आपदा गई, बिपदा आई ? :: विकुति

 


दिल्ली चुनाव का महाकाव्य

 

दिल्ली चुनाव के ड्रामे का अंततः पटाक्षेप हुआ। माननीय प्रधानमंत्री जी ने जनता को बधाई दी और कहा की “आप-दा गई “। शायद यह बताना भूल गए की ‘आपदा’ गई लेकिन ‘बिपदा’ आ रही है।

इससे पूर्व की आगे बढ़ें ,आपदा और बिपदा में अंतर जानना ज़रूरी है। आपदा वह होती है जो आकस्मिक रूप से प्रकट हो जाती है, और विपदा शनै-शनै योजना बनाकर आती है।आपदा अचानक टपकती है, लेकिन विपदा धीरे-धीरे पसरती है और फिर स्थाई रूप से बस जाती है । किसी महान ज्ञानी ने कहा था, "लोकतंत्र में जनता को वही मिलता है, जो वह बार-बार मांगती है।" दिल्ली की जनता ने ‘आपदा’ से मुक्ति मांगी, तो उसे ‘बिपदा’ प्राप्त हुई । जनता ने जब ‘आपदा’  को विदा किया, तो ‘बिपदा’ ने हाथ जोड़कर स्वागत कर लिया।

किसी ने कहा दिल्ली वाले खुजली से परेशां थे तो उन्होने कोढ़ चुन लिया , कोई बोला काना गया अँधा आया (कृपया काने  और अंधे अन्यथा न लें आपको नीचा दिखाना उद्द्देश्य नहीं है ) खैर जो भी हो अब दिल्ली ने ओखल में सिर तो दे ही दिया है , तो डरना क्या ?

कुछ समय पहले तक ‘आपदा’ दिल्ली की गलियों में झाड़ू लेकर घूम रही थी। कह रही थी—"देखो भैया, हमने स्कूल बना दिए , बिजली-पानी मुफ्त कर दी, और मोहल्ला क्लिनिक बना दी ।"जनता ने कुछ समय तक इसे झेला। फ्री बिजली में AC चलाए, मोहल्ला क्लिनिक में वाई-फाई सर्च किया, और सरकारी स्कूलों में टॉपर्स के फोटो देखकर गर्व से छाती फुलाई। लेकिन फुल एंटरटेनमेंट नहीं हो पा रहा था ।  बीच-बीच में ‘बिपदा’ ने जेल-जेल, छापा-रेड आदि माध्यमों से जनता का सनसनीखेज मनोरंजन किया ।  इसने जनता को ताजा और रिफ्रेश करवाया फिर जनता को अहसास हुआ कि फ्री की चीजें सिरदर्द भी दे सकती हैं। तब ‘बिपदा’ प्रचार के लिए प्रकट हुई। वह बड़े-बड़े रोड शो करती आई, चरणामृत की जगह "डबल इंजन" का वचन दिया और जनता को समझाया कि हम आप का ऐसा ही मनोरंजन पूरे साल करते रहेंगे। हमारे  पास आपदा से अच्छा ड्रामा है, कहानी है, निर्देशक है और सबसे बड़ी बात हमारा फाइनेंसर भी सबसे बड़े वाला है।  

आपदा की सबसे बड़ी चूक यह थी कि वह शिक्षा, स्वास्थ्य, मोहल्ला क्लीनिक और सरकारी स्कूल जैसे छोटे-मोटे गैरज़रूरी मुद्दों के चक्कर में फंस गई।राजनीति में बड़े सपने देखना जरूरी होता है, लेकिन आपदा ने बच्चों की फीस और दवा के बिल के चक्कर में अपना पूरा करियर खराब कर लिया। आपदा को राष्ट्रवाद पर ध्यान देना था, मंदिर-मस्जिद की बहस में उतरना था, इतिहास में जाकर नए-नए राज खोलने थे, लेकिन आपदा ‘बिजली फ्री’, स्कूल, अस्पताल जैसी छोटी चीज़ों में उलझकर रह गई।

