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लीला -ए -मोबाइल( अंतिम अंक) :: विकुति

    एकवचन —------------------- उठते ही उसने झपटकर मोबाइल उठाया। फिर उंगली से सहला सहला कर रात की आवक सर- सरी तौर पर देखता रहा। रात में शायद कुछ मजेदार नहीं आया था वैसे 3:00 बजे तक तो वह खुद ऑनलाइन था ही और सोने से पहले तक का सब आया गया ,चेक कर ही वह सोने गया था। फिर वह अंगड़ाई लेता हुआ उठा और मोबाइल को चार्ज में लगा दिया। यह रोज का उसका पहला काम होता है। उसके बाद वह किचन में गया और एक कप चाय बना ले आया। वह जल्दी चाय पी गया ,फिर बाथरूम में घुस गया ,फिर अचानक पीछे मुड़कर बाहर आया ,और मोबाइल लेकर अंदर चला गया । बाथरूम में उसे बहुत देर नहीं लगी इस बीच एकाध छोटी-मोटी काल ,और मैसेज आए ।  बाहर आकर वह चारपाई के किनारे बैठकर मोबाइल को सहलानेलगा ,अचानक उसे कीमती ज्ञान के एक महत्वपूर्ण सूत्र से साक्षात्कार हुआ । क्या चमत्कार है ,इस छोटे यंत्र को सहलाते ही क्या-क्या चीज साक्षात हो जाती हैं । अभी इस सूक्ति पर वह विचार कर ही रहा था की फोन बजने लगा । वह फोन उठा कर बात करने लगा। किसी दोस्त का फोन था  , देर तक बात होती रही बीच-बीच में काफी हंसी मजाक भी था। वार्ता के बीच में उसकी बहन...

लीला -ए -मोबाइल ( द्वितीय अंक ) :: विकुति

    द्विवचन ________________________ आज मैं बहुत प्रसन्न था, कारण यह की मेरा एक लंगोटिया यार बेंगलुरु से यहां आने वाला था, हम दोनों की मुलाकात लगभग 4 वर्षों के बाद होने वाली थी। पढ़ाई खत्म होने के बाद मेरा दोस्त बेंगलुरु में जॉब करने लगा था और मैं इसी शहर में रह गया था। तय, यह हुआ  कि वह मुझसे ऑफिस में लंच के समय मिलेगा । हम साथ लंच करेंगे और वह वहीं से एयरपोर्ट चला जाएगा शाम , 5:00 बजे उसकी फ्लाइट थी। मैं उत्साह के मारे आज ऑफिस समय से पहले ही पहुंच गया जबकि दोस्त को, लंच के समय आना था। काम में मेरा मन नहीं लग रहा था ,और मैं बार-बार समय देख रहा था। 11:00 बजे उसका फोन आया कि वह शहर में आ गया है और 1:00 बजे के आसपास मेरे ऑफिस में आ जाएगा। मैं प्रतीक्षा करने लगा। अंत में लगभग 1:15 पर वह मेरे कमरे में फोन कान पर लगाएं धड़ धड़ाते हुए घुसा और सोफे पर बेपरवाह पसर गया। मैं उठकर खड़ा हो गया, वह बात करता रहा, मैं उसे बात करते हुए देखता रहा ,करीब 15 मिनट के बाद उसने फोन कान से हटाया  ,तपाक से उठकर खड़ा होकर, आगे बढ़कर गले लगते हुए कहा “बास का फोन था, यार क्या करता” ? मैंने कहा...

