AI की गाथा फाइल में ( भाग -2) :: विकुति
[ रिकैप – पिछले अंक में आप ने पढ़ा कि ए0 आई 0 के सन्दर्भ में भारत सरकार से एक फ़ैक्स संदेश सूबे के मुख्य सचिव को प्राप्त होता है।अति हड़बड़ाहट में मुख्य सचिव अपने निजी सचिव पाण्डेय को उक्त फ़ैक्स सन्देश खुद लेकर प्रमुख सचिव ,विज्ञान को हस्तगत कराने एवं उसकी पावती भी लेने के निर्देश के साथ रवाना करते हैं। पाण्डेय के प्रस्थान करने के बाद की स्थिति का वर्णन आगे किया जा रहा है।]
पाण्डेय के जाने के बाद मुख्य सचिव रिलैक्स होना चाहते थे ,किन्तु उसी समय उनको कुछ याद आ गया और अचानक उनका चेहरा सफेद पड़ गया तथा उनके हाथ कांपने लगे । काँपते हाथों से उन्होंने लाल फोन उठाया और बज़र देकर अपने पी0 ए0 को निर्देश दिया कि मा0 मुख्यमंत्री जी से बात करायी जाये। दरअसल हुआ यह था कि फ़ैक्स मिलने के बाद हड़बड़ी में वे इतने महत्वपूर्ण मामले को मुख्यमंत्री जी के संज्ञान में लाना भूल गये थे।
पी0 ए0 मुख्यमंत्री कार्यालय में फोन मिलाने लगा।इसी बीच मुख्य सचिव ने काले वाले फोन से सीधे प्रमुख सचिव ,विज्ञान ( शर्मा जी ) को फोन लगाया और उधर से आवाज़ आने पर बौखलाये स्वर में बोले - “ शर्मा , मेरा निजी सचिव पाण्डेय वह कागज लेकर तुम्हारे पास पंहुचा अथवा नहीं ?” ‘ नहीं सर। अभी तक तो पाण्डेय नहीं आये हैं।’ शर्मा जी ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया। “ अच्छा ,ठीक है। अभी तुम वो कागज अपने पास ही रखना। मैं मुख्यमंत्री जी से बात करता हूँ फिर तुमको फोन करता हूँ।”. इतना कह कर मुख्य सचिव ने फोन रख दिया और हड़बड़ाहट में लाल वाले फोन का चोंगा पकड़े और बोले - “ क्यों ,मुख्यमंत्री जी से सम्पर्क हो रहा है ?” पी0 ए0 ने डरते हुए उत्तर दिया - “ सर , श्रीवास्तव जी से बात हुई है। वे बोल रहे हैं कि मा0 मुख्यमंत्री जी माधव पैलेस में गोरक्षा सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे हैं।”. मुख्य सचिव अपने गुस्से पर काबू नहीं पा रहे थे - “ तुम सब लोग नाकारे हो। श्रीवास्तव से मेरी बात कराओ।”
मुख्य सचिव ,श्रीवास्तव को इस महत्वपूर्ण बात की महत्ता समझाने में असफल सिद्ध हुए। हार कर खिन्न मन से उन्होंने पूछा - “ अच्छा , यह बताओ कि मा0 मुख्यमंत्री जी से कितने समय बाद बात हो सकती है ?”. श्रीवास्तव ने कहा - ‘ सर , यह बता पाना तो कठिन है। अभी काशी के महामंडलेश्वर पधारे नहीं हैं पर शीघ्र ही पहुचने वाले हैं। सम्मेलन में मा0 रक्षामंत्री जी भी प्रतिभाग करने वाले हैं हालाँकि वे शहर में ही हैं पर अभी तक सभा स्थल तक नहीं पहुँच पाये हैं। सब मिला कर दो ढाई घण्टे तो लग ही जायेंगे।”
