आषाढ़ का एक दिन :: विकुति

 

आषाढ़ का एक दिन ::ललित कथा

 

आषाढ़ का महीना था I मौसम में बला की उमस थी I पसीना रुक ही नहीं रहा थाI  सुबह-सुबह इतनी गर्मी ने दरबारियो को चिड़चिड़ा बना दिया था I महाराज की यही आदत दरबारियो को लगातार परेशान करती आ रही थी I महाराज पर रनिवास का कोई बंधन तो था नहीं I वे सवेरे 7:00 बजे ही दरबार में आज धमकते थे I  फिर लगातार 18 घंटे सिंहासन पर ही बिराजा करते थे I वह कभी जागते कभी सोते लेकिन दरबार चलता रहता था I महाराज बस सिंहासन पर मुद्रा बदल-बदल कर विश्राम और सावधान की मुद्रा में आते-जाते रहते थे I

महाराज की इस दिनचर्या की प्रजा में बहुत प्रशंसा थी I महाराज के इसका कठिन परिश्रम की गाथा सुनकर प्रजाजन अपना दुख दर्द भूल कर महाराज चालीसा का पाठ करते हुए जीवन यापन कर रहे थे I वैसे हनुमान चालीसा के पाठ पर भी कोई पाबंदी नहीं थी I कोई भी पाठ सुविधानुसार खुले तौर पर किया जा सकता था I यधपि आचार्यों की राय थी कि इस कलि काल में महाराज चालीसा का पाठ शीघ्र फलदाई होता है I इस बात के अनेक प्रमाण उपलब्ध थे कि श्रद्धा पूर्वक पाठ करने वालों को देखते -देखते अपूर्व धन संपदा और उच्च राजकीय पद प्राप्त हो जाए थेI

 महाराज के पधारने से पहले ही सिंहासन के बगल वाले सारे AC चला दिए गए I इससे दरबारियो को भी थोड़ी राहत मिलीI उन्होंने गमछा से हवा करना बंद कर दिया, लेकिन दिल की धड़कन बढ़ गई ,पता नहीं महाराज क्या पूछ बैठे I

आकर महाराज धाम से सिंहासन पर आरूढ़ हो गए I थोड़ी देर महाराज ध्यानस्थ रहे उन्होंने प्रार्थना की की हे ! केदारनाथ मेरा इस सिंहासन से कभी भी छोह ना हो I बस बस यही एक विनती है I ऐसा महाराज रोज ही करते थे I दरबारी भी खड़े होकर अपनी कुर्सियों के प्रति यही प्रार्थना करते थे I महाराज आज प्रवचनात्मक मुद्रा में दिखाई पड़ रहे थे I बैठते ही वे बोल पड़े अर्थात पूछा , रेल मंत्री जी आपका विभाग कैसा चल रहा है ? मंत्री जी ने तपाक से उत्तर दिया “आपके पराक्रम से धकाधक चल रहा है महाराज”  महाराज को हंसी आ गई “अरे मंत्री जी कोयला पानी वाले इंजन कहां है जो धकाधक चलेंगे”

