तापत :: विकुति
यह कोई कहानी है या नहीं है। इसका फैसला तो आप ही करेगे। मैं स्वयं भी दुविधा में हूँ, अपने फैसले से अवगत कराएगें तो आभारी हूँगा। मेरी जानकारी में शब्दकोश में तापत जैसा कोई शब्द नहीं है लेकिन शब्दों से अगर भाव, विचार या वस्तुओं का संप्रेषण होता है तो इसे शब्द मानना ही होगा।
इस शब्द का प्रयोग चंटू करते हैं और यह उनका निजी शब्द है। चंटू के नाम का भी सामान्यतः कोई अर्थ नहीं है किन्तु मुझे बताया गया है कि यह शब्द “चंट”से बना है। चंटू को चंट देखकर उनके पूज्य पिताजी ने उनको इस विश्लेषण या संज्ञा से नवाजा है जो अब प्रचलित है। यद्यपि स्कूल में चंटू को और किसी शास्त्रीय नाम से ही विभूषित किया जाएगा यह प्रायः निश्चित ही है। चंटू के हठ और अवज्ञा को देखकर ही उनको घर में इस विश्लेषण से नवाजा गया प्रतीत होता है।
अब मैं तापत के विमर्श पर आता हूँ-चंटू इस शब्द का इस्तेमाल पानी के लिए करते हैं यद्यपि पानी और तापत में उच्चारण या ध्वनि के हिसाब से कोई साम्य नहीं है किन्तु चंटू इसे पानी के लिए क्यों इस्तेमाल करते हैं? यह बाल मनोविज्ञानियों के विचारण का प्रश्न है, यह मैं उन्हीं पर छोड़ता हूँ।
चंटू की माता जी ने एक दिन यह तय किया कि वे चंटू के भाषां का परिष्कार करेगी अतः उन्होनें एक दिन दोपहर में जब वह खाना-पीना करके खाली हुयीं तो उन्होनें शिक्षण कार्य का श्री गणेश किया। चंटू भी पर्याप्त प्रसन्न थे और दूध भोजन आदि से निवृत्त थे। माता जी ने कहा "बाबू कहो "पा", चंटू ने कहा "पा... माता जी उत्साहित हुयी और उन्होनें कहा "बाबू अब कहो "नी" चंटू बोले "नी"। अब माता जी के उत्साह की कोइ सीमा न रही, उन्होनें कहा बोलो बेटा "पानी" चंटू बोले "तापत"। माता जी हिम्मत नहीं हारी औरं माता-पुत्र के उपरोक्त संवाद की तीन आवृतियाँ और हुयीं लेकिन इसकापरिणाम तापत ही रहा। अंततः माता जी की हंसी का फव्वारा छूटा और चंटू भी इसमें सम्मिलित हुए और दोनों लोग सो गए।
चंटू तीसरे वर्ष में चल रहे नाती हैं। चंटू का तापत से भय एवं प्रेम का सम्बन्ध है। भयइसलिए है कि चंटू कई बार फर्श पर गिरे हुए तापत पर फिसलकर गिर चुके है तथा इसलिए कि चंटू कभी भी कैसा भी पानी होने पर उसे पीने की चेष्टा अवश्य करते हैं और खाना शायद इसलिए खाते है कि खाते समय पानी पीने में कोई अवरोध नहीं होगा। हर कौर के बाद तापत के लिए इसरार करते है और यह सोच कर कि इस बहाने वे थोड़ा खाना भी खा लेगे इसलिए उन्हें तापत दिया जाता है। नहाने में भी चंटू को बहुत मजा आता है और उनको नहला कर नल से हटाना बड़ी टेढ़ी खीर है। चंटू पानी को पकड़ते हैं और पकड़ में न आने पर इसे दोनों हाथों से पीटते हैं फिर पानी के छीटों को दोनों हाथों से पोछते हैं लेकिन पानी के पास से हटना नहीं चाहते।
जब चंटू दो साल एक महीने के हो रहे थे उसी समय मौसम की पहली बरसात शुरू हुयी। यह चटू के जीवन की पहली बरसात थी। साल भर पहले हुई बरसात को वे समझ नहीं पाए होगें क्योकिं तब तक तापत से उनका खास परिचय नहीं था। वे बारिश शुरू होने पर पानी की आवाजों को पहचान नहीं रहे थे वरन वह अपनी दाड़ी (गाड़ी) के साथ व्यस्त थे।
