ए0 आई0 की गाथा फ़ाइल में ( भाग -3 ) :: विकुति

 

 【 पूर्वावलोकन - अभी तक आप ने पढ़ा है कि  A I के विषय में भारत सरकार से प्राप्त फ़ैक्स सन्देश को लेकर मुख्य सचिव की चिन्ता बेकाबू होने लगी थी। उन्होंने प्रमुख सचिव ,विज्ञान को फ़ैक्स की प्रति उपलब्ध कराते हुए दफ्तर खोले रखने का निर्देश दिया और खुद मुख्यमंत्री जी से सम्पर्क साधने में व्यस्त हो गये थे। उधर प्रमुख सचिव ,विज्ञान निदेशालय के जॉइन्ट डायरेक्टर को अपने कक्ष में बुला कर उससे गम्भीर मंत्रणा कर रहे थे। विभाग के अन्य अधिकारी भी चैम्बर में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके थे।सभी फ़ैक्स से भयाक्रान्त थे ,शीघ्र हल ढूढने की प्रक्रिया में परेशान थे। प्रमुख सचिव विज्ञान की अग्रेतर वार्ता / निर्देश का क्रम जारी है।】

           प्रमुख सचिव अपने कक्ष में उपस्थित अधिकारियों से मुखातिब थे। उन्होंने विभाग के विशेष सचिव प्रखर पंत से अनायास ही पूछ लिया कि - ‘ क्या A I से सम्बंधित प्रीवियस पेपर्स विभाग में मौजूद हैं ?’ पंत जी अभी हाल ही में दो साल जिलाधिकारी के पद पर हौज काट कर सचिवालय के इस रद्दी विभाग में तैनाती पाये थे और काफी खिन्न थे। उनके कई बैचमेट्स लोक निर्माण विभाग सिंचाई विभाग चिकित्सा विभाग ग्रामीण अभियंत्रण सेवा विभाग में तैनाती पाये थे और सभी  के सभी मौज काट रहे थे।  पंत जी ने अनमयस्क रूप से से अनुसचिव की ओर देखा जिसका अनुसरण अनुसचिव ने भी गर्दन घुमा कर अनुभाग अधिकारी को देखने के लिए किया। अंततः बात समीक्षा अधिकारी सुबोध निगम तक पहुँची। सुबोध जी ,उत्तर देने से मना नहीं कर सकते थे।बहुत ही विनीत भाव से उन्होंने बताया कि - “ सर , मैं पिछले चार वर्षों से इस विभाग में तैनात ( पड़े-पड़े सड़ रहा हूँ) हूँ। इस सन्दर्भ में कोई पूर्व कागज़ात होने की संभावना क्षीण प्रतीत होती है।”. ‘ अच्छा ठीक है , पर इस सन्दर्भ में ‘ रिफरेंस क्लर्क ‘ की लिखित रिपोर्ट लेकर कल मुझे दिखा अवश्य दीजियेगा। पता नहीं कहीं ‘ अनटेंडेड ‘ कोई रिफरेंस मिल ही जाये ‘ यह कहते हुए विशेष सचिव ने अपने सजग होने का प्रमाण प्रमुख सचिव को दिया। यद्यपि शाम को अपने नियत कार्यक्रम में हो रहे बिलम्ब से वे आहत महसूस कर रहे थे। “ जी , बहुत अच्छा “ कहते हुए निगम जी ने राहत की सांस लिया और निश्चेष्ट बैठ कर समय काटने लगे। चैतन्य चूर्ण ( खैनी ) का अभाव और अन्तराल उनकी दक्षता को कुप्रभावित कर रहा था।

           प्रमुख सचिव हो रही इस वार्तालाप में कोई रुचि नहीं ले रहे थे क्योंकि वे अपने एक खास  निजी समस्या से बुरी तरह जूझ रहे थे। आज उन्हें अपने साले के पुत्र के अवतरण दिवस पर होने वाले उत्सव में शोभा बढ़ाना था पर इस निषिद्ध चाकरी के चलते विवश थे। मज़बूरी में मेम साहब को अकेले ही भतीजे के जन्मदिन उत्सव में अकेले ही जाना पड़ रहा था। इस महत्वपूर्ण निर्णय पर पहुचने के पूर्व साहब और मेम साहब के मध्य प्रेम पूर्वक वाकयुद्ध भी हो चुका था। प्रमुख सचिव अपराध बोध से ग्रस्त थे। साले साहब भी उन्हें ‘ मिस ‘ कर रहे होंगे और सरहज साहिबा तो अपने आपे से बाहर ही होंगी। मेरठ के सौरभ हत्या कांड से पतियों के अन्दर एक अनजाना भय भी व्याप्त रहता है और आवास के स्टोर रूम में अचानक आग लग जाने से भी उच्चाधिकारी गण भयाक्रान्त रहने लगे हैं।

