भूत की लँगोटी :: विकुति

 

 भूत की लँगोटी

 

         गावँ देहात में एक कहावत कही जाती है कि “भागते भूत की लँगोटी भली।” डोनाल्ड ट्रंप ने 105 अवैध अप्रवासी भारतीयों को मिलिट्री हवाई जहाज़ से वापस भेज दिया।इसे अच्छी तरह से समझने के लिए हमें यह जानना होगा कि ये कोई डिपोर्टेशन नहीं है , ये 'राष्ट्रवाद' की घर वापसी स्कीम है! विदेश मन्त्री जी ने सदन में वक्तव्य भी दे दिया कि यह कोई अनहोनी घटना नहीं है , यह योजना सन 2009 से ही चल रही है। खैर पक्ष-विपक्ष में जोरदार बहस हुई और सोशल मीडिया पर अब भी चल रही है।

महाकुम्भ में शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी की अध्यक्षता में 'परम धर्म संसद - 1008 ' का आयोजन भी हो रहा है , संविधान में अपेक्षित संशोधन कर हिन्दू बच्चों को धार्मिक शिक्षा का मौलिक अधिकार दिये जाने की बात की जा रही है। शंकराचार्य जी ने धर्मादेश भी पारित किए हैं कि हिंदुओं को चोटी ,शिखा रखना चाहिए।उधर भागवत जी ने प्रकारान्तर से यह भी स्वीकार कर लिया है कि धार्मिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्रों में चारित्रिक गिरावट आयी है।

दान की महिमा का बखान भी किया गया है। महाकुम्भ में तकरीबन 45 करोड़ लोग आस्था की डुबकी लगाकर पाप मुक्त भी हो जाएंगे अर्थात सात्विकता का साम्राज्य हो जायेगा। हमारे वित्तमंत्री जी ने अपना दिमाग लगाया है कि 12 लाख रुपये की आमदनी पर ज़ीरो टैक्स लायबिलिटी होगी पर शायद कहीं ऐसा न ही कि यदि आमदनी 12 लाख एक रूपये हो जाय तो पूरा टैक्स देना पड़े। खैर यह सब तो राजकाज की बातें हैं ,जनता को इससे क्या लेना देना है।

        सुमेसर भाई के दिमाग में कल से ही एक जिज्ञासा घुमड़ रही है कि जो अवैध अप्रवासी भारत आये हैं ,उनके हाथ पैरों में हथकड़ियां और बेड़ियां थीं।अमेरिकी हवाई जहाज उन्हें अमृतसर हवाई अड्डे पर उतारा होगा और वापस चला गया होगा। अब 105 जोड़ी हथकड़ी बेड़ियां तो साथ ले नहीं गया होगा और अभी तक ट्रंप जी का कोई अनुरोध भी प्राप्त नहीं हुआ है कि उनकी हथकड़ी बेड़ियां उन्हें वापस कर दी जाएं। अर्थात मेड इन यू एस ए की विदेशी हथकड़ी बेड़ियों का उपयोग अब हमारे देश में ही किया जा सकेगा। क्या इसे ' भागते भूत की लंगोटी ' की संज्ञा दी जा सकती है ?. कोलम्बिया में भी अवैध अप्रवासी वापस करने के लिये अमेरिकी हवाई जहाज़ आया था जिसे कोलम्बिया के राष्ट्रपति ने वापस कर दिया था और अपना चार्टर विमान लेकर अमेरिका गये एवं अपने देशवासियों को वापस लाये।भारत ने ऐसा नहीं किया।यदि ऐसा किया होता तो प्रति अवैध अप्रवासी पर लाखो रुपये का निर्रथक व्यय भी करना पड़ा होता। इसे कहते हैं ' हर्रे लगे न फिटकरी ,रंग चोखा' अर्थात बिना कुछ खर्च किये ही हमें हमारे लोग मिल भी गये।.