झुक कर हाथ जोड़कर मंत्री जी ने कहा “दीनदयाल लेकिन आवाज तो अब भी होती ही है चाहे उसे सरकार चलाएं या श्रेष्ठी श्रेष्ठI ” यह उत्तर सुनकर पूरा दरबार हंस पड़ा I अब महाराज विश्राम की मुद्रा में आ गए I उनकी नज़रें दरबारियो में किसी को ढूंढ रही थी I हेरते-हेरते उनकी नजर उन पर पड़ ही गई I यह माननीय वित्त मंत्री थे I “अरे वित्त मंत्री जी नजर तो मिलाइये कहां देख रहे हैं ? देश की आर्थिक स्थिति कैसी चल रही है I “ महाराज ने पूछा I मंत्री जी ने गला साफ कर कहा “प्रजावत्सल भगवान आर्थिक स्थिति अच्छी होने से अच्छी नहीं होती बल्कि बल्कि अच्छे से अच्छा कहने से अच्छी होती है और आप यह या तुच्छ सेवक इस फन में माहिर है I अब अपने ही मुख से अपनी क्या बड़ाई करूं I “ महाराज ने सिर हिला कर हामी भरी और “बोले इसमें तो तुम्हारे दुश्मनों को भी सुबहा नहीं होगा I मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है ऐसे ही देश का विकास करते रहो I मंत्री जी ने तीन बार झुक झुक कर सलाम किया और विनय पूर्वक कहा “अब यदि आज्ञा हो तो कुछ हाल भी बता दूं महाराज में सिर हिला कर आज्ञा प्रदान की I  “महाराज चारों तरफ अमन चैन, सर्वत्र पूजन ,,यज्ञ ,प्रवचन , संध्या आरती अनवरत चल रहे हैं I हर तरफ मुरली ,डमरू ,घंटा- घड़ियाल की ध्वनि गूंज रही है I प्रतिदिन त्यौहार उत्सव आदि आयोजित हो रहे हैं I आपका नाम ले लेकर सर्वत्र साधु-साधु का गर्जन हो रहा है I स्वान भी दूध भात को सूंघ-सूंघ कर छोड़ दे रहे हैं I हवाई अड्डों पर हवाई चप्पल वालों की भारी भीड़ जमा है I गौ ब्राह्मण की सर्वत्र पूजा हो रही है I जोगी, बैरागी, साधु , संत गली-गली आशीर्वचन उच्चारते हुए घूम रहे हैं I अर्थव्यवस्था बहुत तेज चल रही है I रफ्तार इतनी है कि संभालना मुश्किल हो रहा है I संभालते-संभालते भी यह बार-बार जमीन छोड़ दे रही है I लोगों के घर हीरे जवाहरात से भर गए हैं I आटा ,चावल रखने की जगह ही नहीं बची है I किसान की आमदनी आसमान छू रही है अब वह खेती छोड़कर सड़क पर बैठकर मजा ले रहे हैं I भोजन में पनीर की सब्जी तंदूरी रोटी और नाश्ते में देसी घी का हवा चल रहा है I दूध दही क्या पूछना ही क्या ? पशुधन यत्र-तत्र सर्वत्र डोल रहे हैं I जिसको भी दूध चाहिए किसी गौ माता को पड़कर किलो दो किलो दूह ले रहा है I अगर किसी को पवित्र गोबर चाहिए तो बस किसी गौ माता को घंटा दो घंटा बाँध ले  हजारों का गोबर गौ माता छोड़ जाती हैं I अब क्या करें महाराज चहुँदिश आपकी दुन्दुभी बज रही हैI “

