जैसे भतीजों के दिन बहुरे:: विकुति

 



  देश में सर्वत्र हंसी-खुशी का माहौल था । सर्वप्रथम एक प्रदेश में एक विशेष राइफल प्राप्त हुई, इसे स्नाइपर राइफल कहा गया । इस घटना से पूरा देश हिल गया और चारों तरफ चिंता फैल गई, फिर देश के कर्णधारों ने बड़ी-बड़ी धाराएं लगाकर उस प्रदेश को बंद कर दिया, जो की बहुत जरूरी भी था । सिपाहियों और फौजियों को छोड़कर शेष जनता अपने-अपने घरों में बैठकर आनंद उत्सव मनाने लगी। ऐसे सामूहिक अवकाश का समय कहां मिलता है ! कुछ दुराचारी किस्म के लोग या नेता भी थे, उन्हें भी जेल या घरों में बंद कर दिया गया । जब माहौल शांतिपूर्ण और कोलाहल से रहित हो गया, तो दिल्ली में थोड़ी हलचल हुई, और बरसात के एक सुहाने दिन देश की सबसे बड़ी बाधा को धीरे से खिसका दिया गया   फिर क्या था ! चारों तरफ उत्साह और उल्लास की लहर आ गई। लोग सड़कों पर आ गए उत्साह से भरे लोग सर्वत्र जुलूस निकालने लगे , नारे लगाने लगे और बड़े साहब , छोटे साहब को भर भर कर बधाइयां धन्यवाद भेजने लगे ।  लोगों की जन्मों की आकांक्षाएं पूर्ण हो गई थी ।आगे दिए गए उदाहरणों से यह सिद्ध होगा ।

रामेश्वर प्रसाद कबाड़ का धंधा करते थे। दिन भर गली-गली घूम कर कबाड़ खरीदते थे और फिर आगे बड़े कबाड़ियों को बेच देते थे। इसी से उनका घर चलता था। इसी अमृत काल में उनसे एक दिन मुलाकात हो गई। दूर से ही चिल्ला कर बोले चचा थोड़ा रुकिएगा, जन्म की साध पूरी हो गई।मैंने कहा क्या हुआ?

 चचा क्या मजाक करते हैं ? आपको पता नहीं कश्मीर पाकिस्तान से छूकर फिर से भारत में मिल गया है। बड़े साहब ने तो कमाल ही कर दिया है। वह ना आते तो कश्मीर कहां छूटता ।

 मैंने कहा कश्मीर छूट गया कुछ समझ में नहीं आया ?  

क्या बात करते हो चाचा? रोज अखबार पढ़ते हो टीवी भी देखते हो तुमको नहीं पता। आप अब मजाक छोड़कर असली बात सुनो । जन्म जन्म से ही साध थी कि वही झील के किनारे एक छोटा सा ही घर बनवाकर ऐश करूंगा । तो रास्ता खुल गया चचा, बस प्लाट देख रहा हूं जैसे ही मिल गया रेहड़ी, ठेला बेचकर बाल बच्चों के साथ सीधा ‘कासमीर। मैंने चलते-चलते कहा जाने से पहले मिल जरूर लेना

 वह बोले क्या बात करते हैं चचा चरण स्पर्श किए बिना कहां जाऊंगा? 