मुख्य सचिव ने बहुत कातर स्वर में कहा - “ श्रीवास्तव , अभी तो कार्यक्रम शुरू भी नहीं हुआ है। क्या दो मिनट के लिये मुख्यमंत्री जी से बात हो पायेगी। मामला बहुत ही अर्जेन्ट है और उनका मार्गदर्शन भी अति आवश्यक है।”. श्रीवास्तव थोड़ी झल्लाहट में उत्तर देते हैं - “ सर , मैं कैसे आप को समझाऊँ। मा0 मुख्यमंत्री जी इस समय संत समाज के प्रतिनिधियों एवं गण मान्य नागरिकों से घिरे हुए हैं , उनसे गम्भीर प्रकृति की वार्ता हो रही है । सर , आप तो जानते ही हैं कि चुनाव समझिये आ ही गये हैं।ऐसे में यदि मैं मा0 मुख्यमंत्री जी को डिस्टर्ब कर दूँ तो मेरी नौकरी तो ****.सर।” “श्रीवास्तव जी , नौकरी सिर्फ ,आप की ही नहीं है। आखिर मैं भी तो सरकारी सेवक हूँ। खैर , कितनी देर बाद वार्ता की उम्मीद करूँ ?” श्रीवास्तव ने उत्तर दिया - “ सर ,दो घण्टे बाद पुछवा लीजियेगा।”
इस बीच शर्मा जी ( प्रमुख सचिव विज्ञान ) ने अपने विशेष सचिव ,संयुक्त सचिव एवं अनु सचिव को अपने चैम्बर में बुलवा लिया। प्रमुख का सन्देश पाकर इन सभी अधिकारियों ने उस सुहानी शाम के सात बजे अपने अपने रुतबे के मुताबिक हिन्दी/ अंग्रेजी में अपनी चुनिंदा प्रिय गालियों का परायण किया और कमर को सहारा देते हुए खड़े हुए।अपनी गीता रूपी डायरी को दाहिने हाथ में , अपने चश्मा रूपी सूक्ष्मदर्शी यन्त्र को अपने बाएं हाथ में संभालते हुए ,दिल के ऊपर कलम की उपस्थिति को सुनिश्चित करते हुए प्रमुख सचिव के कक्ष में तशरीफ़ ले गये।
प्रमुख सचिव अपने कक्ष में अपनी मेज पर उस फ़ैक्स सन्देश को फैलाये हुए ‘ दुखिया दास ,कबीर ‘ की दार्शनिक मुद्रा में खोए हुए बैठे थे। अपने मातहतों को सामने देख कर बोले - “ आ गये ,आप लोग। बैठिये।” अचानक उनकी भाव भंगिमा में तब्दीली आयी और वे दार्शनिक से वैज्ञानिक हो गये। अत्यंत गंभीरता से एक एक शब्द तौल कर बोले - “ यह जो ए0 आई0 है ना , जिसे कुछ लोग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी कहते हैं — एक लम्बी चुप्पी के बाद दीर्घ श्वास लेते हुए बोले —बहुत सेंसिटिव मसला है ।” अनु सचिव मिश्रा ने बात को आगे बढ़ाया - “ सर , यह बहुत खतरनाक भी है।”.प्रमुख सचिव की भौहें थोड़ी तनी और झल्ला कर बोले - “ उसी बिन्दु पर आ रहा हूँ ,मिश्रा।” इसी बीच उन्हें कुछ याद आ गया और उन्होंने जिज्ञासा व्यक्त किया - “ निदेशालय में जो वरिष्ठ वैज्ञानिक ए0 आई0 का काम देखते हैं ,उनका नाम क्या है ?” बिना समय गवाएं अनु सचिव ने तपाक से उत्तर दिया - “ डॉ0 शेष शंकरन ,सर।”
प्रमुख सचिव ने सफेद फोन उठाया और पी0ए0 को निर्देश दिया - “ जरा ,डायरेक्टर से बात कराओ। “ थोड़ी ही देर बाद बज़र की घंटी बजी ,लाईन पर डायरेक्टर साहब थे। “ हलो ,डॉ0 सिंह ,गुड इविनिंग – नहीं ,नहीं । वह आख्या तो आप कल भी भेजवा सकते हैं।अभी डॉ0 शंकरन को मेरे कक्ष में तत्काल उपस्थित होने को बोल दीजिये और अभी आप अपने ऑफिस में ही उपलब्ध रहियेगा। दफ्तर छोड़ते समय बात भी कर लीजियेगा । बहुत इम्पार्टेंट मैटर है।”.
