A I की गाथा फाइल में - ( भाग -6 )

 

 

  【पूर्वावलोकन - अभी तक आप ने पढ़ा है कि भारत सरकार से ए0 आई0 निर्माण संबंधी एक फ़ैक्स संदेश चीफ साहब को प्राप्त होता है।फ़ैक्स की प्रति प्रमुख सचिव विज्ञान को आवश्यक कार्यवाही हेतु उपलब्ध करा दी जाती है। मुख्य सचिव इस मामले में मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिये मुख्यमंत्री जी से सम्पर्क करना चाहते हैं पर अति व्यस्तता के चलते  कोई बात नहीं हो पाती है। मुख्यमंत्री जी काशी नगरी में प्रधानमंत्री जी की होने वाली सभा के आयोजन में व्यस्त होते हैं। चीफ साहब डी जी पी एवं ए सी एस ऊर्जा के साथ प्रोग्राम बना कर काशी पहुँच जाते हैं।लंच के समय मार्गदर्शन मिलता है कि हमारा A I  संस्कृत ,संस्कृति एवं सनातन पर आधारित होगा और इसके लिये वेदों ,ऋचाओं एवं अन्य प्राचीन संस्कृत ग्रंथों का अध्ययन करना होगा एवं उसी से अपने मसरफ की बात निकालनी होगी। मुख्यालय वापस आकर चीफ साहब खुद भी तैयारी में जुट जाते हैं और प्रमुख सचिव विज्ञान को भी अग्रतर कार्यवाही के निर्देश देते हैं।अगले दो दिनों बाद मुख्यमंत्री जी एक बैठक भी करने वाले हैं जिसमें विभाग की रणनीति प्रजेंटेशन के माध्यम से प्रस्तुत की जानी है। अब प्रमुख सचिव विज्ञान के स्तर पर की गई कार्यवाही नीचे प्रस्तुत की जा रही है।】.

   पिछले दिनों A I के चक्कर में प्रमुख सचिव को देर रात्रि तक कार्यालय में रुकना पड़ा था और समय से अपने इकलौते साले के पुत्र के अवतरण दिवस पर भी समय से नहीं पहुँच पाये थे। आज प्रसन्न मुद्रा में दफ़्तर आये। हनुमान जी की आरती कर अपनी सीट पर बैठे ही थे कि चीफ साहब की दो पेज की टिप्पणी उनके निजी सचिव ने उन्हें उपलब्ध कराया। यद्यपि फोन पर चीफ़ साहब ने अवगत तो करा दिया था पर टिप्पणी में जिन कार्यवाहियों का उल्लेख था ,उसे पढ़ कर उनका मन दुःखी हो गया , अवसादग्रस्त हो गये। ' कभी तक़दीर का मातम तो कभी दुनियां का गिला ' वाली कहावत चरितार्थ होने लगी है। पिछले तीन साल से इस पनिशमेंट पोस्टिंग पर हैं।निदेशालय से अपेक्षित सुविधाएं नहीं मिल पातीं ,बज़ट की कमी का अलग ही रोना है। कभी कभी उनका मूड बगावती भी हो जाता है परन्तु अगली जनवरी में ए सी एस के पद पर होने वाली प्रोन्नति को ध्यान में रखते हुए अपने को नियंत्रित भी कर लेते हैं। मन ही मन मुख्यमंत्री एवं मुख्य सचिव की मंशा से बिल्कुल भी सहमत नहीं हैं पर सार्वजनिक रूप से ऐसा आभास नहीं होने देते हैं। यह कितनी बेतुकी बात है कि निर्माण करना है A I का और सूत्र ढूढना है वेदों ,ऋचाओं एवं संस्कृत ग्रन्थों में।  विज्ञान और वेद , विज्ञान और संस्कृत ,विज्ञान और दर्शन में सामंजस्य कैसे स्थापित किया जा सकता है ? जब A I के चार चार मॉडल उपलब्ध हैं तो इनमें से किसी एक का चयन कर उसी में अपेक्षित संशोधन ,परिवर्द्धन कर अपना ए0 आई0 क्यों नहीं बनाया जाता ?  आख़िर संस्कारी A I की आवश्यकता ही क्यों है ?  जिस प्रकार ग्रोक हो या जेमिनी ,यहाँ तक कि मेटा A I भी सही सूचनाएं दे देता है तो ऐसा A I की जरूरत क्या आन पड़ी है जो तथ्यों को छुपाये और केवल सकारात्मक सूचनाएं ही जनता को उपलब्ध कराए? ऐसा विदित होता है कि सरकार की कोई गहरी साज़िश है ताकि बिना अवरोध अधिक दिनों तक तथ्य गोपन कर के जनता को मूर्ख बनाने और उस पर शासन करने का।