      बात जब देसी कहावतों की हो रही है तो एक अन्य कहावत का भी ज़िक्र लाज़िमी हो जाता है।एक कहावत यह भी है कि - ' बाड़ तो बाड़ गये ,सात हाथ का पगहा भी ले गये'। यदि किसी बैल की पूंछ कट जाये तो उसे बांड कहा जाता है ,उसे अशुभ भी स्वीकारा जाता है।यदि वह कहीं चला जाये तो किसी को दुःख भी नहीं होगा लेकिन वह बांधने वाली रस्सी ( पगहा ) के साथ चला जाये तो रस्सी की हानि उठानी पड़ती है जो किसान को कचोटती है।

           और अब अन्त में , महाकुम्भ की भगदड़ में कितने लोग हताहत हुए ,इसकी वास्तविक जानकारी नहीं मिल पायी है। शायद सरकार और प्रशासन को भी न हो। इस तरह की जानकारी प्राप्त करने में शासन-प्रशासन को कोई रुचि भी नहीं होती है। कोरोना महामारी में कितने मरे ,नोटबन्दी में कितने मरे अथवा टोटल बन्दी में कितने मरे ,किसान आंदोलन में कितने मरे ,यह सब भी शोध का विषय है। जितनी कम मौतें होंगी उतनी ही कम धनराशि मुआवजे में देनी होगी। बागेश्वर जी सरकार ने तो यह कह दिया है कि कुम्भ की पावन धरती पर जितने लोग मरे हैं ,उनकी मृत्यु नहीं हुई है अपितु उन्हें मोक्ष मिल गया है। जनता को इस बात का अफसोस तो रहेगा ही कि बागेश्वर बाबा अज्ञात कारणों से मोक्ष नहीं प्राप्त कर सके। सुमेसर भाई कुम्भ स्नान के लिये नहीं जा सके हैं।अब इनके प्रारब्ध को क्या कहा जाये कि इनको न तो पाप - मुक्ति मिल पायी और न ही मोक्ष प्राप्त कर सके। अपने पापों के साथ आज भी जीवित हैं और अनावश्यक ,अनपेक्षित टिप्पणी करने में व्यस्त हैं। इन्हें न तो मोक्ष की अभिलाषा है और न ही पाप मुक्त होने की आकांक्षा।.

         गावँ में समानार्थक दो कहावतें कही जाती हैं - एक , 'खेवा भी दिये और बह भी गये ' तथा दूसरी , ' धरम भी भ्रष्ट हुआ और लड़का भी नहीं हुआ '। सुश्री ममता कुलकर्णी जी महज़ दस करोड़ रुपये देकर किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर भी बनीं और एक सप्ताह भी नहीं बीता की उन्हें बर्खास्त भी कर दिया गया। पदवी गयी तो गई  ,दस करोड़ रुपये की चपत भी लग गयी और बदनामी अलग से हुई ,उन्हें ट्रोल भी किया जा रहा है। कुछ श्रद्धालुओं को कई सिरफिरे सन्यासियों ने चिमटे और त्रिशूल से घायल भी कर दिया ।गये थे पुण्य अर्जित करने और मार खाकर वापस हुए। जिन लोगों के परिजन या तो गायब हैं अथवा उनकी मृत्यु हो गयी है उन्हें न तो वे खुद मिल सके हैं और न ही उनका शव ही मिल पाया है। है न गज़ब की स्थिति। कुम्भ मेले से ढाई लाख करोड़ रुपये का रेवेन्यू जनरेट होना था । पर लोगों की आमद में कमी आती जा रही है ,हवाई जहाज़ का किराया भी आधा हो गया है।

 पवित्र नदियों में सिले सिलाये कपड़े पहन कर स्नान करने की मान्यता नहीं है। पर कई VIP गण सिले हुए कपड़े पहन कर स्नान किया ।वे ठंडे जल से नहाये भी और उन्हें पूर्ण पुण्य भी नहीं मिला।यह अपना-अपना प्रारब्ध है।

इति शुभम ,डेटेड 07 फरवरी 2025.

Comments

  1. प्रारब्ध में कष्ट है तो उसको सुना है भोगना पड़ता है बस कुंभ स्नान से वह हंसते हंसते कट जाता है

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  2. बहुत अच्छा व्यंग्य।

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