एक मेरे दूसरे भतीजे भी हैं , जो मुझे चचा नहीं चच्चा कहते हैं । उनको कल्लू बाबू कहा जाता है, उनका असली नाम तो कुछ और है लेकिन रूप रूप गुण के आधार पर पहले उन्हें कल्लू कहा जाता था लेकिन जब से भी धर्म के रक्षक बने हैं और एक संस्कारी पार्टी के पदाधिकारी बनकर धर्म रक्षा में लगे हैं उनको कल्लू बाबू कहां जाने लगा है। उनके बिना नगर का दशहरा, दिवाली, होली, रामनवमी ,महावीर जयंती के उत्सवों की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। हर जुलूस में वे आगे-आगे सुंदर गैरिक, पीत या लाल वस्त्रों में में सुसज्जित गरजते हुए  फेन फेकते हुए देखे जा सकते हैं। दसवीं में तीन बार फेल होने पर जब उन्होंने अपना हाथ ज्योतिषी को दिखाया , तो ज्योतिषी महाराज ने कहा  बेटा तुम्हारे किसी घर में विद्या तो है नहीं लेकिन यश अपार है। मार्ग बदलो और धर्म की रक्षा करो। देख ही रहे हो हिंदुओं पर कैसे-कैसे अत्याचार हो रहे हैं। होली, दिवाली में बिजली पानी काट दी जाती है। दुर्गा भसान पर रोक लगा दी जाती है, छठ में घाट पर बैठने ही नहीं दिया जाता है, दिवाली में पटाखे छोड़ने की मनाही होती है, गंगा में फूल माला प्रसाद चढ़ाने नहीं दिया जाता है, बेटा पढ़ाई लिखाई में क्या रखा है ?  धर्म बचेगा तभी तो पढ़ाई लिखाई नौकरी चाकरी होगी उठो खड़े हो जाओ  यह बात कल्लू बाबू के दिल में घर कर गई तभी से इस मार्ग पर चल रहे हैं । गंगा स्नान करके आते समय यदि कोई मुसलमान दिख जाए तो वह पहले उसे मन भर गरियाते हैं और फिर जाकर के दोबारा स्नान करते हैं । उनका कहना है कि यह भी एक प्रकार का जिहाद है। मुसलमान जानबूझकर स्नान वाले मार्ग पर दिखते हैं जिससे  धर्मप्राण हिंदू को जाड़े में बार-बार स्नान करना पड़े और उसे निमोनिया हो जाए।

यही कल्लू बाबू एक दिन रास्ते में मिल गए। मंदिर से आ रहे थे । शाम का समय था, आंखें लाल थी , शायद भोलेनाथ का प्रसाद लेकर आ रहे थे। मुझे देखते ही बोले “चरण स्पर्श चच्चा आज मन में बड़ी तरंग उठ रही है। मैंने कहा वह तो दिख ही रहा है , आगे बोलो । उन्होंने कहा चच्चा मुझे लगता है, मेरी शादी होकर ही रहेगी। 

 मैंने कहा क्यों नहीं बेटा तुम में क्या कमी है? तुम्हारी शादी क्यों नहीं होगी? 

वह बोले वह बात नहीं है चच्चा मैंने बचपन में ही प्रतिज्ञा की थी कि मैं आजीवन बड़े साहब की तरह शादी नहीं करूंगा । लेकिन जब लोगों ने बहुत समझाया तो मैंने थोड़ी छूट ले ली। अब मेरी प्रतिज्ञा यह है कि शादी करूंगा तो कासमीरी कन्या से ही करूंगा, नहीं तो नहीं करूंगा। तब तो चच्चा कासमीर गुलाम था । कोई रास्ता नहीं था लेकिन अब तो रास्ता खुल गया है। तो अब तो चांस बन ही गया है।

 मैंने कहा क्यों नहीं बेटा जब तुम बस से घाटी में उतरोगे तो लड़कियों का झुंड तुम्हारे पीछे-पीछे चल देगा। दिक्कत तो उनमें से छांटने में होगी।

 वह बोले चच्चा “वह सब मैं देख लूंगा ।बस आपका आशीर्वाद चाहिए ।जरा टिकट का इंतजाम भर हो जाए ,बाकी राय साहब तो वहां हैं ही। रहने खाने की कोई दिक्कत नहीं होगी राजभवन में सब व्यवस्था हो जाएगी।

 मैंने कहा सब हो जाएगा बेटा मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है।

 चलते-चलते कल्लू बाबू ने कहा चच्चा “एक बात यह भी मेरे मन में है कि मैं शादी कर वही बस जाऊं, वहां पार्टी की हालत भी कुछ ठीक नहीं है, वह भी देख लूंगा।

 मैंने कहा बेटा जैसा ठीक समझो तुम खुद होशियार हो!

