सत्यमेव जयते :: विकुति
न्याय के उस बड़े कक्ष में कुछ हलचल हुई। उमरादि ,के साथ वकीलों ने भी कक्ष में प्रवेश किया। उमर के साथ नौ और लोग भी थे। इस हलचल से देवी *जस्टिटिया* की आंख खुली। पहले इनकी आंख पर पट्टी हुआ करती थी जिससे आंख खुलने बंद होने का कुछ फर्क नहीं था। वक्त की मार से पटि्टयों में कुछ , झिरियां हो गई थी ,किंतु तब भी साफ दिखाई नहीं देता था। वह तो भला हो, उस न्याय रक्षक का जिसने देवी की आंख से , पट्टियां हटवा दी। फिर भी देवी कपड़ों से लोगों को पहचान नहीं पाती हैं। इसका कारण यह है की रोमन वस्त्रों और भारतीय वस्त्रों में बहुत फर्क होता है। किंतु हमारे भारत वर्ष में तो अभी भी ऐसे ऐसे अवतारी पुरुष हैं जो कपड़ो से, ही आदमी की पहचान कर लेते हैं। भारत में न्याय की देवी की प्राण प्रतिष्ठा का श्रेय अंग्रेजों को जाता है । यद्यपि ईसाई धर्म में कोई देवी देवता नहीं है । वहां तो केवल गाड हैं, लेकिन उन्होंने न्याय की प्रतिष्ठा हेतु एक देवी को स्थापित कर दिया था। अब हम भी न्याय , हेतु इसी देवी के आश्रित हैं। प्राचीन काल में हमारे यहां व्यवस्था बहुत सरल थी । यमराज और च...