महाकुंभ: वायरस की मोक्ष-यात्रा :: विकुति
महाकुंभ: वायरस की मोक्ष-यात्रा!
एक व्हाट्सएप्प फॉरवर्ड प्राप्त हुआ जो निम्न प्रकार है:
“ॐ
विश्व चकित है। होना भी चाहिये। ना कोई मास्क हैं, ना कोई दूरियां हैं, ना कोई हाइजीन है, ना कोई सैनिटाइजर्स हैं और करोड़ो मानव एक ही नदी में एक सीमित जगह पर स्नान कर रहे हैं और कोई महामारी नहीं फैल रही। सारे कीटाणु और जीवाणु दुम दबाये पड़े हैं।
कैसी श्रद्धा है। कैसी गंगा मां है। कैसी आस्था है और कैसा कुंभ है। कैसा धर्म है। कैसा विज्ञान है। कैसा सितारों का योग है।
जन सैलाब एक ही उद्देश्य को लेकर उमड़ रहा है। पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति। ना कोई जात-पात का भेद, ना कोई वर्ण का भेद, ना कोई ब्राह्मण, ना क्षत्रिय, ना वैश्य और ना शूद्र, ना कोई ऊंचा ना कोई नीचा। सब समान।
हे आधुनिक विज्ञान!
एक बार फिर से बैठ कर गहन चिंतन करो। क्यों नहीं फैल रही महामारी? क्या होता है मोक्ष, कोशिश करो जानने की। क्या होते हैं पाप और पुण्य? क्या होता है पुनर्जन्म? जानो आधुनिक विज्ञान। तुम्हें अभी बहुत कुछ जानना है। झुको आस्था के आगे। धर्म के आगे। हो सकता है आस्था का विज्ञान, धर्म का विज्ञान तुमसे बड़ा हो? थोड़ा झुकना सीखो आधुनिक विज्ञान। कहते हैं झुकने से ज्ञान बढ़ता है।”
विश्व चकित है! होना भी चाहिए! आखिर महामारी, जिसे रोकने के लिए पूरी दुनिया मास्क, सैनिटाइज़र और सोशल डिस्टेंसिंग के पहाड़ उठाए फिर रही थी, वह भारत की एक नदी के तट पर आकर दम तोड़ देती है! वैज्ञानिक सिर पकड़कर बैठे हैं, वायरस खुद संन्यास लेने की तैयारी कर रहा है, और इधर श्रद्धालु ‘पाप मुक्त’ होकर घर लौट रहे हैं – “अब न किसी टेस्ट की जरूरत है, न किसी वैक्सीन की। बस एक डुबकी और जन्मों-जन्मों का बचाव!” जब पूरी दुनिया संक्रामक रोगों से लड़ने के लिए वैक्सीन, एंटीबायोटिक्स और क्वारंटीन जैसी फिजूल चीज़ों में उलझी हुई थी, तब हमारे ऋषि-मुनियों ने विज्ञान को एक बार फिर धूल चटा दी। गंगा में डुबकी लगाइए और सीधे मोक्ष पाइए!
डॉक्टर बेवकूफी कर रहे हैं, वैज्ञानिक अंधे हैं, WHO वालों को अज्ञानता का दौरा पड़ा हुआ है। इन्हें कौन समझाए कि संक्रामक रोगों को रोकने के लिए मास्क, दवा और हाइजीन जैसी चीज़ों की कोई जरूरत ही नहीं! बस श्रद्धा रखिए, धर्म में आस्था रखिए, और रोगों को आत्मज्ञान प्राप्त करने दीजिए!
आपको पता होना चाहिए कि जिस तरह भक्तगण कुंभ में पाप धोने आते हैं, उसी तरह वायरस, बैक्टीरिया और अन्य संक्रामक रोग भी गंगा में डुबकी लगाकर अपने पापों से मुक्ति पा लेते हैं। कहा जाता है कि प्लेग, हैजा, टायफाइड, टीबी और न जाने कितनी महामारियां गंगा के किनारे आकर मोक्ष प्राप्त कर चुकी हैं।
वायरस -बैक्टीरिया ने खुद WHO को एक मेल भेजा है – “कृपया इस गंगा जल का एक सैंपल हमें भी भेजें, हमें भी अपनी बायोलॉजी पर दोबारा विचार करना है।”
ज्ञान का कहना है कि बीमारी फैलने से रोकने के लिए साफ-सफाई, टीकाकरण और चिकित्सा व्यवस्था होनी चाहिए।धर्म का कहना है कि बीमारी फैलने से रोकने के लिए यज्ञ करो, आरती उतारो, गंगा में स्नान करो और सबकुछ भगवान पर छोड़ दो!