          खैर अभी समय नहीं है इन जरूरी सवालों के उत्तर तलाशने का। अभी तो वही करना है जो चीफ़ साहब का आदेश है। पण्डित राम भद्राचार्य जी ने बेशक संस्कृत में सौ से अधिक किताबें लिखा हो ,भले ही उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया हो पर यह आवश्यक नहीं है कि वे A I के सूत्र भी बता सकें। संस्कृत में पी एच डी करने वाले विद्वानों को भी शायद ही A I का कोई इल्म हो। भारतीय दर्शन की अनेक शाखाएं वेद को प्रमाण के रूप में स्वीकारती हैं पर क्या यह जरूरी है कि वे A I के विषय में भी कुछ जानकारी दे सकें।  गोरक्ष धाम का पुस्तकालय भले ही अति समृध्द हो पर यह जरूरी भी नहीं कि वहाँ के अध्येता कृत्रिम मेधा पर भी प्रकाश डाल सकें। खैर इतने में सुबह वाली चाय आ गयी।शर्मा जीने लम्बी वाली सिगरेट सुलगा ली और धुयें के छल्ले बनाते हुए चाय का आनन्द लेने लगे। अब तक उनका गुस्सा काफ़ूर हो गया था।ख़ुद पर ग्लानि महसूसने लगे। आख़िर उन्हें करना ही क्या है ,बस आदेश / निर्देश ही तो देने हैं। सचिवालय और निदेशालय के अधिकारी ,कर्मचारी ही तो वह सब करेंगे जो अपेक्षित होगा। जब शर्मा जी चाय पी चुके तो अपने निजी सचिव  सौरभ सिंह को बज़र देकर निर्देशित किया कि आज 11.30 बजे मेरे कक्ष में एक बैठक आयोजित होगी जिसमें निदेशक सहित सभी वरिष्ठ वैज्ञानिक और सचिवालय के कार्मिक प्रतिभाग करेंगे। विषय होगा A I के निर्माण हेतु रणनीति तय करना।

      इसी बीच चपरासी राम सरूप एक चिट लेकर हाज़िर हुआ। डॉ0 शालिनी मिश्रा , संयुक्त सचिव के नाम की चिट थी जो प्रमुख सचिव से मिलना चाहती थीं। प्रमुख सचिव ने राम सरूप को आदेश दिया - " भेज दो।". दो मिनट बाद कुछ कागज़ात लिये डॉ0 शालिनी मिश्रा कक्ष में प्रवेश कीं और सादर अभिवादन के लिए दोनों हाथ जोड़कर अपना सिर नवाया। प्रमुख सचिव ने इशारे से सीट ग्रहण करने को कहा।अब डॉ0 मिश्रा प्रमुख सचिव के सम्मुख इत्मीनान से विराजमान हो गयीं। दरअसल डॉ0 मिश्रा प्रसूति अवकाश के बाद अपनी ड्यूटी जॉइन करने के लिए उपस्थित हुईं थीं। अपना कार्यभार प्रमाणक हस्ताक्षर हेतु प्रमुख सचिव के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया। डॉ0 शालिनी का चेहरा और कद काठी प्रमुख सचिव के सरहज साहिबा से सादृश्य रखता था। प्रमुख सचिव का मन गदगद हो गया। कार्यभार प्रमाणक मेज के दाहिनी ओर रखते हुए प्रमुख सचिव ने संवाद शुरू किया - " हाँ तो मैडम ,आप को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है। शिशु का स्वास्थ्य कैसा है ,आवश्यक टीके लगवा लिया है अथवा नहीं , घर में अन्य कितने लोग हैं ,आप के पति क्या करते हैं ,आप कहाँ की रहने वाली हैं ,कितने बच्चे हैं ,अपना मकान है अथवा किराये के मकान में रहती हैं ,आप ने किस यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा ग्रहण किया है और किस विषय पर आप की थीसिस है ,आप कितने दिनों से इस विभाग में तैनात रही हैं ?". प्रमुख सचिव ने जान बूझ कर ढेर सारे सवाल कर लिये ताकि कम से कम आधे घण्टे तक वार्तालाप का क्रम चलता रहे।