देश चलाने के लिए मुफ्त बिजली और अच्छे स्कूल नहीं, बल्कि दमदार भाषण और और भरपूर बकैती की कला चाहिए होती है ।राजनीति का असली हुनर यही है कि जनता भूखी भी रहे और देशभक्ति से भरी भी। आपदा ने नक़ल की कोशिश तो काफी की किन्तु यह कला ठीक से सीख नहीं पाई । आपदा जिस कला की नक़ल करना चाह रही थी उस कला में बिपदा पूर्ण पारंगत थी तो जो भी थोडा बहुत देशभक्ति का ज्वार उसने लाना चाहा ठीक से आ नहीं पाया आखिर नक़ल कर के कोई नकलची किस डिवीज़न से पास हो सकता है अतः वह स्वभाविक रूप से बिपदा से पीछे रह गई इसके बिपरीत बिपदा ने अपनी होम पिच पर अपना स्वभाविक खेल खेला और जीत गई  

बिपदा ने सिखाया कि किसी पार्टी को जीतने के लिए अस्पताल बनाने की नहीं, बल्कि विपक्ष का इलाज करने की ज़रूरत होती है।आपदा ने मोहल्ला क्लीनिक बनाए, लेकिन असली डॉक्टर तो वो निकला जिसने आपको ही ICU में पहुंचा दिया।

 जब भीड़ जुटानी थी तो बुलडोजर चलाकर प्रचार करते, लेकिन आप बस बसों में महिलाओं को मुफ्त सफर करवाने में व्यस्त थे।आपको समझना चाहिए था कि जनता बुलेट ट्रेन का सपना देखती है, लेकिन लोकल ट्रेन की खिड़की पर लटककर सफर करने में गर्व महसूस करती है।आप इस गर्व को समझने में नाकाम रही।

दिल्ली की महान जनता को हार्दिक बधाई! आपने साबित कर दिया कि आपकी राजनीतिक समझदारी का कोई जवाब नहीं।आपने बड़ी सूझबूझ से तय किया कि स्कूल-अस्पताल, सस्ती बिजली-पानी जैसी छोटी-मोटी चीजों की राष्ट्र के सामने कोई जरूरत नहीं रहती । असली जरूरत बड़े-बड़े वादों, बुलडोजर की गर्जना और राष्ट्रवाद के उबाल की होती है।

दिल्ली की जनता हमेशा से ट्रेंडसेटर रही है। इस बार भी आपने देश को रास्ता दिखाया कि ‘फ्री’ जैसी तुच्छ चीज़ों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं, असली मुद्दे मंदिर, मजहब और बाहुबल में छिपे हैं।आपने दिखा दिया कि पढ़ाई-लिखाई से क्या होगा जब असली परीक्षा चुनावी पोस्टर और वादों की होती है।

अब दिल्ली को विकास का नया मॉडल मिलेगा।अस्पतालों की कतारों में भीड़ तो होगी, लेकिन उस भीड़ के हाथ में तिरंगा होगा।बच्चों के स्कूलों में सुविधाएं कम हो सकती हैं, लेकिन उनके कोर्स में ‘असली इतिहास’ जोड़ दिया जाएगा। सड़कों पर गड्ढे होंगे, लेकिन विकास के पोस्टर उनसे बड़े होंगे। राशन की लाइन लंबी होगी, लेकिन देशभक्ति की भावना और भी ऊंची होगी! तो दिल्लीवासियों, इस ऐतिहासिक निर्णय के लिए फिर से बधाई! अब देखना ये है कि जनता कितने दिनों तक इस "विपदा" को ‘अच्छे दिन’ समझती है।

Comments

  1. बेनज़ीर व्यंग्य ,साधुवाद।

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  2. bahut sundar vaktvya

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  3. क्या कहूं जनता की नियती में सिर्फ आपदा और विपदा ही है, कर देकर राजा और उनके नौकरों के सामने नतमस्तक रहो जो उस कर के बदौलत अय्याशी वाला जीवन जीते है जनता की यदि कोई जरूरतों पूरी कर दी तो अहसान दिखाते हैं ।

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