           प्रमुख सचिव की अधेड़ावस्था भी इस तरह के उत्सवों में टाइम मशीन से यात्रा करते हुए युवावस्था के अवरुद्ध दरवाजों पर दस्तक  देने को आतुर हो जाती है। आज का सुअवसर खोने के कारण प्रमुख सचिव के अवचेतन मस्तिष्क से A I विरोधी तमाम तथ्य चेतन मस्तिष्क में उभरने लगे थे और बुढ़ापे की तरफ तेजी से बढ़ती उनकी अधेड़ावस्था इस विस्फोट के बाद हिरोशिमा  व नागाशाकी की तरह उजाड़ एवं वीरान दिखायी देने लगी थी। अचानक प्रमुख सचिव को लगा कि उन्हें काफी देर से लघुशंका की हाज़त महसूस हो रही थी। ऐसा विचार आते ही वे तेजी से कुर्सी छोड़ दिये और ‘ एक्सक्यूज़ मी ‘ कहते हुए अटैच वॉशरूम का दरवाज़ा खोलने लगे। थोड़ा रुक कर विशेष सचिव पंत को यह निर्देश देना भी नहीं भूले कि - ‘ यदि मुख्य सचिव का कोई फोन आ जाये तो देख लेना ,प्लीज। अभी आया’ कह कर वे वॉशरूम में प्रवेश कर गए। परन्तु ऐसी कोई अनहोनी घटना घटित नहीं हुई। प्रमुख सचिव आनन्द पूर्वक अपना ब्लैडर रिक्त कर पाने में सफल रहे । परन्तु जैसे ही वापस आकर अपनी कुर्सी पर बैठे ,अचानक फोन की घंटी घनघनाने लगी। मुख्य सचिव का फोन था -” मिस्टर शर्मा ,लाख चाहने और कोशिश करने के बावजूद भी मुख्यमंत्री जी से सम्पर्क नहीं हो पा रहा है , But go ahead on this job ,I will talk you tomorrow morning. Thank you.”..

          वार्तालाप के उपरान्त प्रमुख सचिव उठ खड़े हुए। सभी उपस्थित जन भौचक होकर ऐसे उठे ,जैसे किसी भयानक सपने के मध्य नींद टूट गई हो। चपरासी राम सरूप दरवाजा खोल कर पलटा और बिना समय गवाएं एक हाथ मे साहब का ब्रीफकेस और दूसरे हाथ मे वॉटर कन्टेनर लेकर सावधान मुद्रा में खड़ा हो गया। दूसरा चपरासी शंकर लाल फाइलों से भरा बैग उठा चुका था। साहब का गनर दरवाजे पर कार्बाइन का फीता दुरूस्त करते हुए  सावधान की स्थिति में आ चुका था। यह दृश्य   सर्कस के शेर को पिंजड़े से निकल कर रिंग में आने जैसा आभासित होता था। साहब बहुत तीव्र गति से चलते हुए ,बन्दर की तरह उछलते हुए कॉरिडोर में आ गये थे। सभी प्रतिभागी अधिकारी कॉरिडोर में ही दोनों हाथ लगभग प्रार्थना की मुद्रा में किये हुए ,कॉरिडोर में आकर खड़े हो गए थे। साहब के कदम तेजी से कॉरिडोर पार कर रहे थे।पोर्टिको में ड्राइवर लल्लन साहब के रथ का दरवाजा खोल कर उनके आने की प्रतीक्षा कर रहा था। साहब के अन्दर जाते ही चालक ने फटाक से दरवाजा बन्द किया। अब शेर पिंजड़े के अन्दर था और अपनी सीट पर एडजस्ट हो चुका था। राम सरूप इमरजेंसी ऑपरेशन की  चुस्त नर्स के मानिंद गाड़ी का दूसरा दरवाज़ा खोल कर साहब का ब्रीफकेस व वॉटर कन्टेनर साहब के बगल में दूसरी सीट पर रख कर पलक झपकते दरवाज़ा बन्द कर दिया। शंकर लाल ने डिग्गी खोल कर फाईलों से भरा भारी चमड़े वाला बैग अन्दर कर डिग्गी बन्द कर दिया। इसी बीच गजब की सरकारी चुस्ती के साथ गनर आगे की सीट पर विराजमान हो गया था और मिरर को आगे पीछे कर देख लिया कि साहब अब इकुब्रिलियम की स्टेज में आ गए हैं। उसने गर्दन घुमाया और आंखों ही आंखों से  चलने का आदेश प्राप्त कर लिया। गाड़ी से एक आवाज़ निकली और देखते ही देखते गाड़ी ने रफ़्तार पकड़ लिया। तमाम अफ़सरान जो हांफते हुए पोर्टिको तक तो आ चुके थे पर साहब को ‘ गुनाईट ‘ बोल सकने की उनकी अदम्य इच्छा फलीभूत नहीं हो सकी थी। अब वे कारवां गुजरने के बाद गुबार देखने की स्थिति में आ चुके थे। सभी ने गहरी सांस लिया और सावधान मुद्रा से विश्राम मुद्रा में आ गये। ‘ साहब गये ,साहब गये ‘ की फुसफुसाहट फिजां में घुल चुकी थी।..शंकर लाल फ़र्राश् को आवाज़ लगा रहा था कि साहब गये ,उनका दफ़्तर में ताले जड़ दिए जाएं।