         अब डॉ0 शालिनी के बोलने की बारी थी।उन्होंने एक एक सवाल का सधा हुआ उत्तर दिया - " सर मैं पूर्वांचल के जिला जौनपुर की रहने वाली हूँ। उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ग्रहण किया है। स्नातकोत्तर में संस्कृत मेरा विषय था।मैं अपने बैच की टॉपर थी और प्रो0 राम कुमार दीक्षित के अधीन मैंने अपना डी0 फिल पूरा किया था। शोध का विषय था ' कालिदास साहित्य में प्रेम की अनुभूति के चरण और उनकी नायिकाएं'।  लोक सेवा आयोग से वर्ष 1983 बैच में मेरा चयन समीक्षा अधिकारी के पद पर हुआ।मुकदमेबाजी के चलते वर्ष 1986 में नौकरी जॉइन किया। मेरे पति उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। गोमतीनगर में अपना निजी मकान है। साथ में ' इन- लाज़ ' भी रहते हैं और दो बच्चों की माँ हूँ मैं। इस विभाग में मेरी तैनाती साल भर से है जिसमें से मैं चार माह के अवकाश पर थी और आज जॉइन करने आप के सम्मुख उपस्थित हुई हूँ।".

          प्रमुख सचिव को यह वार्तालाप  सुरुचिपूर्ण लग रहा था। वार्ता को क्रमित रखते हुए उन्होंने अवगत कराया कि - " यह सुखद संयोग है। मैं भी पूर्वांचल के ही जिला आजमगढ़ का मूल निवासी हूँ और मैंने भी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ही उच्च शिक्षा ग्रहण किया हूँ। मेरा विषय भूगोल था और मैंने भी अपने बैच में टॉप किया था।फिर मैं कोचिंग के लिये दिल्ली चला गया और दूसरे प्रयास में मैं अपने धेय्य में सफल भी हो गया। मैं खेतिहर परिवार से सम्बंधित देशज व्यक्ति हूँ।  मा0 ऊर्जा मंत्री जी ( अरविन्द कुमार शर्मा ) और दिल्ली के पूर्व कैबिनेट मंत्री  श्री गोपाल राय जी मेरे निकटवर्ती रिश्तेदार भी हैं।मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आप संस्कृत के स्कॉलर हैं। दरअसल आज एक बैठक रखी गयी है A I के निर्माण संबंधी और ऊपर से हिदायत है कि संस्कृत ग्रन्थों का अध्ययन कर सूचना निकाली जाये कि उसमें A I के विषय में क्या कुछ कहा गया है और उससे कितनी मदद मिल सकती है अपना सनातनी कृत्रिम मेधा के निर्माण में ?. बैठक 11.30 बजे से इसी कक्ष में आयोजित की गई है।आप को भी बैठक में प्रतिभाग करना है और अपना सर्वोत्तम योगदान देना है।".