लोग निहायत मूर्ख हैं जो फाइज़र और मॉडर्ना जैसी कंपनियों ने अरबों डॉलर बर्बाद कर रहे हैं, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों बेवकूफी में रात-दिन एक कर रहे हैं वैक्सीन के ट्रायल्स में सालों का समय क्यों लगाते हैं?, जब मात्र एक गंगा स्नान ही पर्याप्त था।
सरकार इस विज्ञानं को समझती है । शायद यही कारण है कि अगर बीमारियों का इलाज केवल नदी में डुबकी लगाने से हो सकता है तो अस्पतालों का निर्माण क्यों किया जाय ? मेडिकल साइंस की पढ़ाई क्यों कराई जाय ? डॉक्टरों को किस बात का वेतन दिया जाय ? ऑक्सीजन सिलेंडर, वेंटिलेटर, ICU और सर्जरी जैसी चीज़ों की जरूरत ही क्यों हैं ? अतः क्यूंकि सरकार जनता के विचारों का ही प्रतिबिम्ब होती है इसलिए इन फालतू की बातों पर जनता के निर्देश पर वह भी ध्यान नहीं देती है ।
अब तक लाखों लोग आधुनिक चिकित्सा पर भरोसा करके बीमार पड़ चुके हैं, लेकिन जो लोग आस्था पर चले, वे सीधे मुक्ति के मार्ग पर बढ़ गए!
स्वास्थ्य मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जनता की इस जनोपयोगी मांग पर कुछ नए प्रोटोकॉल लागू करने चाहिए यथा : बुखार ! मंदिर जाओ, भगवान के चरणामृत से ठीक होगा!, टीबी ! गंगाजल पियो, तपेदिक खुद ही तपस्या में लीन हो जाएगा! इन्फेक्शन! चिंता मत करो, हवन की धुंआ स्नान से सब बैक्टीरिया जलकर भस्म हो जाएंगे! सर्जरी की जरूरत ! नहीं भाई, नारियल फोड़ो और आशीर्वाद से ही ठीक हो जाओ!
आखिर, जब धर्म, विज्ञान को हर मोड़ पर चुनौती देने लगे, जब तर्क को अंधविश्वास की चादर में लपेट दिया जाए, जब चिकित्सा को चमत्कारों से मापा जाने लगे, तो समझ लेना चाहिए कि समाज एक महाकुभ में दुबकी लगा रहा है ‘अज्ञानता का महाकुंभ’ में !
किसी ने सही कहा है "वायरस को धर्म से फर्क नहीं पड़ता, लेकिन धर्म के नाम पर फैलाए गए अंधविश्वास से जरूर पड़ता है!"
क्योंकि सच यह है कि वायरस को न आस्था से फर्क पड़ता है, न मोक्ष से, और न किसी धर्मग्रंथ के उद्धरणों से। वायरस केवल शरीर में घुसने का रास्ता ढूंढता है – और यह रास्ता वही होता है जो इंसान अपनी मूर्खता से खुद खोल देता है!
अब कोई डॉक्टर कहे कि बीमारियों से बचने के लिए टीका जरूरी है, तो भक्तगण कहेंगे – "गंगा मैया की कृपा से हम अजर हैं, हम पर कोई वायरस असर नहीं करेगा!"
आइए, दवा-गोली छोड़िए, मंदिर-मस्जिद में जाइए, और रोगों को मोक्ष प्राप्त करने का अवसर दीजिए! आखिरकार, जब बीमारियों का इलाज गंगा स्नान से हो सकता है, जब महामारी मोक्ष प्राप्त कर सकती है, जब वायरस धर्मग्रंथ पढ़कर आत्महत्या कर सकता है, तो डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की क्या जरूरत?
तो अब अगली बार जब बुखार आए तो पैरासिटामोल मत लीजिए, एक धार्मिक कथा सुनिए। हार्ट अटैक आये बस ‘ओम’ का जाप कीजिए। और अगर कोई और बीमारी हो जाय हो जाए तो दवा , सर्जरी की चिंता छोडिये की चिंता छोड़िए – गंगा स्नान का टिकट कटाइए!
जय मोक्ष! जय आस्था! विज्ञान को नमस्कार टाटा बाय बाय !
आस्था के सामने विज्ञान की क्या औकात है ? रामराज्य में दैहिक दैविक भौतिक ताप किसी को व्यापता नहीं था।' महावीर जब नाम सुनावे भूत पिशाच निकट नहीं आवे।हमने थाली पीट कर कोरोना को भगा दिये थे।संगम जाते ही श्रद्धालुओं के पापों का नाश हो जाता है क्योंकि कोई पापी गंगा जल का स्पर्श ही नहीं कर सकता।यही कारण है कि पापनाशिनी माँ गंगा कभी गन्दी नहीं होती हैं।
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