कठिन सवाल का सरल जवाब :: विकुति

 


जब मेरी समझ में कुछ न आया तो मैं लाल बुझक्कड़ को ढूंढने लगा I वह मिले एक पेड़ के नीचे चारपाई पर चित्त I मैंने उन्हें आहिस्ता से जगाया I एक बारगी वे उखड़ गए I  

मैं ज्ञानी हूं तो क्या मुझे सोने भी ना दोगे ?”

 मैंने अत्यंत विनय पूर्वक कहा “बात ही कुछ ऐसी है भाई चुनाव का रिजल्ट आ गया है और मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है की कोई कैसे जीता ? और कोई कैसे हार गया ?

लाल भाई ने जम्हाई ली , अपने ज्ञान की गठरी खोली और बोले “ इसमें क्या दिक्कत है ? चुनाव और कुश्ती में एक जीतता है दूसरा हारता है I इसमें मैं क्या बताऊं ?  

फिर भी भाई कोई न कोई कारण तो होगा ही मैं कारण जानने के लिए मर रहा हूं I मेरी मदद करो I 


 

लाल भाई उठकर बैठ गए खैनी मलकर मुंह में डाला और बोले “इस प्रसंग में मुझे कुछ पुरानी यादें आ रही हैं I जब हम छोटे थे , गांव में कई बुजुर्ग ऐसे थे ,जो अंग्रेजी राज्य के मुरीद थे I अक्सर कहा करते थे ,यह भी कोई राज है ? गवर्नमेंट (अंग्रेजी)  के राज्य में जिस दिन बाजार में लाल पगड़ी दिख जाती थी , पूरे गांव के दरवाजे बंद हो जाते थे I यह होता है सरकार का इकबाल ! वे सब बुजुर्ग तो अब नहीं है , लेकिन उनके विचार जिंदा हैं , विचार कभी मरते नहीं I लोकतंत्र आ गया हो या परलोक तंत्र आ गया हो , लोग ऐसी ही सरकार को मानते हैं, जो हमेशा डंडे को तेल पिला कर रखती है I प्यार-दुलार सरकार का काम नहीं है I भले चोट लगती है, पर सरकार वही है जो पीठ पर डंडे बजाती रहे और सरकार जब खास तौर पर विधर्मियों पर ही डंडे बरसाती हो तो फिर क्या कहना ? संविधान और कानून को लेकर घूमने वाली कौन सी सरकार होती है I आज अपराधी पकड़ा गया और 10 20 साल मुकदमा चलाओ और उसके बाद वह छूट भी जाए, तो ऐसी न्याय पर लानत भेजो I सरकार तो वह है जो गुंडे बदमाश को पकड़े और खड़े-खड़े ठोक डाले I चट मंगनी पट ब्याह I तुम मानो ना मानो लोगों की पसंदीदा सरकार ऐसी ही होती है और जो सरकार बुलडोजर और जेसीबी लेकर चलती हो वह तो 10 बार आएगी I तुम बैठकर कुढ़ते रहो I  कोर्ट कचहरी क्या है ? एक झमेला है I लोग सख्त सरकार चाहते हैं अलबत्ता वे उसके चक्कर में ना आए I  दूसरों को पीटने वाली सरकार किसे पसंद नहीं है I  अब तुम कहोगे की पढ़े-लिखे लोग ऐसा नहीं सोचते,तो गलतफहमी से निकलो I यह सब पढ़े लिखे ऑटोमेटिक कॉलेज के पढ़े हैं I जिनकी पार्क में मॉर्निंग कोचिंग भी हुई है I ये  ऐसा ही सोचते हैं I आज तो निरीह विक्टिम खुलेआम मांग करने लगे हैं कि आरोपियों का एनकाउंटर कर दिया जाए I  यह तो एक बात हुई I “

लालबुझक्कड़ ने करवट बदली और खंखार कर बोले “अब दूसरी और तीसरी भी आगे सुनो I यह कहावत कहावत है कि आधी छोड़ पूरी को धावे आधी रहे न पूरी पावे I पर मूलतः तो यह सूक्ति दर्शन से आई है,और तुम पढ़े लिखे आदमी हो I  दर्शन में आ जाओ I चार्वाक आचार्य ने कहा था ‘कल मोर मिलेगा यह सोचकर आज हाथ में आए कबूतर को क्यों छोड़ दिया जाए’ तो जनता को मूर्ख समझना बंद करो I जब न्याय वालों ने कहा कि हम साल में एक लाख देंगे तो लोगों ने सोचा अभी जो 6000 हाथ में आ रहा है, वही ठीक है I एक लाख का क्या मिले ना मिले ? घर बैठे यही क्या कम है यह  आम जनता का विचार है I अभी तो 10 किलो गेहूं -चावल, 1 लीटर अडानी का तेल, 1 किलो चना ,नमक मिलना बाकी है,  वह तो ले ले आगे की आगे देखी जाएगी I फिर जिसका नमक खा लिया उसको अदा करना ही है I हमारी तो यही परंपरा है I “


 