इतनी बात करने के बाद प्रमुख सचिव अपने सामने बैठे अधिकारियों की ओर मुखातिब हुए और बोले - ‘ कभी कभी ऐसी सिचुएशन आ जाती है। मुझे याद आता है एक शाम मैडम इन्दिरा गांधी जी ने मुझे फोन किया और कहा कि - “ एक सप्ताह में एटम बम का परीक्षण होना है , तैयारी करो “ ,और उन्होंने फोन रख दिया। मेरे तो हाथ पांव फूल गये। ऐसे में मैं क्या कर सकता था। मैंने सीधे भाभा को बुलवा लिया। डॉ0 भाभा को तो आप लोग जानते ही होंगे ?” “ जी ,सर। डॉ0 भाभा एक वैज्ञानिक थे पर पादरी थे।” अनुसचिव मिश्रा की यह स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी। इस प्रतिक्रिया से प्रमुख सचिव चिढ़ से गये -” डोन्ट मेंशन इल्लिसिट थिंग्स।” उन्होंने झिड़कते हुए मिश्रा को चेताया। मिश्रा जी ‘ सॉरी सर ‘ बोल कर मुह लटका कर बैठ गये।
इसी बीच डॉ0 शंकरन प्रमुख सचिव के चैम्बर में दाखिल हुए । उनके अभिवादन का जबाब देते हुए प्रमुख सचिव ने उन्हें बैठने का इशारा किया और बोले - “ डॉ0 शंकरन , आप एक ए0 आई 0 कितने दिन में बना सकते हैं ?” डॉ0 शंकरन के माथे पर चिन्ता की लकीरें उभर आयीं पर संयत होने का स्वांग रचते हुए उन्होंने गंभीरता से कहा - “ सर ,यदि सभी आवश्यक सामग्री समय से मिल भी जाये तब भी लगभग छह माह तो लग ही जायेंगे।” अब प्रतिक्रिया व्यक्त करने की बारी प्रमुख सचिव की थी - “ नो ,नो मिस्टर शंकरन । इतना समय किसके पास है। भारत सरकार ने तो आज ही बनाने के निर्देश दिये हैं।” “ बट इट इज़ नेक्स्ट टू इम्पसेबुल। इसके रीजन्स भी हैं ,सर।” डॉ0 शंकरन ने उत्तर दिया।
फिर कुछ कठोर स्वर में प्रमुख सचिव ने कहा - “ बनाना तो पड़ेगा ही मिस्टर शंकरन। यदि नौकरी करनी है तो —यह बात अलग है कि मैं अपने ‘ बिहाफ़’ पर दस पंद्रह दिन का समय ले लूँगा।” मिश्रा जी अब तक उखड़ चुके थे। अति विनम्रता से कातर स्वर में बोले - “ सर , यदि इजाज़त हो तो मैं घर जाना चाह रहा हूँ सर। दरअसल मिसेज हॉस्पिटल में भर्ती हैं ,सर।” ‘ अरे ,क्या हो गया है आप की मिसेज को ?’ ,प्रमुख सचिव थोड़ा झल्लाये। मिश्रा ने विनीत भाव से ही उत्तर दिया -” सर ,दो दिन पूर्व डिलीवरी हुई थी । दस बजे वार्ड बन्द हो जाता है। उसके पहले खाना पंहुचाना होता है।घर पर बच्चे अकेले हैं सर।”
“ मिश्रा ,तुम तो जानते हो ,ऐसे मामलों में में कितना लीनिएंट हूँ लेकिन जरा सोचो ,जब आज इतना इम्पार्टेंट काम पड़ा हो तो मैं कैसे तुम्हें छोड़ दूं।” फिर प्रमुख सचिव ने पूरी संजीदगी से कहा - “ वैसे देखता हूँ ,थोड़ी देर में आप को छोड़ दूँगा।” ‘ सर वो गेट दस बजे तक बन्द –।’ “ हाँ हाँ ,दस बजे के पहले ही छोड़वा दूँगा। मिस्टर शंकरन ,आप के पास गाड़ी तो होगी न ?” “ जी सर, पर उसका सेल्फ खराब होने के कारण उसे धक्का देकर स्टार्ट करना पड़ता है।” “ तब तो ,और अच्छा है। दो लोग मिल कर अच्छे से धक्का लगा लेंगे। आप मिश्रा को उसके घर छोड़ते हुए निदेशालय चले जाइयेगा पर अभी घर मत जाइयेगा।तब तक मैं देखता हूँ ,सेक्शन वालों से बात करता हूँ।”
— क्रमशः—-.
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