 महाराज पर्याप्त संतुष्ट दिखे I कुछ देर महाराज मौन बैठे रहे I फिर अचानक सावधान होकर बैठ गए और बोले “महामंत्री जी को छोड़कर बाकी लोग जा सकते हैं कुछ गुप्त मंत्रणा करनी है I दरबारीगढ़ प्राथमिक विद्यालय के बच्चों की तरह छूटे I  दरबार कक्ष खाली हो जाने पर महाराज ने इशारे से महामंत्री को पास बुला लिया I महामंत्री जाकर पास वाले एक छोटे सिंहासन पर विराज गए I महाराज ने खंखार कर गला साफ किया और मध्यम स्वर में बोले “महामंत्री जी शांति व्यवस्था की क्या स्थिति है ? लोग आ-आ कर बताते हैं कि समाज में अभूतपूर्व शांति है I मुझे तो बड़ी आशंका होने लगी है I “ महामंत्री ने किंचित हंसते हुए कहा “महाराज बिल्कुल आशंकित ना हो I शांति व्यवस्था बिल्कुल वैसी ही है जैसा आप चाहते हैं I आपके निर्देशों का अक्षरशः पालन हो रहा है I चारों तरफ लघु दंगे हो रहे हैं I केवल वैसे ही दंगे हो रहे हैं जिनको जब चाहे नियंत्रित भी कर लिया जाए , लेकिन भरपूर तनाव जारी रहे I एक जगह दंगों को रोक कर ही दूसरी जगह आरंभ किया जाता है I जब समाज में तनाव निर्धारित सीमा से कम हो जाता है तो अनेक नगरों में एक साथ भी शुरू कर दिया जाता हैI  तनाव का विषय भी अलग-अलग रखा जाता है , ताकि विषय की पुनरावृत्ति से लोग बोर ना हो I इन विभिन्न विषयों पर भी महाराज एक विहंगम दृष्टि डालना चाहिए I हिजाब ,अजान, नमाज हनुमान चालीसा ,रामनवमी ,दशहरा , हनुमान जयंती जनसंख्या ,पाकिस्तान ,जिन्ना ,मोहर्रम , श्मशान ,कब्रिस्तान अस्सी -बीस आदि इत्यादी I  मुझे आशा है विषयों के वैविध्य से आप निश्चित ही प्रसन्न होंगे I एक जरूरी बात यह भी बताना चाहूंगा कि इस राष्ट्रीय कार्य में हमें महात्माओं का अभूतपुरुष सहयोग प्राप्त हो रहा है I महाराज को यह भी अवगत करा दें कि आपको जो समाचार प्राप्त हो रहे हैं वह नितांत भ्रामक  वे पुर्णतः इस सेवक द्वारा मैनेज है I उनको आप कत्तई संज्ञान में ना लें I आपके इस कथन की सुलह और शांति मुर्दा समाज के लक्षण है, को हमने हृदय से अंगीकार किया हुआ है I इसमें भूल चुकी कोई गुंजाइश ही नहीं है I महाराज को याद होगा की इस सेवक ने राष्ट्र हित के कार्यों में पूर्व में भी यथासंभव अपना योगदान दिया है और कष्ट भी सही हैं I “

महाराज अत्यंत संतुष्ट और प्रसन्न दिखे कहा “महामंत्री जी आपकी निष्ठा लगन और देशभक्ति पर तो संदेह का कोई कारण ही नहीं है I आपकी निष्ठा बार-बार प्रमाणित है I यह तो मेरे ही दिल का चोर था जो मैंने प्रकट कर दिया I वैसे आप से छिपा भी क्या है ? हमने तो साथ मिलकर बड़े-बड़े कार्य किए हैं I मैं उनको कैसे भूल सकता हूं I “ महामंत्री जी ने तीन बार झुक झुक कर सलाम किया फिर बैठ गए I

महाराज कुछ देर मौन रहे फिर कहने लगे “महामंत्री यह तो एक बात थी , लेकिन दूसरी बात यह है कि आज मैं एक  महत्वपूर्ण सूत्र आपको देना चाहता हूं , जो मुझे एक गुफा में तपस्या करते हुए हजार वर्ष बाद प्राप्त हुआ था I यह यह अत्यंत गोपनीय है किंतु आप मेरे अत्यंत प्रिय हैं, इसलिए आपको देना चाहता हूं I इस गुह्य सूत्र को श्रद्धा रहित जातक को देना  घोर अधर्म और पाप है I “

“मेरे महाभाग जो महाराज ने मुझे इस योग्य समझा मेरा तो जन्म सफल हो गया I “अश्रुपूरित नेत्रों सहित महामंत्री ने कहा I  