मैं चंटू को पहली बरसात से साक्षात्कार कराने की गरज से उनको लेकर बालकनी में गया और वहीं उनको लेकर एक कुर्सी पर बैठ गया। चंटू बरसात की आवाज, बिजली की चमक और तेज हवा तथा जमीन पर बहते पानी को देखकर आवाक् थे। थोड़ी देर तक बरसात देखने के बाद उनके अन्दर पहचान कौंधी और उन्होंने मेरी ओर देखकर बड़ी गम्भीर मुद्रा में कहा "तापत" मैनें कहा हॉ बाबू तापत बारिश। चंटू चुप हो गए। फिर दस मिनट के बाद अपनी पुरानी मुद्रा में कहा नाना, नाना तापत मैने भी वैसे ही कहा "हों बाबू तापत' बारिश । फिर चंटू बोले 'बाइस" मैने कहा "हाँ बाबू तापत बारिश, इसके बाद जब तक 01 घंटे तक बरसात होती रही, हर थोडी देर के बाद चंटू कहते तापत और मैं कहता हों बाबू 'तापत"। चंटू पूरी बारिश के दौरान बरसात को एक टक निहारते रहे। कभी-कभी जब फुहारें उनके ऊपर गिरती वे जोर-जोर से हँसते कुछ देर के बाद उनको फिर एक बोध हुआ। अपनी कमीज पकड़ कर मुझे दिखाते हुए वे बोले ई ई ई "तापत"। उनका आशय था कि तापत से कमीज भीग जायेगी ओर मैने कहा कि " हों बाबू बारिश में जाओगे, तो कमीज भीग जायेगी" उन्होनें हामी भरी।
धीरे-धीरे बारिश थमने लगी और मैं भी अब तक बोर होने लगा था। मैनें कहा बाबू तापत जा रहा है। चलों घर में चलें लेकिन चंटू टस से मस नहीं होरहे थे। मैने उनसे काफी अनुनय विनय किया कि चलो अंदर चले फिर कहा कि तापत खाना खाने जा रहा है। चलें यह कहते हुए मैं उनको गोद में उठाकर घर के अंदर लेकर आ गया। घर के अंदर आते ही चंटू ने कहा कुंकू। यह आवाज वे अपने गले से निकालते हैं जिसका अर्थ है दूध की बोतल। चंटू को दूध की बोतल पकड़ा दी गयी और चंटू तन्मय होकर पीने लगे और यह ब्योरा खत्म हुआ। पाठकों यदि आप इस ब्योरे को कहानी मानते हो तो मेरी गुजारिश यह है कि इसे बच्चों की कहानी न माना जाये बल्कि इसे उन बूढ़ों की कहानी माना जाये जिन्हें नाती/पोते हैं। यहाँ लिंग भेद का कतई कोई आशय नहीं है। बच्चियों पर भी यह ब्योरा यथावत् लागू माना जाए।
उपरोक्त वारदातों के अतिरिक्त एक अन्य वारदात स्मरणीय है यथा:
चंटू नमस्कार। प्रणाम आदि करना सीख गए हैं इसलिए गाहे बगाहे वे कभी भी, किसी को भी प्रणाम करते रहते हैं। एक दिन चंटू अपने गेट के बाहर खेल रहे थे कि मुहल्ले की एक लडकी सड़क से गुजरी चंटू ने स्वप्रेरणा से उसको सादर प्रणाम किया। चंटू की इस अदा पर उसको बहुत प्यार आया और उसने उनको गोद में उठा लिया और पूछा बेटा तुम्हारा नाम क्या है? चंटू फिसलते हुए उसकी गोद से उत्तर कर सीधे खड़े हुए उन्होनें दाहिना हाथ सामने फैलाकर अपनी तर्जनी उँगली को मोड़ कर अपनी नाभि के पास छुआ और बोले "बाबू मामा दाड़ी (गाड़ी)" इसकी व्याख्या यह होती है कि बाबू स्वयं चंटू हैं, जिनके एक मामा हैं जिसके पास गाड़ी है, जिसमें चढ़ने का लुत्फ चंटू अक्सर उटाया करते हैं-यह उनका सबसे प्रिय शगल है। अतः उन्होनें मामा और दाड़ी को भी अपने व्यक्तित्व में समाहित कर लिया है।
चंटू वाकई एक अद्भुत और प्रतिभाशाली है! उसकी जिज्ञासा, सीखने की ललक, और छोटी-छोटी चीजों को अपने नजरिए से देखने का तरीका सचमुच अद्वितीय है। 'तापत' जैसे शब्द गढ़कर वह न सिर्फ अपनी भावनाएँ व्यक्त करता है, बल्कि हर पल में हमें बचपन की मासूमियत और रचनात्मकता का पाठ भी सिखाता है।
ReplyDeleteचंटू की वफादारी और स्नेह भरा व्यवहार उसके कोमल हृदय को दर्शाता है। वह न सिर्फ परिवार का चहेता है, बल्कि अपनी छोटी-सी दुनिया में हर किसी को खुशियाँ बाँटने का जज्बा रखता है। बारिश की बूंदों से खेलते हुए उसकी आँखों में चमक, या 'मामा की गाड़ी' का जिक्र करते हुए उसका उत्साह—ये सभी पल उसे एक सच्चा खोजी और जीवन का उत्साही यात्री साबित करते हैं।