जेल से छूटे कैदी का विकास दर्शन :: विकुति
______________________ रिहाई का कागज लेकर मैं तेज कदमों से फाटक पर पहुंचा। वहां पर खड़े सिपाही को मैंने सलाम किया। सिपाही एक बाल बच्चेदार नरम दिल इंसान था। बोला “रिहाई हो गई , बेटा घर जाओ ,ठीक से रहना”। “जी हाकीम” मैंने कहा। छोटा वाला फाटक खोलते -खोलते, उसने कहा “कभी-कभी आते रहना, पुराने लोगों से मिलकर अच्छा लगता है ,और कभी कोई गलती सही हो गई हो तो माफ करना ,यह तो नौकरी है नरम-गरम करना ही पड़ता है”। मैं बहुत लज्जित हुआ ,सोचा सिपाही जी कितने भले आदमी है, मैं इनको पहचान ही नहीं पाया । मैं धीरे से बाहर निकला और एक बार फिर उनको सलाम कर मुड़ गया । फाटक पर मिलाई करने वालों की भीड़ थी । लेकिन मुझे कोई लेने नहीं आया था। फिर मैंने सोचा अरे!फूल माला लेकर लेने तो लोग, लिंचरो को आते हैं, दंगाइयों को आते हैं ,झूठे मामले में फंसा दिए गए बाहुबलियों को आते हैं ,और कभी-कभी पार्टी के नेताओं को भी आते हैं और मैं तो इनमें से कोई भी नहीं हूं। मैंने तुरंत इस विचार को झटक दिया। इसके बाद मैं घर पहुंचने की योजना बनाने लगा। लगभग दो-तीन घटे की बस यात्रा तो तय है। अभी दुविधा यह थी कि बस ...