            देखते ही देखते 11.30 का समय भी समीप आ गया। प्रमुख सचिव के कक्ष में कुछ अतिरिक्त प्लास्टिक वाली कुर्सियां लगायी जाने लगीं। सचिवालय के अधिकारी/ कर्मचारी पहले ही आ गये थे।प्रमुख सचिव के सामने वाली दो कुर्सियां  निदेशक एवं अपर निदेशक के लिए आरक्षित थीं। उसके बगल वाली बायीं कुर्सी पर विशेष सचिव प्रखर पंत जी कब्जा जमा लिये थे। दाहिने हाथ की आरक्षित कुर्सी के बगल वाली कुर्सी पर डॉ0 शालिनी मिश्रा आसीन हो गयी थीं। अनुसचिव का आगमन अभी नहीं हुआ था। अनुभाग अधिकारी शिशिर झा एवं समीक्षा अधिकारी सुबोध निगम भी दूसरी पंक्ति में किनारे आसान जमा लिये थे। निदेशालय के अधिकारी गण भी प्रवेश पत्र बनवा रहे थे और शीघ्र ही पधारने वाले थे। प्रमुख सचिव ,चीफ साहब की टिप्पणी की दस छायाप्रतियां प्रतिभागियों में वितरित करने के लिये पहले ही करा लिये थे।कमरे में सन्नाटा पसरा था।सब लोग शान्त अपने अपने विचारों में खोये हुए थे।तभी राम सरूप ने दरवाजा खोला ,निदेशालय के पाँच वरिष्ठ अधिकारी अभिवादन करते हुए कमरे में दाख़िल हुए। डॉ0 श्रीधरन ( निदेशक ) और डॉ0 रामीरेड्डी ( अपर निदेशक ) अपने लिये आरक्षित सीट पर तशरीफ़ रक्खे। डॉ0 शंकरन ( संयुक्त निदेशक )एवं  डॉ0 माधवन ( डिप्टी डायरेक्टर ) भी रिक्त कुर्सियों पर बैठ गये। समीक्षा अधिकारी सभी प्रतिभागियों के हस्ताक्षर और मोबाइल नंबर प्राप्त करने हेतु पहले से तैयार सिग्नेचर शीट बारी बारी से रखना शुरू कर दिया। अंततः सबका हस्ताक्षर करा लेने के बाद  सुबोध निगम वॉशरूम जाने के बहाने बाहर निकल कर चैतन्य चूर्ण होठों के नीचे दबा कर अपने स्थान पर आकर निश्चेष्ट बैठ गये।

           प्रमुख सचिव ने शुरुआत किया - " मित्रों आप सबको ज्ञात ही होगा कि यह बैठक आहूत करने का आशय क्या है।काम बड़ा है , समय कम है ,इसी बीच कई बिंदुओं पर साई - -मलटेनियसली कार्यवाही करनी है। पण्डित रामभद्राचार्य जी से मुलाकात ,संस्कृत यूनिवर्सिटी काशी के विद्वानों से संपर्क ,गोरक्ष धाम के पुस्तकालय में छानबीन ,लखनऊ यूनिवर्सिटी के दर्शन शास्त्र विभाग एवं संस्कृत विभाग के प्रोफेसर्स से संपर्क करके सबसे अलग अलग उनकी राय जाननी है कि A I निर्माण संबंधी कोई सूक्त अथवा सामग्री उपलब्ध हो पायेगी अथवा नहीं?. यह कार्य इसलिए आवश्यक है कि हमें एक सनातनी ,सुसंस्कृत एवं देशज कृत्रिम मेधा का निर्माण करना है। मा0 प्रधानमंत्री जी एवं मुख्यमंत्री जी के ड्रीम प्रोजेक्ट में यह कार्य शीर्ष पर है ,अतः शीघ्रता निवेदित है।आज से दो दिन बाद ( अभी समय स्थान निश्चित नहीं हो पाया है ) मा0 मुख्यमंत्री जी की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है जिसमें विभाग की ओर से प्रजेंटेशन भी प्रस्तुत किया जाना है।  इन्हीं अहम बिंदुओं पर विचार हेतु आज की बैठक आहूत की गई है। अब बारी बारी से आप लोगों के सुझाव आमंत्रित हैं। पिछले दिनों डॉ0 शंकरन से विचार विमर्श हुआ था।उनका यह कहना था कि यदि सभी आवश्यक सामग्री उपलब्ध हो जाये तब भी A I विकसित करने में कम से कम छह माह का समय तो लग ही जायेगा। पर इससे मुख्यमंत्री जी का परपज़ सॉल्व नहीं होगा।".

