना सम्भव नहीं हो सका है।कभी समय निकाल कर आओ। पढ़े लिखे लोगों ,शीर्ष अधिकारियों एवं काबिल राजनेताओं से वार्ता में मुझे अद्भुत आनन्द आता है।". अब चीफ साहब ने आदर पूर्वक निवेदन किया - " गुरुवर कुछ बिंदुओं पर आप के मार्गदर्शन की महती आवश्यकता है।यदि अनुमति दें तो आप का आशिर्वाद प्राप्त किया जाये।".   जगतगुरु बोले - " वत्स ,तुम्हारे मातहत मंजीत ने कतिपय बिन्दु फ़ैक्स किया था जिससे  मुझे अवगत कराया गया है। मैं क्रमबद्ध रीति से  बताने का प्रयास कर रहा हूँ। आगे हरि इच्छा।". चीफ साहब विनीत भाव से आभार व्यक्त किये। ( जगतगुरु की बातें अगले प्रस्तर में दी जाएंगी।)..

          जगतगुरु गहरी उच्छ्वास लेकर बोले - " वत्स , अति संक्षेप में बता रहा हूँ - वेदों में केवल धार्मिक कर्मकांड ही नहीं, बल्कि अनेक विषयों का ज्ञान समाहित है । यथा ,ऋग्वेद में भक्ति, खगोलशास्त्र, ब्रह्मांड विज्ञान की चर्चा है तो यजुर्वेद में यज्ञ, अनुष्ठान, सामाजिक नियम का उल्लेख मिलता है। इसी प्रकार सामवेद में संगीत, स्वर-विज्ञान के विषय में प्रभूत ज्ञान भंडार है तो अथर्ववेद में चिकित्सा, आयुर्वेद, तंत्र, नीतिशास्त्र आदि पर गम्भीर चिन्तन मिलता है। जहाँ तक  ब्रह्मांड और विज्ञान की बात है पृथ्वी, सूर्य, चंद्रमा, ग्रह-नक्षत्रों की गतियों का वर्णन वेदों में मिलता है।ऋग्वेद में कहा गया है कि पृथ्वी गोलाकार है और सूर्य के चारों ओर घूमती है।अथर्ववेद में बीज, जड़ी-बूटियों और औषधियों का विस्तृत वर्णन मिलता है, जो आयुर्वेद का आधार बना।अब जहाँ तक अध्यात्म और दर्शन की बात है वेदों में आत्मा, पुनर्जन्म, मोक्ष, ब्रह्म की अवधारणा मिलती है, जो उपनिषदों में विस्तार से समझाई गई।अद्वैत वेदांत, योग, कर्म सिद्धांत और संन्यास जैसे दर्शन वेदों से उत्पन्न हुए।

            अब नैतिकता और समाज व्यवस्था की बात की जाये तो वेदों में वर्णित "ऋत" (सार्वभौमिक सत्य और नैतिकता) समाज में अनुशासन और न्याय की नींव रखता है।मनुष्य के चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) वेदों से ही व्याख्यायित हैं।वेद स्थूल ज्ञान तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे चेतना, ध्यान, योग और मनोविज्ञान से भी जुड़े हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा में वेदों को "शाश्वत सत्य" माना गया है, जो समय के साथ अपनी प्रासंगिकता बनाए रखते हैं।इसीलिए वेदों को "संपूर्ण ज्ञान" कहा जाता है, क्योंकि वे भौतिक और आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।".

           "अब तुम्हारे विशिष्ट बिन्दु पर आते हैं। वेद ,रामायण ,गीता हिंदुओ के पवित्र ग्रन्थ हैं।विज्ञान खगोल से लगायत नैतिकता व सामाजिकता पर भी सम्यक प्रकाश पड़ता है।क्या बिना विज्ञान के यह सम्भव होता अग्नि बाण चलाना ,सम्मोहन बाण चलाना ,आकाश को कुछ समय के लिये धुयें से भर देना ,प्राण लेने के स्थान पर केवल मूर्छित मात्र कर देना , जीवनदायिनी औषधि का निर्माण आदि। वेदों में A I की चर्चा का स्पष्ट उल्लेख तो कहीं नहीं मिलता है पर इस बिंदु पर बिना व्यापक शोध के ,इसे नकारना भी अत्यन्त दुरूह व कठिन कार्य होगा। मेरा नेक सुझाव है ,इस बिन्दु पर शोध किया जाये।

