जैसे उनके दिन बहुरे

 

जैसे उनके दिन बहुरे

 

  दिल्ली चुनाव के नतीज़े यद्यपि अभी फ़ाइनल नहीं हुए हैं तथापि ' पूत के पांव पालने में ही दिखाई देने लगते हैं' ,जिससे कयास लगाया जा सकता है कि मा0 प्रधानमंत्री जी की तपस्या और माँ गंगा से मांगा गया वरदान फलीभूत होकर ही रहेगा। पापा की परियों के चेहरे पर मुस्कान उभर आयी है , किसी के आगे होने और किसी के पीछे छूट जाने की ख़बर सुनाते हुए उनकी बाछें खिल जा रही हैं , आत्मविश्वास सतह पर आकर चार चांद लगा रहा है जैसे कोई नया सबेरा आया हो ,जैसे किसी अकिंचन की किस्मत चमकी हो ,जैसे किसी अनाड़ी शिकारी के हाथ बटेर लग गयी हो।रहीम जी का एक दोहा अचानक ही सुमेसर भाई के जेहन में आ गया है - ' रहिमन चुप हो बैठिए ,देख दिनन को फेर। जब निको दिन आइहैं ,बनत न लगिहों देर।।' ईश्वर भी धैर्य की परीक्षा लेता है पर सतत अभ्यास से पत्थर पर भी लकीर पड़ ही जाती है। गावँ देहात में एक कहावत कही जाती है कि कभी न कभी घूरे के दिन भी बहुरते हैं।

          व्यंग्य शिरोमणि हरिशंकर परसाई जी की एक रचना भी सुमेसर भाई को  बरबस ही स्मरण हो आयी है - 'जैसे उनके दिन फिरे '.। राजा को अपने चार पुत्रों में से योग्य उत्तराधिकारी का चयन करना था ।चारो को एक साल के लिये राज्य से बाहर रहते हुए अपनी योग्यता सिद्ध करनी थी।साल भर बाद चारो पुत्र जीवित ही राज दरबार में उपस्थित हुए और अपनी काबिलियत का बारी बारी से बखान किये।अंत में मंत्री सबसे छोटे बेटे को सबसे योग्य बताता है। परसाई लिखते हैं कि “मंत्रिवर बोले, महाराज, इसे सारी राजसभा समझती है कि सब से छोटा कुमार ही सबसे योग्य है। उसने एक साल में बीस लाख मुद्राएँ इकट्ठी की। उसमें अपने गुणों के सिवा शेष तीनों कुमारों के गुण भी हैं- बड़े जैसा परिश्रम उसके पास है, दूसरे कुमार के समान वह साहसी और लुटेरा भी है। तीसरे के समान बेईमान और धूर्त भी। अतएव उसे ही राजगद्दी दी जाए।” परसाई जी राजा के  आवश्यक गुणों को इंगित करने में शायद मैकियावेली को भी मात दे देते हैं।

            जनता तो जनार्दन होती है और चुनावों के बाद जनादेश को स्वीकारने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प भी शेष नहीं रहता है। सुमेसर भाई भी जनता से अलग थोड़े ही हैं।वे भी जनता की खुशी और उसके निर्णय से प्रसन्न ही हैं।लगभग 27 वर्षों के बाद दिल्ली वासियों का भाग्य फिर से चमका है।दिल्ली की जनता को कितना अपमान सहना पड़ता था। हर कोई उन पर लालची होने का आरोप मढ दिया करता था। चाहे बिजली ,पानी ,रसोई गैस में छूट लेने की आदत बन गयी थी ,जहाँ मोहल्ला क्लिनिक में निःशुल्क चिकिसकीय परामर्श लेने की व्यवस्था थी ,जहाँ सरकारी स्कूलों में भी साफसफाई और कम खर्च में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलती थी ,जहाँ दारू का खर्चा भी कम था  तो दिल्लीवासियों की आत्मा उन्हें कचोटती थी और उन्हे खुद भी लगता था कि वे अपने पुरुषार्थ पर नहीं बल्कि सरकार के रहमोकरम पर जीवित हैं।इसके अतिरिक्त भी जनता को बहुतेरे कष्ट थे - - मुख्यमंत्री एवं एल0 जी0 का वैमनस्य ,दिल्ली पुलिस पर मुख्यमंत्री का अधिकार न होने से क़ानून व्यवस्था का निम्न स्तर ,जमुना नदी का जल प्रदूषित होने से छठ व्रत धारियों को होने वाली परेशानी  ,राजधानी की आबोहवा खराब होने से स्वास्थ्य पर पड़ता कुप्रभाव , दिल्ली में दूषित पेयजल की आपूर्ति आदि।

           लगता है अब तो ज़रूर अन्य राजों की तरह जनता खुशहाल हो सकेगी ,स्वच्छ हवा और स्वच्छ जल उन्हें मिलेगा ,सड़कें गुणवत्तापूर्ण होंगी  ,UP और बिहार जैसे स्कूल हो पाएंगे , एल जी से विवाद समाप्त हो सके ,हास्पिटल भी उत्तर प्रदेश और बिहार से टक्कर ले पाएंगी ,आयुष्मान योजना लागू हो सकेगी ,दिल्ली के किसानों की दशा सुधरगी , दिल्ली में पुराने मन्दिरों ,शिवालयों की खोज के लिए खुदाई हो सकेगी  ,भारतीय संस्कृति को प्रोत्साहन मिलेगा ,विरासत एवं धरोहरों को संरक्षित रखा जा सके ,नशा के सौदागरों को दबोचा जा सके ,मंत्रियों एवं माननीयों द्वारा जनता से मधुर संवाद स्थापित किया जा सके ,कानून व्यवस्था की स्थिति बेहतर हो सके ,सबका साथ मिले और सबका विकास हो सके ,साम्प्रदायिक सद्भाव व सौहार्द को देश के अन्य भागो के बराबर हो जायेगा, और कानून व्यवस्था तो सुदृढ़ थी ही  उत्तर प्रदेश वालो जैसे हर महिला को ढाई हजार मिलेगा ,सबसे बढ़ कर दारू और सस्ती हो सकेगी कुल मिलाकर अब डेल्ही में भी राम राज्य आ जायगा।विश्वगुरु बनाने की ओर एक और कदम आगे बढ़ गया है

Comments

  1. अब तो दिल्ली चुनाव के नतीज़े आ गये हैं।संस्कारी पार्टी पूर्ण बहुमत प्राप्त की ली है।आठ सदस्यों से बढ़ कर 48 सीटों वाली पार्टी बन गयी है। दिल्ली पार्टी मुख्यालय पर जश्न का माहौल है।बस एक चीज खल रही है।अति विनम्र ,सुसंस्कृत ,मृदुभाषी रमेश विधूड़ी जी चुनाव हार गये हैं।एक पूर्व मुख्यमंत्री का पुत्र बुरी तरह पराजित हुआ है और दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री का पुत्र दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने वालों में सबसे आगे है। जनादेश का स्वागत है।

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