लीला -ए- मोबाइल( प्रथम अंक) ::विकुति

  लीला -ए- मोबाइल( प्रथम अंक)   ( एकवचन ,द्विवचन , बहुवचन)   _______________________ बहुवचन-------- वह तीनों जिगरी दोस्त थे। जाब से छूटने पर ,एक चाय की दुकान पर इकट्ठा होते थे गप -शप करते थे और चाय पीकर घर चले जाते थे। एक दिन की, आंखों देखी दास्तान ,इस प्रकार है:-- तीनों नियत समय पर अड्डे पर पहुंच गए। दो मोबाइल पर बात करते-करते  आए, और धप -धप कुर्सियों पर बैठ गए। तीसरा मोबाइल पर कोई नंबर लगाते हुए आया और बैठ गया। 10 मिनट तक बात करने के बाद नंबर दो की बात खत्म हुई, और उसने चाय का ऑर्डर दे दिया । नंबर 3 ने मोबाइल पर झुके झुके कहा “यहां सिग्नल बहुत पुअर होता है ,मिल ही नहीं रहा है” तब तक नंबर दो कि मोबाइल पर घंटी बजने लगी उसने झपटकर मोबाइल उठाया और बात करने लगा। नंबर एक की बात अभी जारी थी। अचानक नंबर 3 का नंबर लग गया, और वह उत्तेजित स्वर में बात करने लगा। तभी नंबर एक की कॉल खत्म हो गई, उसने मोबाइल को सहलाते हुए चारों ओर देखा और पूछा “चाय का आर्डर हो गया क्या? किसी ने जवाब नहीं दिया। उसने चाय का आर्डर दोहरा दिया ,इसी बीच उसका मोबाइल प्रकाशित हुआ और कोई छोटी धुन भी, बजी ...

मेवा लाल का सीरियल :: विकुति

  _________________ मेवा लाल मूलतः हलवाई हैं।उनकी मिठाइयां, खस्ते और कचौरियां शहर भर में प्रसिद्ध हैं । दूर दूर से भी जो  लोग शहर में आते हैं मेवालाल के खस्ते कचौड़ियां जरूर खाते हैं और घर भी ले जाते हैं। मेवा लाल के पिताजी भी हलवाई  थे , वह जमीन पर बैठकर खस्ते कचौड़ियां तलते थे तब भी यह दुकान बहुत चलती थी। मेवा लाल जब बड़े हुए तो उनको दुकान कि   हालत ठीक नहीं लगती थी। मेवालाल शहर के मशहूर अंग्रेजी स्कूल में कई जमात पढे थे ,वे आज की दुनिया के रंग ढंग जानते थे, इसलिए वे अपने पिताजी से अक्सर कहा करते थे “बापू दुकान से अच्छी आमदनी हो रही है, पैसे रुपए की कोई कमी नहीं है, क्यों न दुकान की थोड़ी साज सज्जा बदल दी जाए ,थोड़ा अच्छा रंग रोगन हो जाए ,फर्श पर टाइल्स या पत्थर लगवा दिया जाए ,शीशे की खिड़की दरवाजे हो जाएं लोगों के बैठने के लिए हाल में पंखे, एसी ,लगवा दिया जाए” । उनके इस विचार से उनके पिताजी कभी सहमत नहीं हुए। उनका कहना था” बेटा जमाना बहुत खराब है ,आज के दिन तो अपनी भी रोटी खानी है ,तो छुपा के खानी है ,दुकान जैसी भी है बहुत ठीक है ,इसी में बरकत है ,फालतू पैसे खर्च...

जेल से छूटे कैदी का विकास दर्शन :: विकुति

  ______________________ रिहाई का कागज लेकर मैं तेज कदमों से फाटक पर पहुंचा। वहां पर खड़े सिपाही को  मैंने सलाम किया। सिपाही एक बाल बच्चेदार नरम दिल इंसान था। बोला “रिहाई हो गई , बेटा घर जाओ ,ठीक से रहना”। “जी हाकीम”   मैंने कहा। छोटा वाला फाटक खोलते -खोलते, उसने  कहा “कभी-कभी आते रहना, पुराने लोगों से मिलकर अच्छा लगता है ,और कभी कोई गलती सही हो गई हो तो माफ करना ,यह तो नौकरी है नरम-गरम करना ही पड़ता है”। मैं बहुत लज्जित हुआ ,सोचा सिपाही जी कितने भले आदमी है, मैं इनको पहचान ही नहीं पाया । मैं धीरे से बाहर निकला और एक बार फिर उनको सलाम कर मुड़ गया । फाटक पर मिलाई करने वालों की भीड़ थी । लेकिन मुझे कोई लेने नहीं आया था। फिर मैंने सोचा अरे!फूल माला लेकर लेने तो लोग, लिंचरो को आते हैं, दंगाइयों को आते हैं ,झूठे मामले में फंसा दिए गए बाहुबलियों को आते हैं ,और कभी-कभी पार्टी के नेताओं को भी आते हैं और मैं तो इनमें से कोई भी नहीं हूं। मैंने तुरंत इस विचार को झटक दिया। इसके बाद मैं घर पहुंचने की योजना बनाने लगा। लगभग दो-तीन घटे की बस यात्रा तो तय है। अभी दुविधा यह थी कि बस ...