          शेष अधिकारी गण भी अब घर जाने की जुगत में लग गये। अनुसचिव मिश्रा तो डॉ शेष शंकरन के साथ पहले ही कूच कर गये थे।समीक्षा अधिकारी निगम जी की बाइक सुबह ही किर किर कर रही थी पर कोई खास गड़बड़ी नहीं होगी ,यह सोचकर उन्होंने अपने को आश्वस्त कर लिया था। अभी देखा तो बाइक रिजर्व में आ चुकी थी पर इससे उन्हें कोई खास आघात नहीं लगा। कारण था कि सचिवालय गेट के समीप ही पेट्रोल पम्प था। दिक्कत महज़ इतनी थी कि महीने का अन्त सन्निकट था।ऐसी स्थिति में एक लीटर पेट्रोल से अधिक भरवाने पर आर्थिक संकट उत्पन्न हो सकता था। लिहाज़ा वे बाइक को धकेलते हुए गेट के बाहर निकल गये।

        इसी बीच विशेष सचिव पंत जी ईधर उधर उचक-उचक कर अपनी मरियल गाड़ी के चालक जिया लाल को निहार रहे थे। बड़ी मशक्कत के बाद विशेष सचिव को यह मरियल गाड़ी ,ड्राइवर जिया लाल के साथ निदेशालय से मुहैया कराई गई थी। चालक और गाड़ी में काफी कुछ समानता थी। जिया लाल बीड़ी पीते हुए बहुधा खाँसता रहता था और गाड़ी भी प्रचुर मात्रा में धुआँ छोड़ती हुई कराहती चलती थी मगर पंत जी इसे अधेड़ बीबी की तरह निबाहते जा रहे थे। उन्हें बार बार जिलाधिकारी की कुर्सी मुह चिढ़ाती थी। जिले के शानोशौकत के मुकाबले सचिवालय की तैनाती उन्हें बहुत बड़ा दंड लगता था। जियालाल जब कहीं दिखाई नहीं दिया तो पंत जी ने ईधर उधर देखा और लोगों की उपस्थिति क्षीण देख कर बहुत जोर से उन्होंने जिया लाल को आवाज़ लगायी - ‘ जिययया लाल ‘.  जिया लाल एक पाउच ठर्रा पीने के बाद बीड़ी पीते हुए गेट की तरफ निकल गया था। अपने साहब की आवाज़ सुन कर अपनी स्वामिभक्ति दर्शाते हुए लड़खड़ाते ज़्यादा और दौड़ते कम वह अपनी गाड़ी स्टार्ट करने का भरसक प्रयास करने लगा। विशेष सचिव बोलते रहे पर जिया लाल गाड़ी की आवाज़ में कुछ सुनाई न देने का स्वांग रचते हुए अपने काम मे जुटा रहा।वैसे भी वह साहब के किसी बात को अन्यथा नहीं लेता था।वह बहुधा टुन्न रहा करता था जिससे साहब की शिष्ट शब्दावली उसके पल्ले नहीं पड़ती थी। अंततः गाड़ी विविध प्रकार की डरावनी आवाज़ निकालते हुए ,प्रचुर मात्रा में वातावरण को प्रदूषित करते हुए स्टार्ट हो गयी और पंत जी उसमें सवार होकर अपनी किस्मत को रोते अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर गये।

  क्रमशः

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