महाराज कुछ काल के लिए ध्यानस्थ हुए फिर अपनी मधुर वाणी से ऐसा “कहा हे ! महाभाग तुम अर्जुन जैसे ही मेरे सखा और प्रिय शिष्य हो इसलिए मैं तुमसे यह गुह्य ज्ञान सूत्र इस महाभारत के मध्य दे रहा हूं I श्रद्धापूर्वक श्रवण करो  हे  निष्पाप ! महामंत्री पूर्व में एक विचार चलता था, जो बहुत चर्चित और मान्य भी था I जिस जिस द्वंदात्मक भौतिकवाद कहा जाता था I मेरा शुरू से ही इस सिद्धांत से विरोध था I द्वंद से तो मेरा कोई विरोध नहीं था किंतु भौतिकवाद पर घोर आपत्ति  थी I पश्चिम के भोगी विचारक इसके अतिरिक्त और क्या कर सकते थे , लेकिन धर्मप्राण भारतीयों को यह कैसे स्वीकार हो सकता था I अतः मै निष्ठा पूर्वक इसकी काट ढूंढने में रत्त हो गया I यह सिद्धांत यह मानता था कि समस्त विकास परिवर्तन वर्गों के संघर्ष से होता है I मैं इससे क्योंकर सहमत होता ? मैंने सारे वेद सारे वेद पुराण शास्त्र छान डाले इनटायर पॉलीटिकल साइंस भी पढ़ डाला , लेकिन सत्य सूत्र पकड़ में नहीं आ रहा था , कि एक दिन मैं एक रमणीक सरोवर में स्नान कर रहा था I नहाते-नहाते ही प्रज्ञा का विस्फोट हुआ और मुझे सूत्र साक्षात हो गया I फिर क्या था?  मैं मिल गया !मिल गया !चिल्लाते हुए सरोवर से निकलकर मार्ग पर दौड़ने लगा I सारा नगर मेरे पीछे-पीछे दौड़ पड़ा मैंने किसी की परवाह नहीं की और जाकर घर में घुस गया I मैंने घर पहुचते ही इस सत्य को कागज पर सूत्रबद्ध कर दिया I वह गंभीर सूत्र इस प्रकार है द्वंद्वात्मक धर्मबाद समस्त सामाजिक परिवर्तन एवं विकास का कारक है I इसकी संक्षेप में व्याख्या यह है कि समस्त विकास समाज में धर्म के टकराव से होता है जितना अधिक टकराव उतना विकास I इसका उदाहरण साक्षात और अवलोकनीया है I मुसलमान और ईसाइयों का महत्त विकास कैसे ? हुआ टकराव के कारण युद्ध के कारण I यही नहीं धर्मो के अंतरिक आंतरिक टकराव से भी उनका विकास होता है I जैसे कैथोलिको  को और प्रोटेस्टेंट का टकराव I शिया और सुन्नियों का टकराव I  दुख की बात यह है कि हमारा महान धर्म शांति प्रेम की बात करने में लग रहा, जबकि यह यदि किसी शिद्दत से धार्मिक संघर्ष में लगता तो अब तक हम कहां पहुंच गए होते I पूरे विश्व से आ-आ कर इस देश में लोग बसते गए और हम उनका स्वागत करते रहे I अगर इस समय हम चेत गए होते तो यह दिन न देखना पड़ता I आज हालात यह है की पूजा करने को कहीं एक मंदिर दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि सारे मंदिर तो इन मलेच्छो ने तोड़ दिए I तो विकास के लिए एकमात्र आवश्यकता धार्मिक संघर्ष की होती है I जब तक पूरे देश में धार्मिक संघर्ष न चलने लगे तब तक उम्मीद की कोई किरण दिखाई नहीं देती I  अब मैं धार्मिक द्वन्द का यह सूत्र तुमको दे दिया है I  इससे हृदय में धारण करो यह गोपनीय सूत्र है , इसलिए इसके प्रसार की जरूरत नहीं I इसका व्यवहार ज्यादा महत्वपूर्ण है I मैं जानता हूं आप अनजाने इसका प्रयोग करते रहे हैं , लेकिन मूल सिद्धांत जान लेने से दृष्टि साफ हो जाती है और ज्ञान का प्रकाश हो जाता है I इस ज्ञान की गांठ बांध लो और देश को आगे बढ़ाओ I “

इस ज्ञान का भारी बोझ लेकर महामंत्री उठे महाराज को झुक कर प्रणाम किया और महल से निकलकर रथ पर बैठ गए स्वगत गुदगुदाए ……….”यह तो मैं बरसों से जानता हूं यह तो हम कर ही रहे हैं …………चाट के माठा (मट्ठा ) कर दिया I”

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