         अब अगले बिन्दु पर आते हैं ,अधिकांश यूनिवर्सिटीज में वेदों के अध्ययन के लिये कोई अलग से विभाग नहीं खोले गये हैं।किन्ही किन्ही विश्व विद्यालयों में संस्कृत विभाग के अन्तर्गत ही वेदाध्ययन के लिये व्यवस्था अवश्य की गई है परन्तु स्नातक ,स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करने वाले छात्रों की रुचि वेदों के अध्ययन में नहीं होती है। धर्माचार्य गण ,महामंडलेश्वर आदि ही वेद पढ़ते हैं और श्रद्धालुओं में ज्ञान की अलख जगाते हैं।

    दर्शन शास्त्र और विज्ञान में कोई सादृश्यता है अथवा नहीं। जैसा कि मैने पहले ही कहा है कि अधिकांश दर्शन वेदों से ही निकले हैं और वेदों में आत्मा पुनर्जन्म ब्रह्मांड आदि की चर्चा भी है।सांख्य वैशेषिक योग और मीमांसा आदि में विज्ञान एवं गणित की स्पष्ट झलक देखी जा सकती है पर A I के बिन्दु पर निश्चित रूप से कुछ कहना जल्दबाजी होगी।इसके लिये शोध की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकता। इसी के साथ एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि साधु सन्यासियों एवं महात्माओं की सोच एवं विचार सामान्य जन से भिन्न होती है।उनकी दिलचस्पी धर्म आध्यात्म एवं नैतिकता में होती है ।वे हर चीज में विज्ञान की तलाश करने से परहेज भी करते हैं। यह कहना ज्यादा उपयुक्त लगता है कि विज्ञान बाहरी ब्रह्माण्ड पर जोर देता है और दर्शन आन्तरिक ब्रह्माण्ड पर। विज्ञान हार्डवेयर है और दर्शन साफ्टवेयर है।

     अब अन्तिम बात यह कहना चाहूँगा कि ' कृत्रिम मेधा ' पर इतना बल क्यों दिया जा रहा है ?  कृत्रिमता कोई अच्छी चीज तो है नहीं। सहजता सरलता विनयशीलता विनम्रता और सत्य ही सदैव शीर्ष पर रहे हैं।अतः कृत्रिमता को इग्नोर किया जाना चाहिए। इसी से सम्बद्ध दूसरा विचार यह भी है कि 'सत्यमेव जयते '। यदि कृत्रिम मेधा के निर्माण से सत्य अपने सही रूप में उज़ागर होगा तो बेशक इस दिशा में आगे की कार्यवाही की जानी चाहिए। जैसा कि मुझे अवगत कराया गया है कि A I के चारो मॉडल सत्य का ही उद्घाटन कर रहे हैं तो यह कहना उचित होगा कि कोई संस्कारी A I का ही निर्माण किया जाये ,जैसा प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री चाहते हैं पर वेदों ,दर्शन एवं संस्कृत साहित्य से कोई विशेष सहायता मिल पाएगी,यह कह पाना कठिन है। धन्यवाद। सुखी रहो ,वत्स। मेरा आशिर्वाद तुम्हारे साथ है।ईश्वर तुम्हारा भला करे।"..

          चीफ साहब आचार्य रामभरोसाचार्यजी के उपदेश सुन कर थक से गये थे।फोन का चोंगा भी गर्म हो गया था।इस बीच जल भी नहीं पी पाये थे। निर्जलीकरण जैसा कुछ आभास हो रहा था।अतः चपरासी कल्लन सिंह को घंटी की आवाज़ देकर बुलाये और लगातार दो गिलास ' मेडिकेटेड वॉटर ' पीकर ऊर्जा संरक्षित करने में तल्लीन हो गये। मंजीत भी बुलाये गये जिन्हें चीफ ने बताया कि ' इस लम्बी बातचीत से किसी नतीजे पर पहुचना कठिन है।पर हमें पराजय स्वीकार नहीं है। हमारा प्रयास जारी रहेगा।"

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