नौजवानों के नाम एक संदेश ( ज्ञान) :: विकुति

    आप जानते हैं जितना भी अच्छा या बड़ा ज्ञान हमें मिला है वह सब मुफ्त में मिला है। हमारे ऋषियों ,मुनियों और महापुरुषों द्वारा दिया गया समस्त ज्ञान इसी श्रेणी में आता है। मैं भी आपके हित में एक ऐसे ही ज्ञान का उद्घाटन करने जा रहा हूं। जाहिर है यह भी निशुल्क होगा। में केवल करुणा बस इस ज्ञान को प्रकट कर रहा हूं। श्रद्धा पूर्वक ग्रहण करेंगे तो फायदे में रहेंगे। इसमें मेरा किसी प्रकार का कोई स्वार्थ नहीं है। सबसे पहले मैं आपसे एक प्रश्न करता हूं । आपकी सबसे बड़ी समस्या क्या है? प्रश्न यह भी हो सकता है कि आप करते क्या हैं? आप कह सकते हैं कि मैं सिनेमा देखता हूं ,मोबाइल पर , Youtube ,व्हाट्सएप या फेसबुक को , उलटता, पलटता हूं  क्रिकेट देखता हूं ,प्रधानमंत्री की रैली, रोड शो में जाता हूं नारा लगाता हूं , मोदी -  मोदी चिल्लाता हूं, दशहरा, दिवाली, रामनवमी ,महावीर जयंती आदि मनाता हूं और क्या करता हूं? आपका यह जवाब बहुत सही है और यही नहीं यदि आपके मां-बाप थोड़े भी जागरूक रहे होंगे ,तो आपके पास बीए,एम ए  B.Ed, ला, ,आदि की डिग्रियां भी होगी। लेकिन बुरा मत मानिएगा इसमें आपका ...

बड़े भाई तो बड़े भाई, छोटे भाई सुभानल्लाह :: विकुति

    शुरू से ही मुझे इसकी आशंका थी । इनके ज्ञान ,शीलऔर एकता को देखकर कोई भी कहता की दोनों सगे भाई हैं। लेकिन ऐसे ,ही कोई कैसे कह देता की दोनों भाई है,लेकिन एक दिन किसी शुभ अवसर पर जब बड़े भाई ,छोटे भाई के अड्डे पर गए हुए थे । प्रेम , विहवल होकर भरे गले से उन्होंने कह दिया ,यह मेरे छोटे भाई हैं। जनता पुलकित होकर ताली बजाने लगी। गजब राम भारत मिलन का अवसर बना । अब मैं संकोच के बिना दोनों भाइयों की तुलना कर सकता हूं। उनके गुण धर्म गिना  सकता हूं। सर्वप्रथम मैं आचार्य सोमेश्वर का मूल्यांकन प्रस्तुत करना चाहूंगा। आचार्य सोमेश्वर ने इनका चरित्र चित्रण दो सूत्रों के माध्यम से किया है ।सूत्र अत्यंत सारगर्भित हैं ।इन सूत्रों को पाणिनीके सूत्रों के समान मानने में कोई हर्ज नहीं है। आचार्य सोमेश्वर ने इनको निम्नवत परिभाषित किया है— एक — बड़े भाई- अजैविक और अविनाशी हैं । इनको ,निम्नलिखित 3 “म” से परिभाषित किया जा सकता है।, यथा- मंच ,माइक और मन की बात। टिप्पणी–, यहां आचार्य ने टेलीप्रॉन्पटर का उल्लेख नहीं किया है। आचार्य से ऐसी त्रुटि की अपेक्षा तो नहीं की जा सकती है क्योंकि टेलीप्रॉन्पट...