 इस तरह चारों तरफ हर्षोल्लास का माहौल था, और जनता आनंद पूर्वक  सड़कों पर, गलियों में थी लेकिन यह उल्लास उत्सव कितने दिन चलता है। धीरे-धीरे ठंडा पड़ने लगा। मेरे भतीजे इंतजार करने लगे क्योंकि कश्मीर में कर्फ्यू हटने का नाम नहीं ले रहा था । मेरे भतीजों का काम तो नहीं हो पा रहा था किंतु भीतर-भीतर गुप्त रूप से कश्मीर में बहुत विकास हो रहा था, किंतु इसे भारतीयों से छुपा दिया गया था क्योंकि जान जाने पर कोई भी विपक्षी नेता वहां पहुंचकर इसको ठप्प कर सकता था । लेकिन विदेशियों को बुलाकर आदरपूर्वक घुमा फिरा कर दिखा दिया गया, ताकि सनद रहे । उन्होंने भी खूब मजे लिए और जाते-जाते बोल गए “सब चंगा सी

 


 जनता एकदम से पस्त हो जाती, इसके पहले ही त्यौहार आ गए। पिछले 75 सालों में जैसे सादा-सादा त्योहार मनाए जाते थे , नए भारत में वैसे कैसे मनाई जा सकते थे। नए भारत की आप आत्म निर्भर जनता अब जाग चुकी थी। 5 किलो मुफ्त  राशन तो मिल ही रहा था, तो चिंता किस बात की थी। आत्मनिर्भर को नौकरी रोजगार के चक्कर में क्या पड़ना ,सब बेफिक्र अमृत काल का का मजा ले रहे थे। त्योहारों में कोई 500 का जुलूस निकालना चाहे तो 5000 लोग मौजूद थे। वह भी बने-ने,  अबीर-गुलाल उड़ाते ,अस्त्र-शस्त्र के साथ। 


 

एक रात इफरात गाड़ियां थी ! ट्रक, ट्रैक्टर,कार,जीप जिनमे पेट्रोल-डीजल गले तक भरा हुआ था। जब यह जुलूस नारे लगाता हुआ अस्त्र-शस्त्र लहराते हुए आगे बढ़ता तो क्या शमां बंधता था । देवता ऊपर से फूलों की वर्षा करते, आशीर्वाद देते। इनका गायन-वादन देखकर किन्नर, गंधर्व भी दांतों तले उंगली दबाते। उत्सव का उत्कर्ष तो तब होता था, जब जुलूस धीरे-धीरे चलते हुए किसी मस्जिद के सामने या किसी मुस्लिम आबादी में पहुंच जाता था। वहां दोनों ओर से जोरदार जवाबी कव्वाली होती थी । हाथ हिला कर, नाच कर कूद, कर मुखड़े और अंतरे गाये जाते कि तभी कोई कौतुकवश कुछ ढ़ेले उछाल देता , फिर वह भगदड़ ! हाथापाई ! मस्ती ! मजा आ जाता। अब तक पुलिस भी जाग जाती और खूब कबड्डी होती । कुछ भाग जाते, कुछ पकड़े जाते, कुछ पीटे जाते और प्रथम दिवस का कार्यक्रम अंधेरा होते होते समाप्त हो जाता है । अगला दिन जेसीबी शोभा यात्रा का दिन होता। इस तरह के कार्यक्रम में लोग आराम से खा पीकर 11-12 बजे तक पहुंचते, तभी जेसीबी मंथर गति से सलामी मुद्रा में समारोह स्थल पर पहुचती मामा और बाबा जोरदार नारे लगते इन्हीं नारों के बीच ध्वस्तन कार्यक्रम की शुरुआत होती , ज्यादा लोग ताली बजाते जय श्री राम के नारे लगाते किंतु जिनके मकान दुकान ध्वस्त होते वे रोने चिल्लाने से बाज नहीं आते थे। इस प्रकार एक त्यौहार जाता तब तक दूसरा त्यौहार आ जाता और यही कार्यक्रम चलता रहता। लोग ज्यादातर सड़कों पर, गलियों में, थानों में, कचहरी या जेल में रहते । पूरा समाज जागृत रहता, जो एक स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान है। उपरोक्त कार्यक्रम पर विचार करने पर यह सिद्ध हो जाता है कि सड़क पर मैदान में खड़ी जनता उद्वेलित जनता लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक नहीं अनिवार्य भी है। पिछले कई चुनाव में बड़े साहब की जीत से यह बात पूरी तरह से सिद्ध भी हो जाती है

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