           डॉ0 श्रीधरन ,निदेशक , एक तेजतर्राक और ज़हीन अधिकारी हैं पर उनमें साफ़गोई इतनी अधिक है कि बहुधा उनमें हठ आ जाता है और वे अपने सिद्धांतों से समझौते के लिये राज़ी नहीं होते हैं। उन्होंने कहना शुरू किया - " श्रीमन , आप का आदेश सिर माथे पर ले रहा हूँ पर मेरी जिज्ञासा मात्र इतनी है कि A I के निर्माण से वेद , दर्शन ,संस्कृत भाषा एवं गोरक्ष धाम के पुस्तकालय से क्या लेना देना है। A I के प्रमुख मॉडलों के गुण दोष पर विचार करना और इंटरनेशनल जर्नल्स में प्रकाशित खास अविष्कारों को आत्मसात कर अग्रेतर कार्यवाही करना ही अभीष्ट होगा। यदि इससे विलग कोई रास्ता अख़्तियार किया जायेगा तो अभिलषित परिणाम नहीं प्राप्त हो सकते हैं।  यदि शासन की यही मंशा है तो मुझे आगे कुछ नहीं कहना है और केवल आदेशों / निर्देशों का अनुपालन ही करना है।  मेरा यह निश्चित मत है कि इन प्रस्तावित कार्यवाहियों से कुछ हासिल होने वाला नहीं है । केवल समय और श्रम की बर्बादी है। धन्यवाद।". निदेशक की दो टूक बात सुन कर प्रमुख सचिव अवाक रह गये। वे मन से निदेशक की बात से सौ प्रतिशत सहमत हैं पर आख़िर उन्हें नौकरी भी करनी है और अगला प्रोमोशन भी लेना है।

           प्रमुख सचिव ने हस्तक्षेप किया - "  डॉ0 श्रीधरन ,माहौल को तल्ख न बनाया जाये बल्कि ख़ुशनुमा बनाये रखा जाये।  वेदों में विज्ञान के बिन्दु भी पाये जाते हैं। सांख्य ,योग ,वैशेषिक एवं मीमांसा दर्शन में तो स्पष्ट रूप से विज्ञान परिलक्षित होता है। भले ही भौतिकी ,रसायन एवं A I की चर्चा न हो पर केवल इस कारण से इनको दरकिनार नहीं किया जा सकता है।सरकारी नौकरी में कभी कभी बड़े बड़े समझौते भी करने पड़ते हैं ,शालीनता प्रदर्शित करनी पड़ती है और निरर्थक कार्य भी करने पड़ते है।  हम लोगों को मुख्य मन्त्री जी के निर्देशों का अनुपालन तो करना ही पड़ेगा ,चाहे उसका परिणाम जो भी हो।"   डॉ0 श्रीधरन ने ' सॉरी'  कहा तथा अपनी बात को और अधिक स्पष्ट करने का प्रयास किया -"  सर , आप ने अन्यथा ले लिया। वेद अपौरुषेय स्वीकारे गये हैं ,इसे मानने में किसी को हिचक नहीं होती है और न ही होनी चाहिए। मेरा कहना सिर्फ इतना ही था कि सौ मन भूसे की ढेर में यदि एक सुई डाल दी जाये और उसे ढूढने का आदेश दिया जाये तो मिलेगी तो अवश्य पर शायद वर्षों लग जाये। अभी तक किसी इंटरनेशनल जर्नल में कोई आर्टिकिल प्रकाशित नहीं हुई है जिसमें यह दावा किया गया हो कि यह अमुक वेद के अमुक सूत्र में वर्णित है। शोध में समय लगता है।कभी कभी बीसियों साल भी लग जाते हैं पर इतना धैर्य हो तो काम बन सकता है। हथेली पर सरसों नहीं उगायी जा सकती। यदि आप आदेश करेंगे तो हमारी टीम जाकर संबंधित विद्वानों से मिलेगी और उनसे उनके विचार भी जानेगी। धन्यवाद ,सर।".

