भए प्रकट कृपाला : विकुति
भगवान ने करवट बदली । एक रोम टूटकर धरती पर गिर गया। भगवान को खबर भी नहीं हुई, एक विरूप अवतार के रूप में खड़ा हो गया । हाथ जोड़कर बोला “आज्ञा प्रभु !”
“तू तो मेरी इच्छा ना होते हुए भी उत्पन्न हो गया है तुझे क्या कहूँ? तू मेरा लघुतम रूप है इसलिए तेरा वध भी उचित नहीं है और अभी मृत्युलोक में कोई बड़ी समस्या भी नहीं है । तो मै तेरे इस सगुण रूप का क्या करूँ ? बैकुण्ठ में इस रूप का कोई उपयोग भी नहीं है।“
विरूप अवतार ने विनयपूर्वक कहा कि “हे सर्वशक्तिमान ! यह सत्य है कि आपके पूर्ण अवतार के लायक कोई विकट समस्या इस समय धरती पर नहीं है लेकिन आपके इस दासानुदास के लायक कई समस्याएं विद्यमान हैं । धरती पर बंधुत्व, सहिष्णुता आदि तीव्र गति से विकसित हो रहे हैं । अतः लिंचिंग ,दंगों आदि में उत्तरोत्तर कमी आ रही है । एक समूह तीव्र गति से अपनी संख्या बढ़ाकर पृथ्वी पर अधिकार करना चाहता है। अतएव हिंदू खतरे में आ गया है। “
भगवान अचंभित होते हुए बोले “ हे ! वत्स ये हिंदू कौन है ?तथा लिंचिंग और दंगे क्या होते हैं ? कुछ चिढ़ते हुए विरूप अवतार ने कहा “हजारों साल से आप मृत्युलोक में तो गए नहीं , अब आपको कैसे समझाऊँ ? आप जैसा आलसी भगवान बैकुण्ठ में राज़ करेगा तो इन हिंदुओं की दुर्दशा तो होगी ही ।
“इस उत्तर से भगवान अत्यंत विचलित हो गए और उन्होंने आहत स्वर में कहा “ठीक है मृत्युलोक में अवतरित होकर जनकल्याण करो ,किन्तु तुम किस घर में जन्म लोगे और तुम्हारे माता पिता कौन होंगे?
“वह सब मुझ पर छोड़ दीजिए। आप तो राजाओं के घर पैदा होते हैं , किन्तु अब जनतंत्र आ गया है । मुझे तो गरीब घर में ही जन्म लेना होगा। शेष पर विश्राम करने वाले मुझ जैसे अवतारी का कष्ट क्या समझेंगे ? “
भगवान ने कहा “इस जनतंत्र का मुझे पता नहीं था लेकिन मैं अपने दो श्रेष्ठियों को ताकीद कर देता हूँ कि वे तुम्हारे खर्चों आदि का ध्यान रखें। “
“आपने ताकीद कर दिया है तो अच्छा है नहीं तो मैं तो बाहर मरोड़ कर भी इंतजाम कर लेता। वैसे लोकतंत्र में “चंदा दे धंधा ले” भी खूब चलता है और भला किस श्रेष्ठी को धंधा नहीं चाहिए “ यह कहकर वो अवतारी निकल पड़ा ।
दैवीय योजना के अनुसार अवतारी को शिशु के रूप में परिवर्तित किया गया तथा उसे घर -घर, चौका-बर्तन करने वाली बेसुध सोई हुई एक स्त्री के बगल में सुला दिया गया । भोर में आंख खुलने पर वह स्त्री बगल में सोए हुए शिशु को देखकर भय से चीत्कार कर उठी।
तभी अवतारी बालक ने अभय मुद्रा में हाथ उठाकर कहा “डरो मत ! माँ , मै अवतारी हूँ , लेकिन इस जगत में तुम्हीं मेरी माँ कहलाओगी । माँ, तुम बड़ी धन्यभागी हो जिसे मेरे जैसा पुत्र प्राप्त हुआ है ।”
स्त्री को सहसा विश्वास नहीं हुआ स्त्री ने संकोचपूर्वक कहा “यदि तुम्हारी बात सच्ची है तो अपना विराट रूप तो दिखाओ “ शिशु बोला “माँ तुम्हारा संदेह उचित है , इसके निवारण के लिए मैं विराट रूप दिखाता हूँ । इसमें कोई कठिनाई नहीं है। ध्यानपूर्वक मेरे मुँह में देखो । “
यह कहकर शिशु ने अपना मुँह खोल दिया देखते-देखते शिशु का मुँह सुरसा की तरह फैल गया। स्त्री ने देखा कि मुँह काले धुएं से भरा हुआ है। स्त्री ने कहा “हे ! पुत्र यहाँ तो केवल धुआं भरा हुआ है।” यह सुनकर अवतारी ठठाकर हंसा और गरजते हुए कहा माते धीरज रखिये अभी बहुत कुछ दिखेगा । “
शीघ्र ही मुख गह्वर में दृश्य परिवर्तित हुआ । धुआं छटा और चारों ओर फुफकारती हुई आग की लपटें नजर आने लगी। सब कुछ जल रहा था, भूगोल गल-गलकर कट रहा था ,इतिहास चिंदी-चिंदी चिगारियों में तब्दील हो रहा था, लोग बेतहाशा आक्रमण या बचाव कर रहे थे । धार्मिक नारे लपटों के शीर्ष पर चमक रहे थे । लंपट हत्यारे लोगों को घेर-घेरकर मार रहे थे । हर तरफ छीछालेदर, खून खच्चर । एक कंगूरे पर छिप कर बैठा देखता हँसता और ताली बजाता वही अवतारी शिशु ।
स्त्री डर से थर थर कांपने लगी मुँह से बोल नहीं फूट रहे थे , “बस कर मेरे लाल!” अब देखा नहीं जाता । “शिशु ने फिर अट्टहास किया और कहाँ “बस ? माते !“ और सब कुछ अदृश्य हो गया स्त्री हांफते हुए जमीन पर बैठ गई और सिसकते हुए बोली “ पुत्र क्या ब्रह्मांड में यही सब हो रहा है ?”
“नहीं माँ नहीं यह तो मेरा सपना है । इसको सच करके दिखाऊंगा । समय बीतता गया । बाल लीलाएं करते हुए शिशु एक दिन जवान हो गया। एक प्रातः सूट बूट में दो सेठ बड़ी गाड़ी में आकर उपस्थित हुए और उस युवक के चरणों में गिर गए। प्रभु ! हम आपको राजधानी ले जाने हेतु जहाज लेकर आए हैं ।हम पर कृपा करें । युवक अचकचा गया और कहाँ राजधानी तो खैर चलना ही था लेकिन भिक्षाटन और संन्यास के प्रकरण प्रकरण तो अभी हो नहीं पाए हैं ।
सेठों ने कहा “आप बिल्कुल चिंता न करें , टीवी और अखबार बिल्कुल तैयार बैठे हैं, भिक्षाटन और सन्यास की कहानियाँ तत्काल लोक में चर्चित हो जाएगी अब जल्दी करें प्रभु। “ यह देख स्त्री दौड़ते हुए आई और बोली “तुम लोग मेरे पुत्र को कहाँ ले जा रहे हो? “
एक सेठ ने हाथ जोड़कर विनयपूर्वक कहा “ हे ! माँ हम आपके पुत्र को राजधानी ले जा रहे हैं । इनका पूरा ख्याल रखा जाएगा । यह जल्दी ही आप से मिलने कैमरे वालों के साथ आएँगे आप बेफिक्र रहे रहें
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