A I की गाथा फाइल में ( भाग -9 )

    [ पूर्वावलोकन - अभी तक आप ने पढ़ा है कि A I निर्माण संबंधी फ़ैक्स सन्देश प्राप्त होता है।विज्ञान विभाग के प्रमुख सचिव को फ़ैक्स की प्रति चीफ़ साहब द्वारा भेजी जाती है। निरंतर प्रयास के बाद मुख्यमंत्री जी से संक्षेप में मार्गदर्शन प्राप्त होता है कि हमारा आ I वेदों एवं संस्कृत साहित्य में उपलब्ध नैतिकता को ध्यान में रखते हुए निर्मित किया जायेगा।यह ज्ञात किया जाये कि A I के विषय मे वेदों ,ऋचाओं में क्या कुछ कहा गया है। विभाग में हड़कंप मच जाता है। धड़ाधड़ बैठकों का क्रम शुरू हो जाता है। चीफ साहब भी अपने स्तर पर अति सतर्क हैं। मुख्यमंत्री जी ने इच्छा व्यक्त की थी कि एक प्रारंभिक बैठक भी करेंगे और आगे की रणनीति तैयार की जाएगी। बैठक के लिए सामग्री जुटाने ,स्लाइड तैयार करने ,विभिन्न यूनिवर्सिटीज से सम्पर्क कर सामग्री संचयन की कार्यवाही भी गतिमान है। गोरक्ष धाम की लाइब्रेरी में भी वेदों व अन्य ग्रंथों की उपलब्धता के लिये टीम रवाना हो चुकी है और जगतगुरु रामभद्राचार्य जी से चीफ साहब की दूरभाष पर वृहद वार्ता भी हो चुकी है। चीफ साहब मुख्यमंत्री की बैठक को लेकर थोड़ा चिंतित हैं।रह रह कर उनका...

उनकी दिनचर्या :: विकुति

          यह सर्वमान्य और सर्वविदित तथ्य है कि हम भारतीय उत्सव धर्मी लोग हैं।मूल रूप से अहिंसक भी हैं।अपनी प्राचीन परम्पराओं से अद्भुत लगाव भी है।हमारी आस्था अपरम्पार है। हमारी सभ्यता सबसे प्राचीन है।हम विश्वगुरु भी रह चुके हैं। मनुस्मृति विश्व का सबसे पहला लिखित संविधान है।हमारे वेद अपौरुषेय हैं जो ज्ञान का खजाना भी है।सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद है जिसमें गाय का उल्लेख मिलता है।गाय को 'अघन्या ' कहा गया है अर्थात गाय का वध निषिद्ध है।               अब दूसरे बिन्दु को लिया जाये तो जो लोग सामाजिक जीवन अख्तियार किये हैं ,जिनमें जनकल्याण की भावना है ,जो परोपकारी हैं ,जिन्हें सनातन का उत्थान करना है ,जिन्हें रामराज्य ले आना है वे अपने अपने घरों में एकाकी जीवन नहीं व्यतीत करते हैं।उनकी दिनचर्या आमजन से भिन्न होती है। सामाजिक जीवन को अपनाने वाले लोग विविध कार्यक्रम प्रायोजित करते हैं ,भीड़ एकत्र होती है , गण मान्य लोग आते हैं ,कैमरे वाले लोग भी होते हैं और पत्रकारों को भी आमन्त्रित किया जाता है ताकि सुन्दर सुन्दर तस्वीरें  उतारी जा ...