          अब प्रमुख सचिव ने अतिरिक्त निदेशक डॉ0 रामीरेड्डी को अपने विचार रखने के लिये आमंत्रित किया। डॉ0 रामीरेड्डी ने कहा - " सर अभी पिछले सप्ताह I B M  अपनी एक बहुत बड़ा कार्यालय / लैब लखनऊ के गोल्फ़ सिटी में खोलने का एलान किया है और मा0 मुख्यमंत्री जी ने लखनऊ को A I का हब बनाने की घोषणा किया है। इस बात का उल्लेख नहीं किया गया है कि हम वेदों से A I को निकालने जा रहे हैं। दरअसल इधर नए ए0 आई0 ग्रोक की भाषा असंसदीय होती जा रही है जो किसी भी भलेमानस व्यक्ति को नागवार गुजरेगी। हमारी संस्कृति में तो अप्रिय सत्य भी बोलने की मनाही है। तात्पर्य यह कि हम जो A I विकसित करें वो मधुर संवाद ही करे। जहाँ तक प्रजेंटेशन देने की बात है तो प्रारंभिक स्तर की स्लाइडें बनाई जा सकती हैं कि अमुक अमुक विद्वानों से मिलने का प्रयास किया गया ,अमुक पुस्तकालय में प्राचीन ग्रंथों की पड़ताल की जा रही है और भारतीय दर्शन में विज्ञान खोजा जा रहा है। धन्यवाद।". प्रमुख सचिव ने डॉ0 रामीरेड्डी द्वारा सधी हुई बात कहने की प्रशंसा किया और स्वेच्छा से किसी को भी अपनी बात रखने के लिये प्रेरित किया। थोड़े समय तक मौन पसरा रहा तो प्रमुख सचिव ने डॉ0 शालिनी को बोलने के लिये आदेशित किया। डॉ0 शालिनी ने कहा - " मैंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से संस्कृत विषय में एम ए की डिग्री हासिल किया है और डी0 फिल0 भी किया है। मेरा निश्चित मत है कि विश्व विद्यालयों में संस्कृत विभाग में वेद नहीं पढ़ाये जाते हैं। वेदाध्ययन के लिये सम्भव है अलग संस्थान होंगे और इच्छुक व्यक्ति वेद पढ़ते हों।शंकराचार्य गण अवश्य ही वेदाध्ययन करते हैं। कहने का आशय यह है कि संस्कृत अन्य भाषाओं की तरह एक भाषा है और इसमें अधिकतर साहित्य ही पढ़ाया जाता है। धन्यवाद।".

         बैठक के अन्त में  प्रमुख सचिव ने  समराइज़ किया --"  निम्न बिंदुओं पर सहमति बनी  है   - निदेशालय द्वारा एक प्रश्नावली तैयार की जायेगी जिसमें समस्त बिंदुओं को उचित स्थान दिया जायेगा।उक्त प्रश्नावली लेकर अलग अलग अधिकारी / कर्मचारी अलग अलग विश्व विद्यालयों में जायेंगे और संबंधित प्रोफेसर्स से उनका लिखित संक्षिप्त उत्तर प्राप्त करेंगे। प्राप्त उत्तरों की निदेशालय स्तर पर समीक्षा की जायेगी और एक संहत टिप्पणी / प्रस्ताव शासन को उपलब्ध कराया जायेगा। यूनिवर्सिटीज में किसी खास प्राचार्य / प्रोफेसर से समय लेने में विशेष सचिव प्रखर पंत की सहायता ली जा सकेगी। अनुभाग अधिकारी शिशिर झा ,दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल किये हैं।इनको यह जिम्मेदारी दी जा रही है कि वे  अध्ययन कर के यह अवगत कराएं कि किस दर्शन का कौन सा बिन्दु  विज्ञान के किस सिद्धांत से  सादृश्य रखता है।  खासतौर से सांख्य दर्शन ,वैशेषिक दर्शन ,मीमांसा और योग दर्शन में विज्ञान के ढेर सारे बिन्दु मिलने पर आम सहमति व्यक्त की जाती है।बैठक समाप्त की जाती है। कार्यवृत तैयार कर प्रस्तुत किया जाये। धन्यवाद।".

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