 लाल ने आँखों से खुला आसमान देखा और आँखे बंद कर बोले “दयालु राजा तो भगवान के बराबर होता हैI  ऐसे दाता से कैसे विमुख हो जाए ? ऐसे धर्म परायण लोग हैं तो जो जीता है वही जीत सकता था I रोजी रोजगार का क्या सोचना मिलना  होगा तो मिलेगा I  कुछ नहीं होगा तो एक आध छुट्टा मवेशी ही बांध लेंगे I गोबर से ही चल जाएगा I कोई काबिल संतान संतान हो गई तो उसका तो रास्ता साफ है I कहीं भी किनारे ठेले पर पकौड़ा ही तल लेगा I जो ज्यादा पढ़ा लिखा निकल जाए तो ₹2 ट्वीट के हिसाब से सो -चार सौ रोज आराम से कम लेगाI  जो आत्मनिर्भर होना ही चाहे तो उसका तो रास्ता बिल्कुल साफ है I  चालीस पचास हजार का कर्जा लेकर कुछ दिन मौज मस्ती करेंI  खत्म हो जाए तो आगे की सोचे I बस बैंक वालों से बचकर रहे I  इसके अलावा जो पुर्णतः है आत्मनिर्भर होना चाहे तो उसका क्या पूछना ? बस एक गेरुआ गमछा और एक डिबिया रोली का खर्चा है I  फिर जहां चाहे विचरो I खाने-पीने की कमी नहीं होगी , बस एक ही शर्त है परिवारवादी ना बनेI   बड़े-बड़े गुप्ता जी और अग्रवाल साहब उसके भोजन की चिंता कर लेंगे I  देशभक्त को परिवार तो छोड़ना ही पड़ता है I  एक बार देशभक्ति का तगमा जुगाड़ लो फिर एक दिन में चाहे 6 कपड़े बदलो चाहे 12, मन करे तो पूरे कपड़े में नहा ही लो, और इर्दगिर्द 51 कैमरे लगवा लो या बावन I  फिर बैठे-बैठे मोर चुगाओ या कबूतर I  ताली तो बजती ही रहेगीI  “

 इतना कह कर लाल भाई ने सांस ली और फिर शुरू किया “अब चलो तीसरा भी सुन लो जब सारी दुनिया जान गई कि सब विधर्मी जीतने वाले के खिलाफ एकजुट हो गए हैं , तो धर्म परायण कैसे बैठे रहते ? वे भी उनके खिलाफ एकजुट हो गए और ऐसे ही काम बन गया I कैसे एक पुण्यात्मा की दुर्दशा होने देते I  समझ गए हो तो बंद करें या फिर और एक और सुना दे I  “

मैंने हाथ जोड़कर कहा “इतना सुना ही दिया है तो भाई चौथा भी सुना दो बड़ा उपकार होगाI “

लाल भाई हँसे और बोले “अब एक कप चाय मिल जाए तो गूढ़ बात आगे बढ़ाएं I “ 

मैंने नरेश को चाय का इंतजाम करने को कहा फिर इधर-उधर की बात होने लगी I जल्दी ही चाय आ गई और लाल लाल भाई ने उसे मिनटों में सुड़क लिया और चुप होकर बैठ गए I अधीर हो रहा था मैंने कहा “भाई वृत्तांत को आगे बढ़ाएं “

भाई झुंझला गए गए बोले “कौन सी आफत आ रही है ? और मुंह से धुआं छोड़ते हुए वृतांत आगे बढ़ायाI  

“जब ये जीतने वाले आते थे तो लगता था जैसे बारात आयी हो , लाक-दक कपड़े, एक से एक साज श्रृंगार, 110 मीटर का मंच, ध्वनि और प्रकाश, तरह-तरह की पगड़ी , टोपी, माथे पर सुवासित चंदन , रोली , विलसित मुख मुद्रा , गर्वित चाल और उसी में झुक-झुक कर सलाम I  क्या शमा बंधता था ! बाराती ऐसे की शिव जी की बारात झूठी ,रंग-बिरंगे , ऐसे जोकर,  की मन  आह्लादित हो जाए I  किसी का मुंह रंगा, किसी की पीठ रंगी ,पीठ-पेट पर फूल पत्तियां ,इबारतें उकेरी हुई I  नाचते- कूदते कुलाचे भरते , सन्निपात में हाथ हिलाते , पैर नचाते, कुछ गाते ,कुछ चिल्लाते,  भक्ति में इठलाते क्या करें कि प्रभु की दृष्टि  पड़ जाए ? इस मनमोहन माहौल में कौन गदगद ना हो जाए ! ऐसी छवियां की मन तो क्या अचेतन मन पर छप जाए I  कौन भला इस इंद्रजाल को काट सकता था ?

इतना कहकर लाल भाई ने गहरी सांस ली, खाली चिलम को उलट-पलटकर देखा, जैसे उसमें बचा-खुचा नशा कहीं कोनों में छिपा हो। फिर माथा पीटते हुए बोले "साला! दूसरों की जीत-हार में ऐसा घुसे कि पूरी चिलम बेकार गई! नशा तो गया ही, ऊपर से झूठ भी फ्री में बोलना पड़ा! अगली बार ऐसी  चर्चा से पहले दो चिलम एक्स्ट्रा रखना !"

मैंने झुक कर उन्हें प्रणाम किया और कहा “जी भाई ध्यान रखूँगा”

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